फिल्म छावा ने किया इतिहास के काले पन्नों को उजागर , पर्दे पर बेपर्दा हुई मुगल आक्रांताओं ये सच्चाई

फिल्म छावा ने किया इतिहास के काले पन्नों को उजागर , पर्दे पर बेपर्दा हुई मुगल आक्रांताओं ये सच्चाई

कभी-कभी फिल्में भी हमारे जीवन ओर मन पर व्यापक प्रभाव डाल जाती हैं। ऐसा ही कुछ किया है,हाल ही में प्रदर्शित छावा फिल्म ने। जिसने एक मजबूत पटकथा के चलते भारतीय जनमानस के मन मस्तिष्क को झकझोर के रख दिया। इस फिल्म को देखने के बाद वे आम भारतीय नागरिक भी मुगल आक्रांताओं की अमानुषिकता से परिचित हुए, जिन्हें किसी कारणवश इतिहास पढ़ने का अवसर नहीं मिला। हालांकि इतिहास के छात्रों और इसमें रुचि रखने वालों को पहले से ही यह मालूम था कि मंगोल से भारत आए लुटेरों ने कैसे सैकड़ों सालों तक इस देश को लूटते रहे। लूटा ही नहीं बल्कि इस देश को रक्त रंजित भी किया। यह लिखना भी अतियोक्ति नहीं होगी कि उन बहशी लोगों ने अत्याचारों की सभी सीमाएं लांघीं। देश की जिन विभूतियों ने भी ज्यादती, अमानुषिकता और बहशीपन का विरोध किया। उनके साथ तो इतना बर्बर व्यवहार किया गया कि जो देख ले उसी की रूह कांप जाए। फिर अनुमान लगाया जा सकता है कि भारत के जिन महान सपूतों ने यह सब भुगता उन पर क्या बीती होगी। लेकिन धन्य हैं वे माताएं, जिनके सपूतों ने देश का गौरव बचाए रखने के लिए सर तो दे दिए किंतु सार नहीं जाने दिया?।

जी हां, हम बात कर रहे हैं गुरु तेग बहादुर सिंह जी की। सिखों के नौवें गुरु की जान बच सकती थी, बशर्ते वो मुस्लिम धर्म स्वीकार कर लेते। तत्कालीन क्रूर शासक औरंगजेब यही तो चाहता था। औरंगजेब जानता था कि गुरु तेग बहादुर के घुटने टिकते ही सारा युद्ध थम जाएगा, जो भारतीय अस्मिता को बचाने के लिए गुरु तेग बहादुर जी के नेतृत्व में बड़े पैमाने पर लड़ा जा रहा था। स्वयं गुरुजी साहब को भी यह आभास था कि यदि वह जरा भी लड़खड़ाए तो हर हाल में आजादी पाने की जो आग भारतीय सपूतों के दिलों में धधक उठी है, वह असमय ही शांत हो जाएगी।

अतः उन्होंने धर्म खोना स्वीकार नहीं किया, तब भी जबकि उन्हें बार-बार चेताया गया कि यदि तुम हिंदू धर्म को बचाने की जंग नहीं छोड़ोगे तो वीभत्स मौत के भागी बनोगे और यदि मुसलमान बन गए तो तुम्हें माफ कर दिया जाएगा। फिर भी गुरु तेग बहादुर अपने धर्म से नहीं डिगे तो बुरी तरह बौखला उठे औरंगजेब ने उनका शीश धड़ से अलग कर दिया। औरंगजेब की यह एकमात्र क्रूर कहानी नहीं है। उसका तो पूरा जीवन ही भारतीय संस्कृति की आत्मा को लहूलुहान करने वाला रहा है। भारत में जहां भी उसे सनातन के गौरवशाली चिन्ह दिखाई दिए, उन्हें ध्वस्त करता चला गया।

प्रकाश कुमार पांडेय

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