कई बार बदला शिवसेना का चुनाव चिन्ह

रेल इंजन से धनुष-बाण तक

कई बार बदला शिवसेना का चुनाव चिन्ह

रेल इंजन से धनुष-बाण तक

महाराष्ट्र में इन दिनों शिवसेना पर अधिकार को लेकर उद्धव ठाकरे और सीएम एकनाथ शिंदे के सियासी जंग छिड़ी हुई है। जो अब अहम पड़ाव पर आ गई है। भारत निर्वाचन आयोग ने पार्टी के नाम और चुनाव चिह्न धनुष बाण को फ्रीज कर दिया है। यही वजह है कि उद्धव ठाकरे और एकनाथ शिंदे को अब नया विकल्प नया नाम ही नहीं चिह्न भी नया चुनना होगा। शिवसेना का चुनावी इतिहास दशक से ज्यादा पुराना है। ये वो पार्टी है जो कई बार अलग अलग चिह्नों पर चुनावी समर में उतरी।

1966 में बाल ठकरे ने रखी थी नींव

1966 में दिवंगत बाल ठाकरे ने शिवसेना की नींव रखी थी। पार्टी की स्थापना से अब तक चुनावी सफर में कई चिह्न नजर आए। जिनमें कभी रेल इंजन तो कभी पेड़ और ढाल.तलवार के दम पर चुनाव लड़ा गया। बात करें साल 1989 की तो तब चार सांसदों के लोकसभा पहुंचने के बाद पार्टी को मौजूदा धनुष बाण का चिह्न आवंटित हुआ था। पार्टी को नाम बाल ठाकरे के पिता केशव सीताराम ठाकरे प्रबोधंकर ने रखा था।

अलग-अलग चुनाव अलग-अलग चिह्न

1966 से अस्तित्व में आई शिवसेना ने 1968 में मुंबई नगर निगम का चुनाव में उतरी। उस समय पार्टी का चिह्न ढाल और तलवार था। वहीं 1980 के दशक समय में पार्टी का रेल इंजन चिह्न चर्चा में रहा। साल 1978 का चुनाव पार्टी ने रेल इंजन के निशान पर ही लड़ा था। लेकिन साल 1985 के विधानसभा चुनाव में शिवसेना के उम्मीदवार टॉर्च, बैट बॉल जैसे चिह्न लेकर मैदान में उतरे थे।

उपचुनाव से पहले फिर नया चिह्न

मौजूदा दौर की बात करें तो चुनाव आयोग की तरफ से यह फैसला ऐसे समय पर लिया गया है। जब पार्टियां अंधेरी पूर्व में उपचुनाव के लिए तैयारियां कर रही हैं। ऐसे में आयोग की तरफ से पार्टी के नाम और चिह्न को फ्रीज करना शिवसेना के सामने नई चुनौती के रुप में आया है। फिलहाल, पार्टी को दूसरे चिह्न आवंटित किए जाएंगे। आयोग की ओर से दिए गए चिन्ह् में से  दोनों गुट अपना पसंदीदा चिन्ह् चुन सकते हैं।

56 साल शिवसेना में हुई टूट

शिवसेना की शुरुआत 56 साल पहले 1966 में हुई थी। इसके बाद कई उतार चढ़ाव पार्टी ने देखे। अब उसी शिवसेना को जून 2022 में फूट का सामना भी करना पड़ा। दरअसल पार्टी के दिग्गज एकनाथ शिंदे के समर्थन में करीब 50 विधायकों ने उद्धव को अलविदा कह दिया था। जिससे राज्य में महाविकास अघाड़ी की सरकार भरभरा कर गिर गई।। इसके बाद में शिंदे गुट ने भारतीय जनता के साथ मिलकर महाराष्ट्र में नई सरकार स्थापित की। जिसमें शिंदे सीएम बने।

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