आज हम आपको बताऐं एक मंदिर के बारे में। इस मंदिर को लेकर आजतक ये तय नहीं है कि इसे इंसानों बनाया है या एलियन ने।इंसानों ने बनाया इस बात पर भरोसा इसलिए भी नहीं है कि मंदिर की जो नक्काशी है जो डिजाइन है इंसानों को बनाने में सालों साल लग जाऐंगे कई पीढ़िया इसे बनाए तक शायद ये बनकर तैयार हो इसीलिए माना जाता है कि इसे शायद दैवीय शक्तियों ने या एलियन ने बनाया है।दरअसल इस मंदिर को देखकर यही कहा जा सकता है कि इसका निर्माण इंसान तो नहीं कर सकता वो भी उस युग में जब किसी तरह की तकनीकी विकसित नहीं थी। इसलिए कहा जाता है कि इसे या तो दैवीय शक्तियों ने बनाया है या फिर एलिन्स ने।
महाराष्ट्र के औरंगाबाद जिले में है मंदिर
हम बात कर रहे है एलोरा के कैलाश मंदिर की। एलौरा का कैलाश मंदिर जो एक ही चट्टान को काटकर बनाया गया है। इसकी बनावट भी ऐसी है कि चट्टान को ऊपर से नीचे की ओर काटा गया है। एक ही पत्थर को तराश कर उसमें भगवान , भगवना विष्णु, हाथी,घोड़ा सब बड़ी खूबसूरती से बने हैं और इसमें नक्काशीदार हजारों खंभे भी बने है। ये मंदिर प्रसिद्द एलौरा की गुफाओं में बना है। कहा जाता है कि इस मंदिर के ऊपर पहले कैलाश पर्वत की तरह सफेद चादर दिखाई देती थी इसलिए इसका नाम कैलाश मंदिर पड़ा। कैलाश मंदिर की बनावट उसका आर्किटेक्ट देखकर सभी हैरान है। शिव भगवान का ये दो मंजिला मंदिर है। ऐसा माना जाता है कि इस मंदिर को तीस लाख हाथ पत्थर काटकर बनाया गया है। मंदिर की भव्यता और आकार के बारे मे कहा जाता है कि पूरा ताज इस मंदिर पर रखा जा सकता है और तो और ऐंथेंस के गाडेसेस फ्लोरा का पार्थेनन मंदिर इसमें रखा जा सकता है। ये मंदिर इन सभी इमारतों से डेढ़ गुना बड़ा बना है। जिस चट्टान पर ये मंदिर बना है वो 276 फुट लंबी और 154 फुट चौड़ी है। चट्टान का वजट चालीस हजार टन बताया जाता है।
भव्य है मंदिर
ऐसा माना जाता है कि- इस मंदिर को बनाने में करीबन 100-150 साल लगें होंगे और पीढियों ने इसके लिए काम किया होगा। लेकिन ये मंदिर मात्र 18 साल में बनकर तैयार हुआ है। यही कारण है कि मंदिर के बारे मे कहा जाता है कि इसे दैवीय शक्तियों ने बनाया है।
मंदिर के प्रवेश द्वार में मंडप बना है और कई तरह की मूर्तियां है। दो मंजिला बने इस मंदिर को अंदर और बाहर दोनों ही तरफ से मूर्तियों से सजाया है। मंदिर के सामने बने मंडप में नंदी विराजमान है और उसके दोनों ओर विशालकाय हाथी और खंबे बने हैं। मंदिर में महाभारत के प्रसंग भी उकेरे गए हैं तो वही भवगाव विष्णु के साथ साथ शिव और पार्वती की खूबसूरत भाव भंगिमाओं की मूर्तियां है। मंदिर दो मंजिला है और इसमें चढ़ने उतरने के लिए सीढिया भी बनी है। मंदिर के अंदर ढेर सारी गुफाऐं है। ऐसा कहा जाता है कि इन गुफाओं से कई रास्ते जाते हैं और अनुमान है कि इस मंदिर की गुफाओं के अंदर एक पूरी दुनिया बसी होगी। अंग्रेजों ने गुफाओं में जाने की कोशिश की लेकिन अंदर से रेडियो एक्टिव किरणें आने लगी जिससे गुफाओं को बंद कर दिया गया। मान्यता है कि मंदिर का निर्माण जिस अस्त्र के किया गया होगा उसको वहीं गुफाओं में रख दिया होगा।
मंदिर के अंदर हैं कई सुरंगे
मंदिर निर्माण की कहानी कुछ ऐसी है कि इस तरह की मान्यताओं को बल मिलता है। मंदिर का निर्माण राष्ट्रकूट राजा कृष्ण की पत्नी ने 756 से 776 ई में करवाया। बताया जाता है कि राजा को किसी अज्ञात बीमारी ने घेर लिया तब उनकी पत्नी ने मन्नत मांगी थी जब राजा ठीक हो जाऐंगे तब वो शिव मंदिर बनवाऐंगी और जब तक मंदिर का निर्मण पूरा नहीं होगा तब तक वो व्रत रखेंगी। लेकिन कारीगरों न बताया कि जितना बड़ा मंदिर बनना है उसमें बहुत वक्त लगेगा इसलिए व्रत नहीं रखा जा सकता। तब कृष्ण प्रथम की पत्नी ने भगवान शिव से प्रार्थना की और भगवान ने एक अस्त्र देकर इस मंदिर को निर्माण जल्दी से जल्दी करवाया। इस मंदिर को औरंगजेब ने तोड़ना चाहा लेकिन छोटे मोटे नुकसान के अलावा वो इस मंदिर का कुछ नहीं बिगाड़ सका। वही यूनेस्कों ने इस मंदिर को वलर्ड हैरिजेट में भी शामिल किया है।