अनुसूचित जाति और जनजाति आरक्षण वर्गीकरण के फैसले पर समाजवादी पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव अचानक सक्रिय हो गए हैं। इससे दो सवाल खड़े होते हैं। पहला सवाल यह कि क्या अखिलेश ने बसपा प्रमुख मायावती के दबाव के चलते दलित और आदिवासी आरक्षण के वर्गीकरण पर अपनी खामोशी तोड़ी है? वहीं दूसरा सवाल यह है कि सपा प्रमुख अखिलेश यादव सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले का विरोध कर कौन सा सियासी हित साधने में जुटे हैं?
- अखिलेश ने आरक्षण के मुद्दे पर बीजेपी को भी घेरा
- बीजेपी सरकार कर ही है हर बार गोलमोल
- बीजेपी सहानुभूति बटोरने की कोशिश करती है
- पिछड़े, दलित और अल्पसंख्यक का भी किया जिक्र
- भाजपा पर से 90% पीडीए समाज का भरोसा कम हुआ
- आरक्षण के मुद्दे पर भाजपा की विश्वसनीयता शून्य हुई
समाजवादी पार्टी सुप्रीमो अखिलेश यादव ने आखिरकार 11 दिन बाद एससी और एसटी आरक्षण के वर्गीकरण पर अपनी खामोशी तोड़ी है। अखिलेश यादव ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले का विरोध किया है। इसे बीजेपी की चालबाजी करार दिया है। अखिलेश ने कहा दलित और आदिवासियों के आरक्षण में किसी भी तरह का बदलाव सपा को मंजूर नहीं है।
SC-ST आरक्षण वर्गीकरण —अखिलेश का स्टैंड?
सोशल मीडिया पर लिखी एक पोस्ट में सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने आरक्षण को प्राणवायु संजीवनी करार दिया और कहा आरक्षण का उद्देश्य उस समाज का विघटन नहीं समाज का सशक्तीकरण होना चाहिए। अखिलेश ने लिखा अनगिनत भेदभाव और मौकों की गैर-बराबरी की खाई पीढ़ियों से चले आ रहे ही चंद पीढ़ियों में आए परिवर्तनों से इसे पाट नहीं सकते।