देश अगले साल लोकसभा चुनाव होने जा रहे हैं। तमाम विपक्षी दल भाजपा को हराने के लिए एकजुटता के दावे कर रहे हैं। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी बार बार कह रहे हैं कि मैं सभी को एकजुट करके भाजपा को सबक सिखाएंगे। ऐसे तमाम दावों के बाद कई विपक्षी नेताओं के जो बयान आ रहे हैं उनको देखकर कहा जा सकता है कि विपक्षी एकता में दरार पड़ रही है। इस दरार को भाजपा देखे न देखे पर विपक्षी दल के नेता खुद आगे होकर इस दरार की तरफ इशारा कर रहे हैं। आइए जानते हैं क्या मामला है।
सबसे पहले बात करते हैं केसीआर की
केसीआर तेलंगाना के मुख्यमंत्री है। उन्होंने हाल ही में जो कहा है वो सभी को चौकाने वाला है। केसीआर ने कांग्रेस पर तंज कसते हुए कहा कि कर्नाटक में भले ही कांग्रेस जीत गई है और भाजपा हार गई है। इसका मतलब ये बिलकुल नहीं है कि कर्नाटक में सबकुछ बदल जाएगा। जैसा था वैसा ही रहेगा। मतलब यहां कोई बदलाव होने वाला नहीं है। बीते 75 सालों से हम यही देखते आ रहे हैं। केसीआर का यह सीधे तौर पर कांग्रेस पर तंज था । उनका ये बयान उस समय आया है जब अगले साल लोकसभा चुनाव होना है और कई विपक्षी दल भाजपा को हराने के लिए ताल ठोकने में लगे हुए हैं।
तेलंगाना में आमने सामने होंगे केसीआर और कांग्रेस
तेलंगाना में कांग्रेस और केसीआर के बीच सीधे तौर पर आमने सामने की लड़ाई मानी जा रही है। इसी साल होने जा रहे विधानसभा चुनाव में दोनों दलों में सीधा मुकाबला होने की संभावना है। बीते 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस दूसरे नंबर की पार्टी थी। तब केसीआर को 47.4 प्रतिशत वोट के साथ 88 सीटें मिली थीं। जबकि कांग्रेस 28.7% वोट के साथ 19 सीटों पर काबिज हुआ थी। ऐसे में कांग्रेस केसीआर को भी मुख्य विपक्षी के तौर पर ही देखती है। इतना ही नहीं केसीआर ने हाल ही में महाराष्ट्र में अपनी पार्टी के विस्तार का ऐलान किया है। अगर केसीआर अपनी कोशिशों में सफल होते हैं, तो कांग्रेस को राज्य में नुकसान उठाना पड़ सकता है।
कर्नाटक जीत से उत्साहित है कांग्रेस
भाजपा विरोधियों का एक लक्ष्य भाजपा को हराना है। ये बात केसीआर अपने हाल ही में किए गए कई राजनीतिक दौरे में कह चुके हैं। बीते दिनों बिहार सीएम नीतीश कुमार ने भी भाजपा को हराने के लिए एकजुट होने की बात कही थी, वहीं राहुल गांधी की सदस्यता जाने के बाद,कांग्रेस विपक्षी एकता से जुड़े इस अभियान में और तेजी से जुट गई है। और तो और कांग्रेस को कर्नाटक की जीत के बाद लगने लगा है कि भाजपा को मात देना कोई बड़ी बात नहीं है।
विपक्ष का नेता कौन होगा
विपक्ष को एकजुट करने के हो रहे तमाम प्रयासों के बीच एक सवाल सबसे बड़ा है कि इसका मुखिया कौन बनेगा। इस सवाल का जवाब फिलहाल किसी के पास नहीं है।विपक्षी एकता और थर्ड फ्रंट बनाने के लेकर कई तरह के दावे तो होते हैं, लेकिन इनका अगुआ कौन होगा, इस सवाल पर कोई सटीक उत्तर नहीं सामने आता है। एनसीपी के मुखिया शरद पवार ने भी बीते दिनों कई फैसलों में विपक्ष से अलग राय रखकर सभी को चौंकाया था।
केजरीवाल से बढ़ी कांग्रेस की तकरार
दिल्ली और पंजाब में कांग्रेस से आम आदमी पार्टी की टकरार किसी से छुपी नहीं है। यहां दोनो ही दलों में सियासी स्पर्धा चलती रहती है। जिस शराब घोटाले की जांच की आंच मुख्यमंत्री केजरीवाल तक पहुंची थी, वह मामला कांग्रेस ने ही उठाया था। वहीं पंजाब में आम आदमी पार्टी ने कांग्रेस को सत्ता से बेदखल किया है। हालांकि जब सीएम केजरीवाल को सीबीआई ने पूछताछ के लिए बुलाया था तो उससे पहले कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने उन्हें कॉल किया था। इस तरह की कांग्रेस से चल रही सियासी टसन के बीच कर्नाटक में आयोजित शपथ ग्रहण समारोह में सीएम केजरीवाल को नहीं बुलाना भी अपने आप में एक सवाल है। कांग्रेस ने सिद्धारमैया की ‘ताजपोशी’ में दिल्ली सीएम केजरीवाल को भी नहीं बुलाया है। इसे लेकर आम आदमी पार्टी की ओर से भी प्रतिक्रिया आई है। इसे लेकर सौरभ भारद्वाज ने कहा कि, इसमें क्या बड़ी बात है, कोई बुलाता है और कोई नहीं।’