मद्रास हाईकोर्ट के लिए सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने की 4 जजों के नाम की सिफारिश

Supreme Court collegium

सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने केंद्र सरकार से बिना किसी देरी के जजों की लंबित नियुक्तियों के मामले में तेजी लाने को कहा है। सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने केंद्र का ध्यान आकर्षित करने की कोशिश की है कि जजों के नाम पर रोक लगाने से उम्मीदवारों की वरिष्ठता प्रभावित होती है। मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाले एक कॉलेजियम ने मद्रास उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के रूप में नियुक्ति के लिए चार जिला न्यायाधीशों के नामों की सिफारिश की। उन्होंने आर शक्तिवेल, पी धनबल, चिन्नासामी कुमारप्पन और के राजशेखर के नामों की सिफारिश की। ये सभी सभी न्यायिक अधिकारी हैं। सुप्रीम कोर्ट ने एडवोकेट हरप्रीर बराड़ को हाईकोर्ट का जज नियुक्त करने की अपनी सिफारिश को भी दोहराया है।

बता दें सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम में जस्टिस संजय किशन कौल और केएम जोसेफ भी शामिल हैं। सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने एक प्रस्ताव में पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में बराड़ की नियुक्ति के लिए 25 जुलाई, 2022 की अपनी सिफारिश को दोहराया है। सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने कहा दोहराए गए नामों को रोकने या हटाने से न्यायाधीशों की वरिष्ठता प्रभावित होती है। उन्होंने लंबित नियुक्तियों को मंजूरी देने के लिए केंद्र को जल्द कार्रवाई करने का भी निर्देश दिया।

नियुक्ति को लेकर कॉलेजियम और केंद्र में टकराहट

एससी कॉलेजियम की ताजा सिफारिश ऐसे समय में आई है जब जजों की नियुक्ति को लेकर सुप्रीम कोर्ट और केंद्र सरकार नियमित रूप से आपस में भिड़े हुए हैं। जहां सरकार नई व्यवस्था और जजों की नियुक्ति में सुधार की वकालत कर रही है। वहीं सुप्रीम कोर्ट चाहता है कि कॉलेजियम सिस्टम जारी रहे। ऐसा ही एक उदाहरण खुले तौर पर अधिवक्ता सौरभ कृपाल की दिल्ली उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में नियुक्ति में देरी है। सौरभ किरपाल भारत के पूर्व प्रधान न्यायाधीश बी एन कृपाल के पुत्र हैं। सुप्रीम कोर्ट की वेबसाइट पर अपलोड किए गए कॉलेजियम के प्रस्ताव के अनुसार केंद्र सरकार कृपाल की उम्मीदवारी पर दो आधारों पर आपत्ति जता रही है।

अनदेखी पर काॅलेजियम ने जताई गंभीर चिंता

उच्च न्यायपालिका में जजों की नियुक्ति के लिए अनुशंसित नामों पर केंद्र की ओर से निर्णय में देरी या अनदेखी पर सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने गंभीर चिंता जताते हुए कहा कि इससे अभ्यर्थियों की वरिष्ठता प्रभावित होती है। कॉलेजियम ने सरकार से कहा है कि जिन अभ्यर्थियों के नामों की सिफारिश पहले की जाती है। उनकी पदोन्नति के लिए आवश्यक कार्रवाई करे। भारत के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ के साथ जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस केएम जोसेफ की कॉलेजियम ने कहा पूर्व में अनुशंसित व्यक्तियों की पदोन्नति के लिए अधिसूचना जल्द से जल्द जारी की जानी चाहिए। कॉलेजियम की ओर से कहा गया है कि 17 जनवरी 2023 के अपने प्रस्ताव के जरिये सुप्रीम कोर्ट के कॉलेजियम ने मद्रास हाईकोर्ट में प्रैक्टिस करने वाले वकील रामास्वामी नीलकंदन को हाईकोर्ट में जज के रूप में नियुक्त करने की सिफारिश की थी। वहीं 31 मार्च 2023 को नीलकंदन 48 वर्ष और 7 माह के हो जाएंगे। उसी दिन राजशेखर की उम्र 47 वर्ष 09 माह हो जाएगी। नीलकंदन, जो बार के सदस्य हैं की सिफारिश पहले की जा चुकी है और राजशेखर की नियुक्ति से पहले उन्हें नियुक्त किया जाना चाहिए। अन्यथा राजशेखर जो एक न्यायिक अधिकारी हैं और नीलकंदन से छोटे हैं। रैंक में नीलकंदन से वरिष्ठ हो जाएंगे। वरिष्ठता में इस तरह की गड़बड़ी अनुचित और स्थापित परिपाटी के खिलाफ होगा। इसके अलावा कॉलेजियम के प्रस्ताव में वकील जॉन सत्यन के मामले का भी उल्लेख है। जिनके नाम को केंद्र सरकार की ओर से मद्रास हाईकोर्ट के न्यायाधीश के रूप में नियुक्ति के लिए मंजूरी नहीं दी गई है।

आखिर क्या है कॉलेजियम सिस्टम

काॅलेजियम एक ऐसी प्रणाली है जिसके तहत न्यायाधीशों की नियुक्ति और स्थानांतरण भारत के मुख्य न्यायाधीश और सर्वोच्च न्यायालय के चार वरिष्ठतम न्यायाधीशों के एक मंच की ओर से तय किए जाते हैं। भारतीय संविधान में इसका कोई स्थान नहीं है। सर्वोच्च न्यायालय के कॉलेजियम में भारत के मुख्य न्यायाधीश सहित पांच वरिष्ठतम न्यायाधीश शामिल हैं। वे उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीशों के साथ न्यायाधीशों की उच्चतम न्यायालय में पदोन्नति, न्यायाधीशों की मुख्य न्यायाधीशों के रूप में पदोन्नति और न्यायाधीशों की पदोन्नति पर विचार करेंगे। मतभेद की स्थिति में बहुमत का मत मान्य होता है। चूंकि संविधान न्यायपालिका में नियुक्तियों के लिए भारत के मुख्य न्यायाधीश के साथ परामर्श को अनिवार्य बनाता है। जिससे कॉलेजियम मॉडल विकसित हुआ।

Exit mobile version