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Home शहर और राज्य दिल्ली

भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को नमन: जिन्होंने चूमा था भारत की आजादी के लिए फांसी का फंदा

DigitalDesk by DigitalDesk
March 23, 2024
in दिल्ली, मुख्य समाचार, संपादक की पसंद
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Sacrifice day of Bhagat Singh Sukhdev and Rajguru today patriot and patriot
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देश को आजादी दिलवाने में जिन वीर सपूतों ने अपने प्राणों की आहूति दी उसमें सरदार भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव का नाम स्वर्णिम अक्षरों में लिखा गया है। 23 मार्च को इन वीर सपूतों की पुण्यतिथि है। अंग्रेजी हुकूमत ने आज ही के दिन 23 मार्च 1931 की शाम लाहौर जेल में सरदार भगत सिंह के साथ राजगुरु और सुखदेव को फांसी पर चढ़ा दिया गया था। वीर सपूतों का आज शहीद दिवस है, जिन्होंने देश के लिए लड़ते हुए हंसते हंसते अपने प्राणों को न्यौछावर कर दिया था। आज न केवल देश के प्रति सम्मान प्रकट करने का दिन है बल्कि भारतीय होने के साथ यह दिन गौरव का अनुभव कराता है। आज 23 मार्च को देश भर में आज वीर सपूतों के बलिदान को नम आखों से श्रद्धांजलि भी अर्पित की जा रही है।

  • आज ही के दिन दिया था वीर सपूतों ने सर्वोच्च बलिदान
  • भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव का दी थी फांसी
  • ब्रिटिश सरकार ने दी थी तीनों को फांसी
  • भगत सिंह ने फंदे को चूमा था फांसी का फंदा
  • फंदे को खुद अपने गले में अपने हाथ से पहना था
  • वे चाहते थे देश के लिए अपनी जान की कुर्बानी दें
  • क्रांतिकारियों को 23 मार्च, 1931 को दी थी फांसी
  • लाहौर की लाहौर केंद्रीय जेल में फांसी दी गई थी

भगतसिंह, राजगुरु और सुखदेव का नाम भारत उन सच्चे सपूतों में शामिल है जिन्होंने अपनी देशभक्ति और देशप्रेम को अपनी जान से भी अधिक महत्व दिया। मातृभूमि का आजाद कराने की खातिर प्राण न्यौछावर कर गए। आज ही के दिन 23 मार्च को देश के लिए इन वीर सपूतों ने हंसते-हंसते अपने न्यौछावर कर दिये थे। इन वीर सपूतों का आज शहीद दिवस है। सरदार भगत सिंह ने अपने बहुत छोटे से जीवन में वैचारिक क्रांति की जो मशाल जलाई थी उनके बाद अब वह जज्बा किसी के दिल में पैदा हो यह संभव नही। शहीद दिवस सर्वोच्च बलिदान की याद में मनाया जाता है। यह दिन हमें उन शहीदों की याद दिलाता है, जिन्होंने भारत की आजादी के लिए लड़ाई लड़ी। स्वतंत्रता दिलाने अपने प्राण तक न्यौछावर कर दिये। भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव अपना सर्वोच्च बलिदान देने से देश के युवाओं के लिए प्रेरणा बन गये। 8 अप्रैल 1929 के दिन इंकलाब जिंदाबाद का नारा लगाते हुए उन्होंने असेंबली में बम फेंका ​था। इसके बाद तीनों को गिरफ्तार कर लिया गया। तीनों पर अंग्रेजी हुकूमत ने हत्या का आरोप लगाया और 23 मार्च 1931 को फांसी की सजा दी गई।

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फैसलाबाद के बंगा गांव में जन्में थे भगत सिंह

वीर शहीद भगत सिंह का जन्म साल 1907 में फैसलाबाद जिले में स्थित बंगा गाँव में हुआ था। यह इलाका अब पाकिस्तान के पंजाब प्रांत में आता है। महज 23 साल की छोटी सी उम्र में उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई लड़ी वे भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के लोक नायक बन गये। भगत सिंह ने महज 13 साल की उम्र में अपनी औपचारिक शिक्षा छोड़ दी थी और भारत की आजादी के आंदोलन में सक्रिय रूप से शामिल हो गए थे। माता-पिता ने जब उनकी शादी कराने की कोशिश की तो वे घर छोड़कर चले गये थे।

1921 में हुई थी सुखदेव और भगत सिंह की मुलाकात

सुखदेव का जन्म 15 मई 1907 को लुधियाना में हुआ था। वे 1921 में भगत सिंह के संपर्क में आए। उमय वे नेशनल कॉलेज के छात्र थे। इस दौरान वे हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन नामक भूमिगत क्रांतिकारी संगठन में शामिल हो गए। जिसमें भगत सिंह के साथ राजगुरु और चंद्रशेखर आजाद भी शामिल थे। दिसंबर 1928 में भगत सिंह के साथ सुखदेव और राजगुरु ने राष्ट्रवादी नेता लाला लाजपत राय की हत्या का बदला लेने के लिए ही लाहौर पुलिस अधीक्षक जेम्स स्कॉट की हत्या की साजिश रची थी। लेकिन गलत पहचान के चलते सहायक पुलिस अधीक्षक जॉन सॉन्डर्स उनकी गोली का शिकार बन गए। ऐसे में भगत सिंह अपनी दाढ़ी मुंडवाकर और बाल काटवाकर गिरफ्तारी से बचने के लिए कलकत्ता चले गए। इसके बाद अप्रैल 1929 में भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त ने बहरी अंग्रेजी सरकार के कानों तक अपनी आवाज पहुंचाने के लिए सेंट्रल असेंबली हॉल में बम फेंके और इंकलाब जिंदाबाद!का नारा बुलंद किया। इसके बाद उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। भगत सिंह और उनके साथी क्रांतिकारी राजगुरु और सुखदेव को षड्यंत्र मामले में फांसी दे दी गई थी। इन क्रांतिकारियों ने अपने देश के लिए शहादत देकर युवाओं में बलिदान की भावना का संचार किया था। जिसने आजादी की लड़ाई को और तेज कर दिया।

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Tags: #Bhagat Singh#Rajguru #patriot and patriot#Sacrifice day#Sukhdev
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