लोकसभा चुनाव का सेमीफाइनल कहे जाने वाले पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव का ऐलान होते ही सियासी गरमाहट बढ़ गई है। मध्य प्रदेश के अलावा राजस्थान, छत्तीसगढ़ तेलंगाना और मिजोरम में विधानसभा चुनाव होना है। हिंदी पट्टी के तीन राज्यों के विधानसभा चुनाव की बात करें तो मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में सीधा मुकाबला भाजपा और कांग्रेस के बीच दिखाई दे रहा है। यहां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की भी प्रतिष्ठा दांव पर लगी दिखाई दे रही है क्योंकि पिछले साढ़े 9 साल के दौरान केंद्र की सत्ता में रहने के बाद नरेंद्र मोदी के लिए यह चुनाव एक तरह से लिटमस टेस्ट से काम नहीं होंगे। इन राज्यों के इन चुनाव में एक खास बात यह भी है कि यहां राज्यों की सरकारों ने अपने-अपने राज्य में लोक लुभावन घोषणाएं करने के रिकार्ड इस बार तोड़ दिए हैं। इन विधानसभा चुनाव में फ्रीबीज या चुनावी रेवड़ियों की भी परीक्षा होगी।
- लोकसभा चुनाव का सेमीफाइनल हैं पांच राज्यों के चुनाव
- पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव का ऐलान
- चुनावी ऐलान के साथ सियासत में आई गरमाहट
- मध्य प्रदेश के अलावा राजस्थान, छत्तीसगढ़
- तेलंगाना और मिजोरम में विधानसभा चुनाव
- हिंदी पट्टी के तीन राज्यों के विधानसभा चुनाव
- तीनों राज्य में सीधा मुकाबला भाजपा और कांग्रेस के बीच
- दांव पर लगी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की भी प्रतिष्ठा
- चुनाव एक तरह से लिटमस टेस्ट से काम नहीं
- विधानसभा चुनाव में फ्रीबीज या चुनावी रेवड़ी की परीक्षा
एमपी में चुनाव से पहले खोल दिया था शिवराज ने खजाना
पहले बात मध्य प्रदेश की करेंगे। जहां 2018 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी को कांग्रेस से चंद सीट कम मिली थी और कांग्रेस ने सत्ता में 15 साल बाद वापसी की थी। लेकिन कांग्रेस के युवा ज्योतिरादित्य सिंधिया को मुख्यमंत्री बनाए जाने के बदले अनुभवी कमलनाथ के हाथ में सत्ता की बागडोर सौंप दी गई थी। जिसके चलते सिंधिया और उनके समर्थक बगावत पर उतर आए। सिंधिया ने बगावत कर कांग्रेस का दामन छोड़ दिया और बीजेपी को अपना लिया। इस बगावत में सियासत में भी उलट फेर किया और तत्कालीन कमलनाथ सरकार ओंधे मुंह गिर गई। सिंधिया और उनके समर्थकों का साथ मिला तो बीजेपी ने फिर से मध्य प्रदेश में सत्ता पर कब्जा कर लिया शिवराज सिंह चौहान एक बार फिर मुख्यमंत्री बने। शिवराज के मुख्यमंत्री बनने के बाद से ही अमूमन यह कयासबाजी बढ़ती चली गई की मुख्यमंत्री बदला जाएगा। हालांकि चुनाव तक की बात आ गई। अभी भले ही चुनाव शिवराज सिंह चौहान के मुख्यमंत्री रहते लड़ा जा रहा है लेकिन कहा जा रहा है कि भाजपा सत्ता में लौटी है तो उन्हीं को कुर्सी मिलेगी इसका कोई स्पस्ट संकेत नजर नहीं आ रहा है। इसबार बीजेपी ने चुनाव में केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर से लेकर कुद्दावर नेता कैलाश विजयवर्गीय और केंद्रीय मंत्रियों के साथ सांसदों को टिकट देकर मैदान में उतार दिया है। इससे शिवराज सिंह चौहान की बेचैनी बढ़ गई है हालांकि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान भी फ्री बीज के सहारे सत्ता में वापसी की चाबी तलाश रहे हैं। ऐसे में बीजेपी बीजेपी के लिए सबसे बड़ा लाडली बहन योजना बन सकती है। इसके बाद गैस सिलेंडर की कीमत ₹450 में देना भी एक बड़ा सहारा बन सकता है। कांग्रेस में कमलनाथ के अलावा कोई बड़ा चेहरा नजर नहीं आ रहा। कमलनाथ अपने 15 महीने के कार्यकाल को लेकर जनता को लुभाने की कोशिश में जुटे हुए हैं। इधर कांग्रेस की महासचिव प्रियंका गांधी ने भी अपने भाई राहुल गांधी के साथ मोर्चा संभाल लिया है। वह लगातार मध्य प्रदेश के डर कर रही है और सत्ता विरोधी लहर के बीच भाजपा के लिए सत्ता में वापसी इतनी आसान भी नहीं होगी लेकिन कांग्रेस किस तरह मध्य प्रदेश में बीजेपी को टक्कर दे पाएगी। यह आने वाले 3 दिसंबर को ही पता चलेगा।
छत्तीसगढ़ में बीजेपी के पास नहीं है कोई चेहरा
छत्तीसगढ़ में भी 15 साल सत्ता में बाहर सत्ता से बाहर रहने के बाद कांग्रेस सरकार में लूटी तो भूपेश बघेल को मुख्यमंत्री बनाया गया यहां ढाई ढाई साल के फार्मूले पर शुरुआत में कमान भूपेश बघेल को सौंप गई थी। ढाई साल बाद अघोषित रूप से टीएस सिंहदेव को सीएम बनाया जाना था लेकिन भूपेश कुर्सी छोड़ने को राजी नहीं हुए। ऐसे में टीएस सिंहदेव को डिप्टी सीएम बना कर कांग्रेस हाई कमान ने मनाने की कोशिश की और वह लगभग सफल भी नजर आ रहा है। क्योंकि छत्तीसगढ़ में स्थित मध्य प्रदेश या दूसरे राज्यों से कांग्रेस की बेहद अच्छी नजर आ रही है। हालांकि इसके बाद भी भूपेश बघेल अपनी कुर्सी बचाने के लिए चुनावी रेवड़ियों का सहारा लेते नजर आए। भूपेश बघेल ने भेंट मुलाकात के जरिए अपनी जमीन मजबूत की। छत्तीसगढ़ में बीजेपी के पास ऐसा कोई चेहरा नहीं है जो भूपेश बघेल को टक्कर दे सके पूर्व सीएम रमन सिंह पिछले 5 साल के दौरान राज्य में सक्रिय नहीं रहे यही वजह है कि छत्तीसगढ़ में बीजेपी को पीएम नरेंद्र मोदी का ही सहारा है।
भारी पड़ेगी राजस्थान में गहलोत पायलट में सियासी टसल
राजस्थान सीएम अशोक गहलोत और पूर्व डिप्टी सीएम सचिन पायलट के बीच सियासी टसल किसी से छुपी नहीं है। हालांकि चुनाव से कुछ महीने पहले पार्टी हाई कमान ने गहलोत और पायलट के बीच सुलह करते हुए सरकार को बचा तो लिया लेकिन मुख्यमंत्री निर्दलीय विधायकों पर आश्रित होकर रह गए। यही वजह है कि मुख्यमंत्री निर्दलीय विधायकों को ज्यादा खुश करते नजर आए बजे गवर्नेंस को चलाने के। ऐसे में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने चुनाव से पहले लोक लोभावन घोषणाओं का पिटारा खोल दिया बिजली बिल माफी से लेकर मुफ्त मोबाइल और स्कूटी बांटने तक शायद ही कोई ऐसा क्षेत्र बच्चा जिसके लिए सीएम गहलोत ने घोषणा न की हो इतना ही नहीं राजस्थान में जिलों की संख्या भी बढ़कर 33 से 53 कर दी। जाति के आधार पर भी सीएम अशोक गहलोत ने कई बोर्ड स्थापित किया गहलोत जहां अपनी जनकल्याणकारी योजनाओं के दम पर सरकार में वापसी का दम भरते नजर आ रहे हैं। वही राजस्थान में बीजेपी ने गहलोत सरकार के भ्रष्टाचार और कानून व्यवस्था से लेकर पेपर लीक तुष्टीकरण जैसे मुद्दों को धार देकर उनका चुनाव में उपयोग करते नजर आ रही है। हालांकि यहां भी बीजेपी के नेता आपसी प्रतिद्वंदिता से जूझते नजर आ रहे हैं। ऐसे में एक बार फिर चुनाव पीएम नरेंद्र मोदी के चेहरे पर ही लड़ा जा रहा है क्योंकि राज्य में पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे सिंधिया और केंद्रीय मंत्री भंवर सिंह शेखावत के बीच चुनाव से पहले कुर्सी को लेकर जंग उसके लिए एक मुसीबत का सबक बन गई है।