MP Assembly Election 2023:चुनाव से पहले बीजेपी में मंथन का दौर शुरु,कट सकता है सिंधिया समर्थक विधायकों का पत्ता,बिना सिंधिया समर्थक कैसे होगा अबकी बार 200 पार?

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MP Assembly Election 2023:मप्र में अगले साल 2023 में विधानसभा के चुनाव होना है। इसे लेकर कांग्रेस और BJP ने तैयारी तेज कर दी है। BJP ने कटनी में हुई एक अहम बैठक में अब बार 200 पार का नारा दिया है। टिकट वितरण के लिए सर्वे और मंथन शुरु कर दिया गया है। ​साफ छवि के प्रत्याशी मैदान में उतारने को लेकर रणनीति बनाई जा रही है। इस बीच चर्चा है कि ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ बीजेपी में शामिल होने वाले मंत्री और विधायकों का BJP पत्ता काट सकती है। यानी उन्हें चुनाव मैदान से दूर रखा जा सकता है। दरअसल कमलनाथ सरकार गिराकर बीजेपी में शामिल होने वाले सिंधिया समर्थक मंत्री विधायकों को एक बार टिकट देने की सहमति बनी ​थी। जो उपचुनाव में पूरी कर दी गई। यानी विधानसभा चुनाव में सिंधिया समर्थकों को फिर से टिकट दिए जाने की पूरी गारंटी नहीं है।

ऐसे में कांग्रेस छोड़ बीजेपी में शामिल होने वाले नेताओं के सामने सियासी भविष्य की चिंता सताने लगी है। हालांकि पार्टी सूत्र बताते हैं कि जिन नेताओं की छवि और कामकाज बेहतर है और जिनके जीतने के आसार होंगे पार्टी उन्हें अपना प्रत्याशी बना सकती है। लेकिन ऐसे नेता जिनके साथ पार्टी कार्यकर्ताओं का सामंजस्य नहीं बैठ पा रहा है पार्टी उनसे किनारा कर सकती है।

शर्त पूरी काम खत्म

दरअसल बीजेपी नेताओं की माने तो कांग्रेस छोड़कर पार्टी में शामिल होने वाले इन नेताओं के साथ जो सहमति बनी थी। उसके तहत सिर्फ एक बार टिकट देने की शर्त थी। जो उपचुनाव में टिकट देकर पूरी कर दी गई। अब आने वाले चुनाव में भी भाजपा उन्हीं नेताओं पर दांव लगाए ऐसा कोई वादा नहीं हुआ था। यही वजह है कि कांग्रेस छोड़कर भाजपा में आने वाले बहुत सारे नेताओं को भविष्य की चिंता सताने लगी है।

सबसे अधिक प्रभावित होगा ग्वालियर चंबल इलाका

बता दें कमलनाथ सरकार गिराने में ग्वालियर चंबल अंचल के सबसे अधिक विधायक शामिल थे। साल 2020 विधानसभा की 28 सीटों पर एक साथ उपचुनाव हुए तो उनमें सर्वाधिक सीटें ग्वालियर-चंबल की ही सीट थीं। यहां 16 सीटों पर उपचुनाव हुए थे। जिसमें से बीजेपी 10 सीटें ही जीत सकी थी। जबकि सरकार में बीजेपी के होते हुए पूरी ताकत लगाने के बाद भी छह सीटों पर कांग्रेस ने जीत ​हासिल की। तब मंत्री रहते हुए भी इमरती देवी, एंदल सिंह कंसाना और गिर्राज दंडोतिया को चुनाव में हार का सामना करना पड़ा था। अब परिस्थितियां बदल गई हैं। पूरे ग्वा​लियर चंबल क्षेत्र में कांग्रेसी एकजुट नजर आ रहे हैं। ऐसे में बीजेपी के सामने प्रत्याशियों का चयन जटिल हो गया है। पार्टी यदि सिंधिया समर्थकों पर दांव लगाती है तो उसके कार्यकर्ता चुनाव में कितना साथ देंगे इसका भरोसा नहीं है।

चुनाव से पहले बदल सकती है नरेंद्र सिंह तोमर की भूमिका

2023 के विधानसभा चुनाव की तैयारी में जुटी बीजेपी में इन दिनों सत्ता-संगठन में नए सिरे से कसावट लाने की कवायद की जा रही है। कार्यकर्ताओं में जोश जगाया जा रहा है। पार्टी संगठन स्तर पर अनुभवी लोगों को महत्वपूर्ण जिम्मेदारी देने की तैयारी में है। वहीं सरकार का चेहरा भी बदला जा सकता है। गुजरात फार्मूले के आधार पर सत्ता विरोधी रूझान को कम करने के लिए पार्टी नेतृत्व इसका फाइनल रोडमैप तैयार करने में जुटा है। चर्चा है कि इस सबके बीच केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर की मध्यप्रदेश में भूमिका बढ़ा सकती है। साल 2008 और वर्ष 2013 में तोमर के हाथों में ही राज्य बीजेपी की कमान थी। इन चुनाव में शिवराज और तोमर की जोड़ी ने शानदार परिणाम दिए थे। लेकिन 2018 में बीजेपी को विधानसभा चुनाव में हार का सामना करना पड़ा। हालांकि जोड़तोड़ से 2020 में बीजेपी ने सरकार जरूर बना ली लेकिन अब भी माना जा रहा है कि जमीनी स्तर पर पकड़ को और मजबूत किए जाने की आवश्यकता है। ऐसे में एक बार फिर नरेन्द्र सिंह तोमर को पार्टी मप्र में महत्वर्पूण जिम्मेदारी दे सकती है।

कई नेताओं की बढ़ेगी जिम्मेदारी

चुनाव से पहले बीजेपी ने नई रणनीति पर काम करना शुरु कर दिया है। जिसके नगरीय विकास और आवास मंत्री भूपेंद्र सिंह, सहकारिता मंत्री अरविंद भदौरिया और पूर्व मंत्री राजेंद्र शुक्ल को चुनाव में अहम भूमिका दी जा सकती है। दरअसल शुक्ल विंध्य का प्रतिनिधित्व करते हैं और शिवराज सरकार में मंत्री भी रह चुके हैं। माना जा रहा है कि 2020 में जब कमलनाथ सरकार गिराकर जब भाजपा की सरकार बनी थी तब राजेन्द्र शुक्ल को मंत्री नहीं बनाया गया था। बाद में उन्हें विधानसभा अध्यक्ष बनाए जाने की चर्चा रही लेकिन उन्हें मौका नहीं मिला। अब राजेन्द्र शुक्ल को फिर से मंत्री बनाकर या संगठन में महत्वपूर्ण जिम्मेदारी देकर मुख्यधारा में लाया जा सकता है। इसी तरह मंत्री भूपेंद्र सिंह और अरविंद भदौरिया को भी मिशन 2022 के लिए अहम जिम्मेदारी दिए जाने पर पार्टी आलाकमान विचार कर रहा है।

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