वैसे तो शिवरात्रि हर माह पड़ती है, लेकिन फाल्गुन कृष्णपक्ष की चतुर्दशी को होने वाली महाशिवरात्रि विशेष होती है। विशेष इसलिए क्योंकि इस दिन परमपिता महादेव और जगत जननी मं पार्वती के विवाह की शुभ रात्रि होती है। बैरागी होकर भी शिवजी ने ब्रह्माजी के आग्रह पर विवाह करना स्वीकार किया तभी तो पृथ्वी पर सृजन यानी स्त्रियों के गर्भ धारण की प्रक्रिया प्रारंभ हुई।
महाशिवरात्रि का पर्व इस साल 18 फरवरी को मनाया जाएगा। लेकिन उज्जैन में महाकाल के मंदिर में फाल्गुन मास की पंचमी तिथि से ही शिव नवरात्रि का पर्व आरंभ कर दिया गया है। शिवरात्रि तक नौ दिनों में बाबा महाकाल का नौ तरह से श्रृंगार किया जाएगा और बाबा महाकाल 18 फरवरी को फूलों का सेहरा पहन कर दूल्हा बनेंगे। इतना ही नहीं इन 9 दिनों में महाकाल की हल्दी और मेंहदी की रस्म भी निभाई जाएगी। आइए जानते हैं महाकाल के विवाह की तैयारी किस तरह कीजा रही है, आने वाले दिनों क्या क्या होने वाला है।
नौ दिन अलग-अलग श्रृंगार
- पहला दिन- भगवान महाकाल का चंदन से श्रृंगार, जलाधारी पर हल्दी अर्पित की
- दूसरा दिन- भगवान का शेषनाग के रूप में श्रृंगार
- तीसरे दिन- भगवान का घटाटोप श्रृंगार
- तीसरे दिन बाबा महाकाल भक्तों को घटाटोप रूप में दर्शन देंगे।
- वहीं चौथे दिन बाबा महाकाल का छबीना श्रृंगार किया जाता है। जो कि एक नवयुवक स्वरूप होता है। इसमें बाबा का श्रृंगार एक राजकुमार की तरह किया जाता है।
- शिव नवरात्रि के पांचवें दिन महाकाल बाबा को होलकर परंपराओं के अनुसार सजाया जाएगा।
- शिव नवरात्रि के छठवें दिन बाबा महाकाल को मनमहेश के रूप में सजाया जाएगा। इस रूप में भगवान शिव के रूप में महाकाल का श्रृंगार होगा।
- 7वें दिन बाबा महाकाल माता पार्वती के साथ उमा-महेश के रूप में भक्तों को दर्शन देते हैं। इस दिन महाकाल बाबा और मां पार्वती दोनों का स्वरूप भक्तों को दिखता है।
- 8वें दिन बाबा महाकाल शिव तांडव के रूप में भक्तों को दर्शन देते हैं। इस स्वरूप में महाकाल का रौद्र रूप भक्तों को देखने को मिलता है।
- शिव नवरात्रि के अंतिम दिन बाबा महाकाल को दूल्हे के रूप में सजाया जाता है। कई क्विंटल फूलों का सेहरा बाबा को पहनाया जाता है। निराकार स्वरूप अगले दिन सेहरा दर्शन होते हैं।
देश भर के ज्योर्तिलिंगों में एक मात्र उज्जैन के बाबा महाकाल के आंगन में नौ दिवसीय शिवरात्रि का पर्व मनाया जाता है। इस दौरान भगवान महाकाल 9 दिनों तक अलग-अलग स्वरूपों में भक्तों को दर्शन देते है। वहीं अंतिम दिन शिवरात्रि महापर्व पर भगवान को सेहरा धारण कराया जाता है। इसी दिन वर्ष में एक बार बाबा महाकाल को दोपहर के समय भस्म रमाई जाती है। शिवनवरात्रि की शुरूआत फाल्गुन मास की पंचमी से हो चुकी है।
उज्जैन के श्री महाकालेश्वर मंदिर में शिवरात्रि का पर्व इसलिए भी खास है कि इस पर्व को पूरे नौ दिन मनाया जाता है। प्रतिदिन बाबा का मोहक श्रृंगार के साथ ही पूजन, अभिषेक और अनुष्ठान का दौर चलता है। परंपरा अनुसार सुबह नैवेद्य कक्ष में भगवान चंद्रमौलेश्वर का पूजन करने के बाद कोटितीर्थ कुंड के समीप श्री कोटेश्वर और रामेश्वर महादेव मंदिर में शिवपंचमी की पूजा के साथ शिवनवरात्रि की शुरुआत की गई। कोटेश्वर महादेव को चंदन तथा जलाधारी पर हल्दी अर्पित की गई। यहां पूजन के बाद गर्भगृह में भगवान महाकाल का पंचामृत अभिषेक पूजन किया गया। वहीं 11 ब्राह्मणों द्वारा एकादशिनी रुद्र पाठ किया गया तो दोपहर में भोग आरती के पश्चात तीन बजे संध्या पूजा कर भगवान का विशेष श्रृंगार किया गया। मंदिर की परंपरा अनुसार शिवनवरात्रि के नौ दिन पं.रमेश कानड़करजी द्वारा नारदीय संकीर्तन से कथा की जाएगी। पं. महेश पुजारी ने बताया कि पहले दिन भगवान महाकाल का चंदन से श्रृंगार होगा। भगवान को सोला और दुपट्टा धारण कराया जाएगा। बाबा महाकाल का हर दिन अलग-अलग श्रृंगार किया जा रहा है।
शिवरात्रि पर अबकी बार दोहरे लाभ का संयोग
महाशिवरात्रि पर अबकी बार भोलेनाथ के भक्तों को डबल लाभ पाने का मौका दे रहे हैं भगवान भोलेनाथ क्योंकि महाशिवरात्रि के संग अबकी बार शनि प्रदोष व्रत का भी संयोग बना है तो ऐसे में शिवभक्तों को महाशिवरात्रि व्रत पूजा से शनि प्रदोष का भी लाभ मिलेगा जो शनि की प्रतिकूल स्थिति से भी आपकी रक्षा करता रहेगा।
धार्मिक दृष्टि से शुभ माना जाता है शनि प्रदोष
महाशिवरात्रि के साथ शनि प्रदोष का होना धार्मिक दृष्टि से बहुत शुभ योग माना जाता है। शनि प्रदोष व्रत पुत्र प्राप्ति की कामना के साथ रखा जाता है। 18 फरवरी को महाशिवरात्रि के दिन शनि प्रदोष होने से भगवान शिव जल्द ही आपकी मनोकामना पूर्ण करते हैं। इसके साथ यह व्रत शनि दोष दूर करने में बहुत ही उत्तम माना गया है। महाशिवरात्रि पर जल में काले तिल डालकर शिवजी का अभिषेक करने से आपको शनि की महादशा से राहत मिलेगी।