क्रांतिकारी साधु थे शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती

क्रांतिकारी साधु थे शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती

क्रांतिकारी साधु थे शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती

दो पीठ के शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती का निधन निश्चित ही समूचे सनातन धर्म के लिए एक अपूरणीय क्षति है। किसी भी धर्म का कोई इतना बड़ा गुरू जब अपनी देह त्यागता है तो वह घड़ी उनके अनुयायियों के साथ ही उस पूरे समाज ले लिए भी बड़ा आघात होता है। स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती मप्र के नरसिंहपुर स्थित झोतेश्वर आश्रम में ही निवास करते थे। द्वारका और ज्योर्तिमठ के शंकराचार्य का अंतिम संस्कार उनके इसी आश्रम में होगा। चूंकि वह शीर्ष साधु.संत थे। लिहाजा हिंदू परंपरा के अनुसार उन्हें भू समाधि दी जाएगी। स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती ज्योतिर्मठ बद्रीनाथ और शारदा पीठ द्वारका के शंकराचार्य थ। उन्होंने मध्य प्रदेश के नरसिंहपुर जिले के झोतेश्वर स्थित परमहंसी गंगा आश्रम में रविवार दोपहर 3 बजकर 50 मिनट पर अंतिम सांस ली। स्वरूपानंद सरस्वती को हिंदुओं का सबसे बड़ा धर्मगुरु माना जाता था।
9 साल की आयु में छोड़ दिया था घर

 9 साल की आयु में छोड़ दिया था घर 
2 सितंबर 1924 को मध्यप्रदेश के जबलपुर स्थित छोटे से गांव दिघोरी में  स्वरूपानंद सरस्वती का जन्म हुआ था। उन्होंने महज 9.10 साल की उम्र में ही घर.बार छोड़कर धार्मिक शिक्षा ग्रहण करने के लिये सीधे काशी का रुख कर लिया था। धर्म को धारण करने वाले इस संन्यासी ने राष्ट्रयज्ञ में भी बढ़.चढ़कर अपना योगदान दिया। जब साल 1942 में अंग्रेजों भारत छोड़ो का नारा दिया गया तो स्वामी स्वरुपानंद जी जी भी स्वतंत्रता संग्राम का हिस्सा बने। आजादी की लड़ाई में वे जेल में भी रहे। 19 साल की आयु में वह क्रांतिकारी साधु के रूप में प्रसिद्ध हुए। उन्हें वाराणसी में 9 महीने और मध्यप्रदेश की जेल में 6 महीने कैद रखा गया। जगदगुरु शंकराचार्य का अंतिम जन्मदिन हरितालिका तीज के दिन मनाया गया था। ।  99 बरस की उम्र में ब्रह्मलीन होने वाले स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती ऐसे शंकराचार्य रहे जो अपने मुखर बयानों के लिए पहचाने जाते थे। साल 1990 में राजीव गांधी के जीवित रहते हुए उन्होंने ही प्रियंका गांधी के गृह प्रवेश की विधि.विधान से पूजा करवाई थी। यही वजह है कि उन्हें श्रद्धांजलि देते वक्त प्रियंका ने उस घटना का जिक्र अपने ट्वीट में भी किया।

1981 में मिली शंकराचार्य की उपाधि
स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती महाराज 1950 में दंडी संन्यासी बनाए गए थे। ज्योर्तिमठ पीठ के ब्रह्मलीन शंकराचार्य स्वामी ब्रह्मानन्द सरस्वती से दण्ड सन्यास की दीक्षा ली और स्वामी स्वरूपानन्द सरस्वती नाम से जाने जाने लगे। उन्हें 1981 में शंकराचार्य की उपाधि मिली। मान्यता है कि करीब 1300 साल पहले आदि गुरु भगवान शंकराचार्य ने हिंदुओं और धर्म के अनुयायी को संगठित करने और धर्म के उत्थान के लिए पूरे देशभर में चार धार्मिक मठ स्थापित किये थे। इन चार मठों में से एक के शंकराचार्य जगतगुरु स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती थे। जिनके पास द्वारका मठ और ज्योतिर मठ दोनों थे। ज्योतिपीठाधीश्वर और द्वारका शारदापीठाधीश्वर जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानन्द सरस्वती जी महाराज सनातन धर्म के प्रमुख थे। साथ ही रामसेतु रक्षक, गंगा को राष्ट्रीय नदी घोषित करवाने वाले तथा रामजन्मभूमि के लिए लंबा संघर्ष करने वालेए गौरक्षा आन्दोलन के प्रथम सत्याग्रहीए रामराज्य परिषद् के प्रथम अध्यक्ष, पाखण्डवाद के प्रबल विरोधी रहे थे।

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