संगम नगरी प्रयागराज में आस्था का भव्य और दिव्य महाकुंभ 2025 की खास तैयारियां की जा रही हैं। यह मेला, हिंदू धर्म का सबसे विशाल और पवित्र आयोजन माना जाता है। प्रयागराज स्थित त्रिवेणी संगम पर हर बारह साल में एक बार होने वाला आस्था का यह महापर्व करोड़ों श्रद्धालुओं के साथ आध्यात्मिक साधकों को अपनी ओर आकर्षित करता है। महाकुंभ के धार्मिक आयोजन न केवल पापों के प्रायश्चित का मौका प्रदान करता है बल्कि यहां मोक्ष की भी प्राप्ति होती है। यह मोक्ष का भी माध्यम बनता है।
- कुंभ मेले में होंगे विशेष अनुष्ठान
- सपिंडन विधान, दशगात्र विधान
- षोडश श्राद्ध किए भी जाते हैं
- महाकुंभ के दौरान इस दिन होगा शाही स्नान
- पहला शाही स्नान 13 जनवरी 2025- पौष पूर्णिमा
- दूसरा शाही स्नान 14 जनवरी 2025- मकर संक्रांति
- तीसरा शाही 29 जनवरी 2025- मौनी अमावस्या
- चौथा शही 03 फरवरी 2025- बसंत पंचमी को होगा
- 12 फरवरी 2025- माघी पूर्णिमा
- 26 फरवरी 2025- महाशिवरात्रि
आस्था के इस महाकुंभ को लेकर यह भी सवाल आध्यात्मिक गुरुओं से किया जाता है कि क्या त्रिवेणी संगम का पवित्र जल व्यक्ति को प्रेत योनि से भी मुक्ति दिला सकता है?। हम आपको बता दें यह जानकर आप हैरानी होंगे कि आपके आचरण ही आपकी सहीं राह प्रशस्त करते हैं। ठीक उसी तरह जैसे एक प्राचीन कथा में वर्णित है कि केरल में ब्राह्मण वासु को उसकी गलतियों के साथ ही लोभ के चलते न केवल अपने परिवार से त्याग दिया, बल्कि संपत्ति से भी हाथ धो बैठा? वह दर-दर भटकता रहा। अंततः विन्ध्य पर्वतों में भूख और प्यास से उसकी मृत्यु हो गई। अकाल मौत के बाद उसका अंतिम संस्कार भी नहीं हो सका। ऐसे में ब्राह्मण वासु की आत्मा को प्रेत योनि में भटकने का श्राप मिला था। कई साल तक ब्राह्मण वासु की आत्मा जंगलों में कष्ट सहती रही।
एक दिन जब एक यात्री जंगल से गुजरा तो उसके कमंडल में त्रिवेणी का पवित्र जल था। साथ ही वह भगवान जनार्दन की स्तुति कर रहा था था। अचानक प्रेत उस यात्री के सामने प्रकट हो जाता है और कहता डरो मत, उसे केवल कमंडल जल की कुछ बूंदें चाहिए। तुमने इंकार करोगा तो वह हानि पहुंचायेगा। ऐसे में भयभीत यात्री ने प्रेत से पूछा तुम कौन हो तुम्हारी दुर्दशा क्यों हुई है। भटकते प्रेत ने बताया अपने पिछले जन्म में वह लोभी और अधार्मिक ब्राह्मण था। पाप के चलते वह प्रेत योनि में भटक रहा है। ऐसे में यात्री ने प्रेम को त्रिवेणी का जल पिलाया तो जल ग्रहण करते ही उस प्रेत का रूप दिव्य हो गया। और उसने पवित्र जल पिलाने वाले यात्री को आशीर्वाद दिया।
मृत्यु के बाद प्रेत योनि और कष्टपूर्ण स्थिति का रहस्य
भारतीय दर्शन के साथ हिंदू धर्मग्रंथों में प्रेतयोनि का उल्लेख मिलता है। यह उल्लेख मिलता है कि आत्माओं की एक ऐसी स्थिति के तौर पर किया गया है। मृत्यु के बाद अशांत रहने वालों को और फंसी आत्मा के अस्तित्व का भटकाव और कष्टदायक से मुक्ति दिलाती है। गरुड़ पुराण जैसे प्राचीन धार्मिक ग्रंथों में विषय को विस्तार से समझाया है, जानकारी दी गई। गरुड़ पुराण में यह भी उल्लेख मिलता है कि भटकती आत्माएं किन वजहों से प्रेत की अवस्था में प्रवेश करती हैं। इसके साथ ही इससे मुक्ति के उपाय क्या हैं।
शाही स्नान में मिलती है आत्माओं को शांति
महाकुंभ मेले में शाही स्नान करने पर केवल व्यक्ति पवित्र होता है। बल्कि प्रेत योनि में फंसीं कई आत्माएं को भी शांति मिलती है। विश्वास है कि त्रिवेणी के पवित्र जल में स्नान करने से प्रेत आत्माओं के भी पाप नष्ट हो जाते हैं इसके साथ ही वे उच्च लोकों की यात्रा कर सकती हैं।
सबसे खास होता है श्राद्ध और तर्पण
हिन्दू धर्म में श्राद्ध और तर्पण हिंदू धर्म के अहम अनुष्ठान होता है। महाकुंभ के दौरान यह अनुष्ठान किए जाते हैं। इनका उद्देश्य पूर्वजों की भटकती आत्मा को शांति प्रदान करना होता है। कुंभ में जल अर्पित करने से न केवल आत्माओं को सुख देती है, बल्कि प्रेत योनि से भी उन्हें बाहर निकालने में भी सहायक होती है।
कुंभ के दौरान होंगे विशेष अनुष्ठान और विधान
कुंभ मेले के दौरान कई विशेष अनुष्ठान किये जाते हैं। जिनमें सपिंडन विधान और दशगात्र विधान प्रमुख है। इसके साथ ही षोडश श्राद्ध भी किए जाते हैं। जिसका उद्देश्य मृतकों की भटकती आत्माओं को सांसारिक बंधनों से मुक्त करना और उच्च लोकों की ओर मार्गदर्शन देना होता है। गरुड़ पुराण में उल्लेख मिलता है कि कुंभ के दौरान इस तरह के अनुष्ठानों को करने से आत्मा को दिव्य शांति की प्राति् होती है। इसके साथ भटकाव में ठहराव के साथ उनके मोक्ष का मार्ग भी प्रशस्त होता है।
कुंभ के किये जाते हैं पिंडदान
दिवंगत आत्मा की शांति के लिए पिंड दान किये जाते हैं। लेकिन कुंभ मेले के दौरान पिंडदान किया जाना एक और महत्वपूर्ण अनुष्ठान माना जाता है। यह पूर्वजों की आत्मा को शांति प्रदान तो करता ही है इसके साथ ही उन्हें मुक्ति भी प्रदान करता है। श्रद्धालु पिंडदान के दौरान चावल और तिल से बने पिंड को अर्पित किया जाता हैं। जिससे आत्माओं को प्रेत योनि से भी मुक्ति मिलती है। वहीं कुंभ मेले के दौरान साधना और भक्ति का विशेष महत्व माना जाता है। भगवान श्री विष्णु की आराधना करने और मंत्र जाप के साथ आध्यात्मिक साधना करने से आत्मा की मुक्ति का मार्ग प्रशस्त होता है।
(प्रकाश कुमार पांडये)