दक्षिण एशिया में भारतीय दबदबे का नया सूर्योदय ….2025 का ये सीज फायर बना भारत की मुखर आवाज का प्रतीक…
ऑपरेशन सिंदूर के बाद से ही पाकिस्तान ही बौखलाहट साफ नजर आ रही थी। लेकिन तीन दिन में जिस तरह से भारतीय सेना ने शौर्य और सूझबूझ का परिचय दिया उससे पाक को घुटने टेकना पड़े। पाक के खिलाफ संघर्ष विराम का समझौते को लेकर रणनीतिक विशेषज्ञों ने भारत के सामरिक और कूटनीतिक इतिहास में एक महत्वपूर्ण क्षण बताया है। पाकिस्तान के साथ 2025 का सीज फायर का समझौता पूरी तरह से भारत की शर्तों पर हुआ है। उसे नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली केन्द्र की एनडीए सरकार के लिए एक अहम भू-राजनीतिक जीत के रूप में भी देखा जा रहा है। इससे पहले जितनी बार भी पाकिस्तान के खिलाफ युद्ध के दौरान सीज फायर हुआ उसमें भारत की शर्ते उतनी मुखरता से शामिल नहीं रहीं।
लेकिन यह “सीज फायर न केवल शत्रुता की समाप्ति का प्रतीक है, बल्कि यह भारत के रक्षा सिद्धांत में एक बड़े परिवर्तन को भी औपचारिक रूप देता है। जो दक्षिण एशिया की अस्थिर पावर डायनामिक में एक नई मिसाल भी कायम करता है। पिछले कई युद्ध विरामों के विपरीत, जो बड़े पैमाने पर अंतरराष्ट्रीय दबाव और समझौतों से प्रभावित थे यह 2025 का समझौता भारत की बढ़ती मुखरता और वैश्विक प्रभाव को दर्शाता है।
2025 का संघर्ष विराम टोन और कंटेंट दोनों में रुप में अलग है। भारत की दो नई साहसिक घोषणाओं की यह एक प्रकार से गूंज है जिसके आधार पर देश के नए राष्ट्रीय सुरक्षा सिद्धांत की आधारशिला तैयार की जाएगी। पहल नंबर पर है आतंकवाद को फिर से परिभाषित करना। भारत ने ऐलान किया है कि अब आतंकवाद के किसी भी कृत्य को युद्ध की कार्रवाई यानी Act of war माना जाएगा। यह सिद्धांत भारत को अमेरिका और इजरायल जैसे देशों के साथ खड़ा करता है। आने वाले भविष्य में जीरो टॉलरेंस की नीति का भी संकेत देता है।
सिंधु जल समझौता में बदलाव न होना भारत की दृढ़त का प्रतीक। सीजफायर के बाद भारत की ओर से सिंधु जल संधि को लेकर अपनी नीति में कोई परिवर्तन नहीं किया गया है। यानी पाकिस्तान के साथ सिंधु जल संधि अब भी स्थगित ही रहेगी। बता दें विश्व बैंक, जिसने मूल रूप से इस संधि की मध्यस्थता की थी ने गारंटर की अपनी भूमिका से भी अब खुद को अलग कर लिया है। इसके चलते भारत की वैश्विक स्थिति और मजबूत हो गई है।
मजबूत इकॉनामी और रणनीतिक साफगोई का मेल
भारत के वैश्विक आर्थिक महाशक्ति के रूप में उभरने से उसका भू-राजनीतिक प्रभाव भी बढ़ा है। इसके विपरीत पड़ोसी देश पाक में चल रहे आर्थिक उथल-पुथल ने मजबूत स्थिति से बात करने की उसकी क्षमता को और कम कर दिया है।
1949 से अब तक 6 बार सीज फायर
1949 में विभाजन के तत्काल बाद भारत को पहला युद्ध झेलना पड़ाथा। तब युद्धविराम कराची समझौते के तहत अमेरिका की भागीदारी से पूरा हुआ था। इसका परिणाम यह रहा कि संयुक्त राष्ट्र निगरानी समूह की स्थापना की गई। इस युद्धविराम की शर्तें जो काफी हद तक बाहरी देशों और शक्तियों से प्रभावित थीं।
जबकि 1965 में भारत और पाक युद्ध के बाद संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के प्रस्ताव 211 के तहत शांति के लिए जोर दिया। जिसका समर्थन अमेरिका के साथ तत्कालीन सोवियत संघ दोनों ने किया था। इसके बाद ताशकंद घोषणापत्र के तहत भारत को पाकिस्तान के साथ सैन्य मुठभेड़ के दौरान सभी रणनीतिक जीत और जमीन वापस पाकिस्तान को सौंपना पड़ी। 1971 में निर्णायक जीत और 90 हजार से अधिक पाक सैनिकों के आत्मसमर्पण के बाद जो शिमला समझौता हुआ था वह वैश्विक दबाव में हुआ था। यानी जीत के बाद भी ये समझौता भारत के लिए किसी प्रकार का कोई रणनीतिक फ़ायदा नहीं दे पाया और पाकिस्तान के कब्ज़े वाले जम्मू और कश्मीर पीओजेके पर कोई औपचारिक समझौता नहीं तय हुआ इसके साथ ही युद्ध क्षतिपूर्ति भी नहीं हुई। इसके बाद 1987 और 1990 श्रीलंका में भारतीय शांति सेना आईपीकेएफ का अभियान पूरी तरह से सैन्य वापसी के साथ समाप्त हुआ। जिसे व्यापक रूप से रणनीतिक और मानवीय विफलता के तौर पर देखा गया। इस अभियान में आखिरकार भारत के पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की जान चली गई। जबकि 1999 में भी अमेरिकी कूटनीतिक हस्तक्षेप के बाद कारगिल संघर्ष समाप्त हुआ था। तब भारत के बढ़त हासिल करने के बाद भी क्लिंटन प्रशासन की ओर से मध्यस्थता किए गए युद्ध विराम समझौते के तहत भारत ने अपना अभियान पूर्ण सामरिक श्रेष्ठता हासिल करने से पहले ही रोक दिया था।
लेकिन अंतर्राष्ट्रीय समुदाय में इस बार पाक के साथ 2025 का सीजफायर न केवल एक संघर्ष की समाप्ति के रूप में याद किया जाएगा, बल्कि दक्षिण एशिया में एक नई रणनीतिक व्यवस्था के आगाज के रूप में भी याद किया जाएगा। जिसकी पूरी रचना वाशिंगटन और मॉस्को ने नहीं बल्कि नई दिल्ली ने तैयार की है।…प्रकाश कुमार पांडेय