नई दिल्ली। नई संसद भवन के उद्घाटन से पहले प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने शनिवार को पीएम आवास में तमिलनाडु के अधिनम से मुलाकात की। इस बीच सेंगोल को पीएम मोदी को सौंप दिया गया। अधिनम ने वैदिक मंत्रोच्चार के साथ शक्ति हस्तांतरण के रुप में सेंगोल सौंपा। इसके साथ ही एक सांस्कृतिक विरासत पीएम को सौंपी गई। बता दें यह सेंगोल लोकसभा अध्यक्ष की कुर्सी के बराबर में स्थापित किया जाएगा। पीएम नरेंद्र मोदी रविवार को नई संसद भवन का उद्घाटन करेंगे।
0- पीएम को तमिलनाडु के अधिनम ने सौंपा सेंगोल
0- एम मोदी ने की तमिलनाडु के अधिनम से मुलाकात
0- रविवार को देश को मिलेगी नए संसद भवन की सौगात
0- लोकसभा अध्यक्ष की कुर्सी के बराबर में स्थापित किया जाएगा सेंगोल
0- प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी रविवार को करेंगे नई संसद भवन का उद्घाटन
इस परंपरा के विघटन के समय 21 अधिमन उपस्थित थे। इससे पहले, पीएम मोदी को एक सुनहरा अंगवस्त्रम दिया गया। उसके बाद उन्होंने वैदिक अनुष्ठान के अनुसार अधनम से एक सेनगोल प्राप्त किया। इस दौरान वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण भी मौजूद रहीं। मदुरै अधिनम मंदिर के प्रमुख महंत अधिनम हरिहर दास स्वामीगल ने पीएम मोदी को सेंगोल सौंपा। उन्होंने पहले कहा था कि सेंगोल तमिल संस्कृति की धरोहर है। जानकारी के मुताबिक रविवार को निर्धारित नए संसद भवन के उद्घाटन समारोह से पहले शनिवार को अधिनम महंत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आवास पर पहुंचे थे। जहां पीएम मोदी ने अधिनम महंत से मुलाकात करने के साथ ही उनका आशीर्वाद भी लिया। अधिनम महंत ने सेंगोल को प्रधानमंत्री मोदी को सौंपा। बता दें कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 28 मई को नए संसद भवन का उद्घाटन करेंगे। नए संसद भवन का उद्घाटन वैदिक समारोह से होगा। इससे पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शुक्रवार को कहा था कि नया संसद भवन हर भारतीय को गौरवान्वित करेगा।
सेंगोल 5 फीट लंबा है
इससे एक दिन पहले सेंगोल की खास तस्वीरें भी सामने आई थीं। 5 फीट लंबे चांदी के सेंगोल को सोने से सजाया गया है। इसके ऊपर नंदी विराजमान हैं। इस पर ध्वजा बनी हुई है। इनके नीचे तमिल भाषा में भी कुछ लिखा हुआ है। दरअसल हाल ही में प्रयागराज से लाकर इसे दिल्ली के म्यूजियम में रखा गया था। इस सेंगोल को 1947 में बनाया गया था।
संसद में सेंगोल स्थापित किया जाएगा
नई संसद में सेंगोल को स्थापित करने से पहले इसे एक बार फिर पवित्र जल से शुद्ध किया जाएगा। एक बार फिर वैदिक मंत्रों से गूंजेगी संसद एक बार फिर संसद में शंख ध्वनि होगी। इसके बाद इसे प्रधानमंत्री मोदी को सौंप दिया जाएगा, जो इसे नए टेंपरेचर में स्थापित करेंगे
क्या है सेंगोल का इतिहास
सेंगोल के इतिहास की बात करें तो 14 अगस्त 1947 को रात पौने 12 बजे, वायसराय लॉर्ड माउंटबेटन द्वारा भारत के पहले प्रधान मंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू को ‘सेनगोल’ भेंट किया गया था। यह ‘सेनगोल’ अंग्रेजों के हाथों से भारत सरकार के हाथों में सत्ता के हस्तांतरण के प्रतीक के रूप में नेहरू को दिया गया था। इसी महीने की 25 तारीख को छपी एक अंग्रेजी पत्रिका पत्रिका में भी इस घटना का जिक्र था। उस घटना के करीब 75 साल बाद उसी ‘सेंगोल’ को नई संसद के उद्घाटन के बाद लोकसभा अध्यक्ष की कुर्सी के बगल में रखा जाएगा। यह ‘सेनगोल’ क्या है? इसका क्या महत्व है? वह पिछले साढ़े सात दशक से कहां हैं? नए संसद भवन में क्यों रखा जाएगा ‘सेंगोल’? इन सवालों के जवाब जानने के लिए भारत के इतिहास में गहरी खुदाई करनी होगी। बता दें चोल वंश, भारत में सबसे पुराने और सबसे लंबे समय तक चलने वाले राजवंशों में से एक है। एक सेंगोल (राजदंड) के माध्यम से सत्ता हस्तांतरण करता था। 9वीं शताब्दी और 13वीं शताब्दी के बीच, हिंदू साम्राज्यों ने प्रतीकात्मक रूप से शक्ति प्रदान की जब एक राजा ने दूसरे राजा को सिंहासन सौंप दिया। स्थानांतरण के समय साम्राज्य के मुख्य पुजारी भगवान शिव की पूजा की जाती थी। उस समय सी राजगोपालाचारी ने विचार किया कि जब देश अंग्रेजों की गुलामी से मुक्त होने जा रहा है तो सत्ता हस्तांतरण के लिए इस पवित्र दंड से बेहतर ओर क्या हो सकता है। उन्होंने जवाहरलाल नेहरू से बात की और उनके सुझाव को स्वीकार कर लिया गया। एक डॉक्यूमेंट्री के अनुसार, राजगोपालाचारी ने तमिलनाडु में थिरुववदुरई आदिनम मठ से संपर्क किया। इस मठ की स्थापना 500 साल पहले हुई थी। इस स्थान पर कभी चोल वंश का शासन था। मठ के गुरुजी से बात की तो गुरुजी मान गए लेकिन गुरुजी का स्वास्थ्य ठीक नहीं था। मठ के प्रमुख स्वामी ने मद्रास के जाने-माने जौहरी वुम्मीदी बंगारू को सेनगोल तैयार करने की जिम्मेदारी सौंपी। अंत में सेंगोल तैयार किया गया। जिस पर शक्ति, एकता और अखंडता के प्रतीक नंदी विराजमान हैं। इस सेंगोल को विशेष विमान से दिल्ली लाया गया। इस सेंगोल को 14 अगस्त 1947 की रात को लॉर्ड माउंटबेटन को सौंप दिया गया था। सेंगोल को गंगा जल से शुद्ध किया गया था। इसी सेंगोल के माध्यम से ब्रिटिश राज और भारत के बीच सत्ता का हस्तांतरण हुआ।