होली पर रिश्तों में मिठास घोलती है शक्कर की यह माला…महाकौशल अंचल की स्पेशल मिठाई है यह….जानें क्यों कहते हैं इसे ‘हर्रा’

Sugar garland adds sweetness to relationships on Holi special sweet of Mahakoshal region

होली पर रिश्तों में मिठास घोलती है शक्कर की यह माला…महाकौशल अंचल की स्पेशल मिठाई है यह….जानें क्यों कहते हैं इसे ‘हर्रा’

होली का पर्व रंग-गुलाल लगाकर शुभकानाएं देने के साथ ही रिश्तों में खुशियों के गहरे रंग और मिठास को घोलने का भीहै। महाकोशल अंचल के लोग आज भी होली पर शक्कर की माला भेंट करने की परंपरा को संजो कर रखे हुए हैं। हालांकि पहले की तुलना में इसका उपयोग कम हुआ है, लेकिन महत्व बरकरार है। बात करें महाकौशल के मंडला जिले की तो यहां होली के पर्व पर शक्कर की माला की परंपरा बरकरार है। आज भी इस क्षेत्र क्विंटलों में मिठाई माला बनती है।

महाकौशल अंचल के मंडला जिले में होली के अवसर पर शक्कर से बनी बताशों और गांठी की माला बनाने की परंपरा आज भी जीवित है। यह पारंपरिक मिठाई न केवल देवताओं को अर्पित की जाती है, बल्कि मेहमानों को भेंट करने और पारिवारिक प्रेम को प्रकट करने के लिए भी उपयोग होती है। इस बार भी जिले के कई हिस्सों में घरों में शक्कर की मालाएं तैयार कर बाजार में सजाई गई हैं।

कहते हैं रिश्तों में मिठास बनाए रखने और राग-द्वेष, बैर की होली जलाकर उन्हें प्रेम की मीठी माला में पिरोकर एक दूसरे को गले लगाना ही होली का मुख्य उद्देश्य है। इसका जीवंत प्रतीक है यह शक्कर वाली माला। यह माला केवल होली पर्व पर ही बाजार में दिखाई देती है। इसे भेंट करने के पीछे उद्देश्य होता था कि हम जिस भी रिश्ते को निभा रहे हैं, वह रिश्ता इसी की तरह मीठा बने रहे। बता दें शक्कर की माला का उपयोग पहले पर्व की एक मिठाई के तौर पर में भी किया जाता था।

25 प्रतिशत बचा व्यापार

महाकौशल क्षेत्र के व्यापारियों का कहना है पिछले एक दशक में शक्कर की माला का व्यापार अब मात्र 25 प्रतिशत ही बचा है। पहले 8 से 10 क्विंटल माला आसानी से बिक जाती थी। अब केवल 2 से 3 क्विंटल तक सिमट कर रह गईं हैं। क्षेत्र में कुछ ही परिवार ऐसे हैं जो इस परम्परा को आगे बढ़ाने के लिए युवाओं को इसकी जानकारी दे रहे हैं। इस बार शक्कर की माला की कीमत करीब 90 से 100 रुपए किलो तक बिक रही है।

रंगों के साथ मिठास भी घोलती है माला की परंपरा

होली केवल रंग-गुलाल तक सीमित नहीं, बल्कि यह रिश्तों में मिठास घोलने और बैर-द्वेष को भुलाकर प्रेम बढ़ाने का पर्व भी है। माहिष्मति क्षेत्र मंडला की बात करें तो यहां के लोग आज भी शक्कर की माला भेंट करने की परंपरा को संजोए हुए हैं। यह परंपरा रिश्तों में मिठास बनाए रखने और प्रेम की डोर को मजबूत करने के लिए प्रारंभ की गई थी। मंडला स्थित पुरवा सकवाह क्षेत्र के व्यापारियों की माने तो पिछले एक दशक में शक्कर की माला का व्यापार कम हुआ है। हालांकि, कुछ परिवार इस परंपरा को जीवित रखने के लिए अपने क्षेत्र के युवाओं को इसकी जानकारी दे रहे हैं। पहले यह पर्व की विशेष मिठाई के रूप में प्रचलित थी, लेकिन अब यह केवल होली के अवसर तक सीमित हो गई है।

आदिवासी अंचल में मिठाई माला की परंपरा

इतिहासकार बताते हैं महाकौशल क्षेत्र के मंडला जिले के आदिवासी अंचलों में “मिठाई माला” या “बतेसा माला” बनाने की विशेष परंपरा चली आ रही है। रंग और गुलाल लगाने के बाद लोग एक-दूसरे को मिठाई की माला पहनाकर गले लगाते हैं। वहीं, भाई दूज के दिन भी बहनें अपने भाइयों को तिलक करने के बाद मिठाई की माला भेंट करती हैं। यह परंपरा काफी पुरानी है। हालांकि अब इस तरह की माला तैयार करने वाले हलवाई और कारीगर सीमित रह गए हैं। इस मिठाई को बनाने के लिए सागौन की लकड़ी से बने सांचे का ही उपयोग किया जाता है।

आसान नहीं है शक्कर की माला बनाना

मिठाई माला बनाने की प्रक्रिया पारंपरिक होने के साथ ही बहुत मेहनत के साथ बनाई जाती है। इस माला को बनाने में बड़े भट्टों पर शक्कर को पानी के साथ कड़ाही में पकाया जाता है। जिससे चाशनी बनाई जाती है। फिर इस साफ चाशनी को गाढ़ा किया जाता है। जब यह चाशनी जमने योग्य हो जाती है, तो इसे धागे लगे सांचों में डाला जाता है। जिससे मिठाई माला तैयार होती है।

परंपरा को संरक्षण की दरकार

हालांकि, बाजारवाद और संसाधनों की कमी के चलते यह परंपरा धीरे-धीरे विलुप्त होने की कगार पर है। जिले में अब केवल कुछ ही परिवार इस मिठाई को बना रहे हैं। जिससे इसका व्यापार लगातार कम होता जा रहा है। फिर भी महाकौशल अंचल में मंडला के लोग इस परंपरा को बचाने के प्रयास कर रहे हैं, ताकि आने वाली पीढ़ियां भी शक्कर की माला के साथ रिश्तों की मिठास बनाए रखने की इस पुरानी परंपरा को संजोया जा सकें।….प्रकाश कुमार पांडेय

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