सादगी की मिसाल थीं अभिनेत्री स्मिता पाटिल …आज भी आदर और आत्मीयता से लेते हैं चाहने वाले उनका नाम
भारतीय सिनेमा की दुनिया में जब भी वास्तविकता और संवेदना की बात होती है, तो स्मिता पाटिल का नाम आदर और आत्मीयता के साथ लिया जाता है। उन्होंने न सिर्फ समानांतर सिनेमा को नयी ऊँचाइयाँ दीं, बल्कि अपनी सादगी, गंभीरता और अभिनय के प्रति समर्पण से लाखों दिलों को छुआ।
सादगी से भरी जीवनशैली
स्मिता पाटिल की सादगी सिर्फ परदे पर ही नहीं, निजी जीवन में भी उतनी ही गहराई से झलकती थी। जहाँ एक ओर 1980 के दशक में फिल्मी अभिनेत्रियाँ चकाचौंध और ग्लैमर में लिपटी रहती थीं, वहीं स्मिता खादी की साड़ी, बिना मेकअप और खुले बालों में सहज रूप से नज़र आती थीं। वे दिखावा नहीं करती थीं, और कैमरे के बाहर भी वैसी ही थीं जैसी कैमरे के सामने।
उनका रहन-सहन एक आम महिला की तरह था – बिना तामझाम, बिना अतिरिक्त सजावट। उन्होंने सिनेमा को कभी सिर्फ प्रसिद्धि और पैसा कमाने का जरिया नहीं बनाया। उनके लिए अभिनय एक सामाजिक और संवेदनशील माध्यम था। वे अपने किरदारों में गहराई से उतरती थीं और अपने अभिनय में इतनी सच्चाई लाती थीं कि दर्शक उन्हें भूल नहीं पाते।
सामाजिक मुद्दों की पक्षधर
स्मिता पाटिल की फिल्मों की चुनाव प्रक्रिया भी उनकी सादगी और सोच की गवाही देती है। उन्होंने ग्लैमर से भरपूर भूमिकाओं के बजाय सामाजिक मुद्दों पर आधारित फिल्मों को तरजीह दी। ‘भूमिका’, ‘चक्र’, ‘मंथन’, ‘निशांत’, ‘अर्धसत्य’ और ‘मिर्च मसाला’ जैसी फिल्मों में उन्होंने उन किरदारों को निभाया जिनमें भारतीय महिला की वास्तविक पीड़ा, संघर्ष और जिजीविषा को दर्शाया गया।
वे एक संवेदनशील कलाकार थीं जो कैमरे को सामाजिक बदलाव का औज़ार मानती थीं। वे महिला अधिकारों, किसानों की समस्याओं, और आम जनजीवन की सच्चाइयों को लेकर गहराई से जुड़ी थीं।
ग्लैमर से दूरी, कला से निकटता
स्मिता का सौंदर्य ग्लैमर से परे था—वह सौंदर्य जो आत्मा से आता है, आंखों में सच्चाई से चमकता है और संवादों में संवेदना से बोलता है। उन्होंने कभी बॉलीवुड के लोकप्रिय ढर्रे पर चलने का प्रयास नहीं किया। इसके बावजूद, या शायद इसी वजह से, वे एक सशक्त कलाकार के रूप में स्थापित हुईं। वे अक्सर मीडिया से भी दूरी बनाए रखती थीं। बिना चर्चा में आए, उन्होंने अपनी पहचान बनाई। यही वजह है कि उन्हें केवल एक अभिनेत्री नहीं, बल्कि एक सांस्कृतिक प्रतीक के रूप में देखा जाता है।
निजी जीवन में भी उतनी ही सरल
स्मिता अपने निजी जीवन में भी एक सामान्य, भावनाशील और विचारशील महिला थीं। उनके रिश्ते, विशेषकर राज बब्बर के साथ, सार्वजनिक चर्चा का विषय रहे, लेकिन उन्होंने कभी इन मुद्दों को प्रचार का साधन नहीं बनाया। उनकी असमय मृत्यु ने भारतीय सिनेमा को गहरा आघात पहुँचाया था। मात्र 31 वर्ष की आयु में, जब उन्होंने एक बेटे को जन्म दिया और कुछ ही समय बाद दुनिया को अलविदा कहा तो लाखों प्रशंसकों की आंखें भी नम हो गईं थी।
एक प्रेरणा, एक विरासत
आज जब फिल्मों में वास्तविकता और गहराई की बात होती है, तो स्मिता पाटिल की मिसाल दी जाती है। नई पीढ़ी की कई अभिनेत्रियाँ उनके अभिनय और दृष्टिकोण से प्रेरणा लेती हैं। उनकी सादगी, उनकी संवेदना और उनके कार्यों की प्रामाणिकता आज भी उन्हें ज़िंदा रखती है। वे एक ऐसी अभिनेत्री थीं, जिन्होंने हमें सिखाया कि अभिनय केवल किरदार निभाने का नाम नहीं, बल्कि समाज को समझने, अनुभव करने और संवेदना के साथ प्रस्तुत करने की कला है। और यही सादगी, यही गहराई, उन्हें सच्चे अर्थों में महान बनाती है।…(प्रकाश कुमार पांडेय)