कैथोलिक ईसाई धर्मगुरु पोप फ्रांसिस की हालत बेहद नाजुक बताई जा रही है। दरअसल पोप को निमोनिया ने घेर लिया है, वे इस बीमाारी से से जूझ रहे हैं। दुनियाभर में लोग उनके शीघ्र स्वस्थ्य होने की कामना कर रहे है। बता दें करीब 87 वर्षीय पोप फ्रांसिस को हाल ही में सांस लेने में तकलीफ के चलते रोम के जेमेली अस्पताल में ले जाया गया था। जहां पोप ने कई दिनों तक वेटिकन सिटी छोड़ने के आह्वान का विरोध भी किया था। हालांकि डॉक्टरों ने उन्हें ‘जटिल’ श्वसन संक्रमण से पीड़ित बताते हुए कार्यक्रमों में भाग लेने से रोक दिया, साथ ही वेटिकन ने इस सप्ताह पोप के दर्शकों के कार्यक्रम भी रद्द कर दिए।
वेटिकन ने पिछले दिनों निमोनिया की पुष्टि की थी और कहा था कि पोप फ्रांसिस के श्वसन संक्रमण में अस्थमा से जुड़ी ब्रोंकाइटिस भी शामिल है। जिसके लिए कॉर्टिसोन एंटीबायोटिक इलाज की आवश्यकता होती है। बता दें अस्पताल में भर्ती कराये जाने के बाद डॉक्टरों ने उन्हें एंटीबायोटिक इलाज दिया है। जिसके चलते फिलहाल उनकी स्थिति में कुछ सुधार बताया जा रहा है। हालांकि 87 साल के इस पड़ाव पर निमोनिया जैसी गंभीर बीमारी बड़े खतरे से कम नहीं है। इस संक्रमण के चलते हर साल दुनिया में लाखों लोगों की जान चली जाती है। ऐसे में पूरी दुनिया की निगाहें वेटिकन पर टिक गईं हैं।
निमोनिया से हर 13 सेकंड में एक मौत
ग्लोबल बर्डन ऑफ डिजीज की माने तो साल 2019 में निमोनिया से करीब 25 लाख लोगों की जान चली गई थी। यानी हर 13 सेकंड में इस बीमारी का एक व्यक्ति शिकार हो रहा था। यह संक्रमण सबसे अधिक छोटे बच्चों और बुजुर्गों पर अपना असर डालता है। आंकड़ों पर गौर करें तो निमोनिया से होने वाली करीब 50 प्रतिशत मौतें 50 साल से अधिक उम्र के लोगों की हुई हैं।जबकि 30 प्रतिशत मौत 5 साल से कम उम्र के बच्चों की दर्ज की जाती है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन WHO की रिपोर्ट के अनुसार साल 2021 में कोविड-19 के चलते निमोनिया का शिकार होने और मरने वालों की संख्या में 35 लाख और जुड़ गई है। उस साल कुल मिलाकर सांस से जुड़ी बीमारियों के चलते 60 लाख से अधिक लोगों की मौत हुई थी। इतनी बड़ी संख्या में मौतें किसी दूसरे गंभीर संक्रमण से नहीं होती है।
सबसे अधिक इन देशों में ज्यादा खतरा
निमोनिया बीमारी से होने वाली करीब दो-तिहाई मौतें सिर्फ 20 देशों में ही दर्ज की गई हैं। इनमें भारत के साथ चीन, जापान, ब्राज़ील, अमेरिका, नाइजीरिया, पाकिस्तान, फिलीपींस, इथियोपिया, इंडोनेशिया, ब्रिटेन, बांग्लादेश, डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ कांगो, रूस, तंजानिया, थाईलैंड, अर्जेंटीना, जर्मनी, दक्षिण अफ्रीका और बुर्किना फासो शामिल हैं।
वहीं कम आमदानी वाले देशों में गरीब परिवारों के छोटे बच्चों की निमोनिया से सबसे अधिक मौतें होती हैं। जबकि विकसित देश का रिकॉर्ड देखें तो यहां इस बीमारी की चपेट में सबसे अधिक बुजुर्ग आते हैं। कई मध्यम आय वाले देशों में बच्चे और बुजुर्ग दोनों में ही निमोनिया से मरने वालों की संख्या में तेजी से वृद्धि दर्ज की गई है।
रोकथाम के लक्ष्य से दूर दुनिया
पिछले कुछ साल के दौरान निमोनिया को रोकने के लिए कई वैश्विक लक्ष्य बनाए गए गए, लेकिन इनमें से कई लक्ष्य अब तक भी अधूरे हैं। ग्लोबल एक्शन फॉर द प्रिवेंशन एंड कंट्रोल ऑफ निमोनिया एंड डायरिया का लक्ष्य था कि साल 2025 तक हर एक हजार बच्चों के जन्म पर निमोनिया से होने वाली मौतों को तीन से भी कम किया जाए। जबकि संयुक्त राष्ट्र के सतत विकास लक्ष्य SDG को देखें तो साल 2030 तक यह आंकड़ा 25 से नीचे लाने का लक्ष्य तय किया गया है। हालांकि पूर्व से तय इन लक्ष्यों को हासिल करने के रास्ते में अब भी कई कठीन चुनौतियां हैं।
रोकथाम से पहले जरूरी है जागरूकता
चिकित्सा विशेषज्ञों की माने तो निमोनिया बैक्टीरिया, वायरस और फंगस के चलते हो सकता है। लेकिन एक अच्छी बात यह है कि इस बीमारी को वैक्सीन से रोका जा सकता है। इसका उपपचार एंटीबायोटिक्स और ऑक्सीजन से संभव है। इसके बाद भी निमोनिया अब भी कई देशों में एक जानलेवा बीमारी साबित हो रहा है। समय पर उपचार और जागरूकता अभियान चलाए जाएं तो माना जाता है कि निमोनिया से होने वाली मौत के आंकड़ों को कम किया जा सकता है।