राजस्थान विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को मिली करारी हार ने पार्टी के अंदर की गुटबाजी को सामने ला दिया है। हालांकि राज्य में पिछले पांच विधानसभा चुनाव से हर बार राज बदलने की परंपरा रही है जो छठी चार भी कायम रही है। अशोक गहलोत के लाख प्रयासों के बाद भी राजस्थान में कांग्रेस पार्टी हर बार सत्ता बदलने का रिवाज तोड़ नहीं पाई। नेताओं के बीच आपसी मतभेद और इस रिवाज के चलते कांग्रेस ने अपनी सत्ता गंवा दी। अब मरुभूमि राजस्थान के मतदाताओं ने बीजेपी की भारी बहुमत से ताजपोशी की है। जिससे आने वाले 5 सालों तक बीजेपी बिना किसी बाधा के राज कर सके।
- गहलोत पायलट की गुटबाजी बनी हार का सबब
- प्रचार सामग्री में छाए रहे अशोक गहलोत
- चुनाव के दौरान साइड लाइन ही रहे पायलट
- गहलोत ने पीएम के सामने खुद को पेश किया था
- गहलोत सरकार के 17 मंत्री चुनाव में हारे
- विधानसभा अध्यक्ष और मुख्य सचेतक भी चुनाव हार गए
- गहलोत और पायलट की भी जीत का अंतर हुआ कम
पूर्व डिप्टी सीएम सचिन पायलट पूरे चुनाव में ही साइड लाइन ही रहे। टिकट वितरण के दौरान सचिन पायलट ने जिस तरह से गहलोत के सामने हथियार डाले दिये थे। उस पर बड़े बड़े राजनीतिक विश्लेषकों को भी आश्चर्य हुआ था। लेकिन चुनाव से पहले शुचिता को बड़ी-बड़ी बातें करने वाले पायलट ने जिस तरह से गहलोत समर्थक शांति धारोत्राल और प्रमोद जैन भाया जैसे विवादित लोगों को टिकट देने पर अपनी सहमति जताई उससे सभी अचंभित रह गए। लोगों का कहना था कि पायलट ने अपने समर्थक कुछ लोगों के टिकट क्लियर करवाने के लिए गहलोत से अंदरखाने अघोषित समझौता कर लिया था। चुनाव में पायलट के कहने पर करीबन 40 लोगों को टिकट मिली जबकि गहलोत समर्थकों की संख्या 150 से भी ऊपर थी। चुनाव से पहले गहलोत बार-बार कहते थे कि प्रदेश की जनता में सरकार के खिलाफ नकारात्मक माहौल नहीं है। जनता प्रदेश सरकार के कामों से खुश है। विधायकों को लेकर जनता में नाराजगी है। इसलिए हम बड़ी संख्या में नए लोगों को मैदान में उतरेंगे। मगर चुनाव आते-आते सारी बातें कागजों में ही रह गई और धड़ाधड़ बुड़े व मौजूदा विधायकों को मैदान में उतार दिया गया। जिसका नतीजा कांग्रेस को करारी हार के रूप में देखना पड़ा। राजस्थान में 115 सीटों के पर्याप्त बहुमत के साथ बीजेपी सरकार बनाने जा रही है। वहां कांग्रेस का आंकड़ा 108 से घटकर 69 सीट पर सिमट गया।। प्रदेश के मतदाताओं ने तीसरे मोर्चे के नाम पर नेतागिरी कर रहे बड़बोले नेताओं को भी चुनाव में उनकी जगह दिखा दी है। बहुजन समाज पार्टी मात्र दो सीटों पर सिमट गई। वहीं सत्ता को चाबी अपने हाथ में होने का दावा करने वाले नागौर के सांसद और राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी के अध्यक्ष हनुमान बेनीवाल अपनी खुद को खींवसर विधानसभा सीट पर मात्र 2059 मतों के अंतर से जीत सके हैं।
चौथी बार सीएम बनने की तिकड़म लगाते रहे गहलोत
विधानसभा चुनाव से पहले अशोक गहलोत ने चौथी बार मुख्यमंत्री बनने के लिए पूरा जोर लगा दिया था। मगर कांग्रेस में चल रही आपसी गुटबाजी के चलते मतदाताओं ने कांग्रेस पार्टी को सिरे से नकार दिया। विधानसभा चुनाव में अशोक गहलोत ही कांग्रेस के मुख्य बेहरे बने हुए थे। उन्हीं के चेहरे पर कांग्रेस ने चुनाव लड़ा था। पार्टी की सभी प्रचार सामग्री पोस्टर, बैनर और होर्डिंगों में अशोक गहलोत ही छाए रहे। अशोक गहलोत द्वारा हायर की गई प्रचार कंपनी डिजाईन बाक्स और उसके बड़बोले निदेशक नरेश अरोड़ा भी चुनाव जितवाने में नाकाम रहे।
पीएम के सामने खुद को बनाया सीएम का चेहरा
अशोक गहलोत ने सचसे बड़ी गलती प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के सामने खुद को चेहरा बना कर कर दी। राजस्थान में भाजपा ने किसी को भी चेहरा बनाकर चुनाव नहीं लड़ा था। भाजपा ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चेहरे व कमल के फूल के निशान पर चुनाव लड़ा था। वहीं अशोक गहलोत ने सामूहिक नेतृत्व के स्थान पर खुद को ही आगे कर पूरी चुनावी व्यूह रचना की थी जिसमें वह नाकाम रहे। कई विधानसभा क्षेत्र में कांग्रेस को अपने बागी प्रत्याशियों को नाराजगी के चलते भी हार का सामना करना पड़ा है। समय रहते कांग्रेस पार्टी आंतरिक बगावत पर नियंत्रण नहीं कर पाई। पार्टी के प्रदेश प्रभारी सुखजिंदर सिंह रंधावा व तीनों सह प्रभारी का तो चुनाव के दौरान पता ही नहीं चला कि यो कहाँ रहे।
रंधावा ने भी नहीं छोड़ी कोई कोरकसर
राजस्थान में कांग्रेस को रसातल में पहुंचने के पीछे पार्टी प्रभारी सुखजिंदर रंधावा भी बहुत हद तक जिम्मेदार हैं। रंधावा का पूरा समय गहलोत सरकार को जी हुजूरी में लगे रहे। लोगों को पदाधिकारी नियुक्त करने में ही समय निकल गया और कांग्रेस पार्टी सत्ता से बाहर हो गई। अब कांग्रेस कार्यकर्ताओं का कहना है कि रंधावा ने जिनको पदाधिकारी बनाया है उसमें खुलकर भ्रष्टाचार हुआ है। पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को भाजपा से सीट और मत अधिक मिले थे। मगर इस बार कांग्रेस को सीटें मटने के साथ भाजपा की तुलना में मत भी कम हुए हैं। इस बार कांग्रेस को 39.53 प्रतिशत वहीं भाजपा को 41.69 प्रतिशत मत मिले हैं। बहुजन समाज पार्टी को 1.82 प्रतिशत वहीं हनुमान बेनीवाल की राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी को 2.39 प्रतिशत मत ही मिल पाए हैं। कांग्रेस पार्टी के प्रति जनता में इतनी अधिक नाराजगी थी कि सरकार के 17 मंत्री सहित विधानसभा अध्यक्ष और सरकारी सचेतक तक चुनाव हार गए। यही नहीं अशोक गहलोत व सचिन पायलट को जीत का अंतर भी काफी कम हुआ है।
सात गारंटी भी नहीं आई काम
गहलोत सरकार की ओर से चुनाव से पहले लोगों को सात गारंटी देकर वादा किया था। फिर से सरकार बनने पर जनता को इन सात योजनाओं के तहत लाभ पहुंचाया जाएगा। प्रदेश की जनता ने उनके वादों पर ध्यान ही नहीं दिया। मतदाताओं का कहना था कि पांच साल सत्ता में रहने के दौरान जो करना था कर दिया। अब सत्र चुनावी वायदे हैं। प्रदेश के किसानों का ना तो ऋण माफ हुआ ना हो बेरोजगारों को नौकरियां मिलीं। ऊपर से भर्ती परीक्षाओं में पेपर लीक होने से योग्य उम्मीदवारों का चयन होने से रह गया।
राजेन्द्र की लाल डायरी का भी है कमाल
अशोक गहलोत का घमंड पूरे समय सातवें आसमान पर रहा। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा के बड़बोले बयान और उनके रिश्तेदारों का प्रशासनिक अधिकारी पदों पर बयन होना हार की वजह बना। मंत्री सुभाष गर्ग का भर्ती परीक्षाओं के पेपर लोक करवाने में नाम आना, धारीवाल का विधानसभा में महिलाओं के प्रति अशोभनीय वक्तव्य और खान मंत्री के खुलजाम भ्रष्टाचार के कारनामे के साथ राजेंद्र गुड़ा का लाल डायरी प्रकरण, सांति धारीवाल, महेश जोशी, धर्मेंद्र राठौर द्वारा आलाकमान के निर्देशों की अवहेलना करने जैसे मुद्दे कांग्रेस की छवि खराब करने के लिए काफी थे।
बीती बिसार कर आगे की सोच
कांग्रेस को अब अगले लोकसभा चुनाव की तैयारी शुरू करनी चाहिए। पार्टी को संगठन में अध्यक्ष सहित आमूल चूल परिवर्तन करना होगा तथा विधायक दल के नेता के पद पर भी गैर विवादित विधायक का चयन करना होगा। यह पद संभालने वाले को सभी को साथ लेकर चलना होगा।। तभी कांग्रेस जनता के बीच अपनी खोई पैठ फिर से स्थापित कर सकती है। अन्यथा राजस्थान कांग्रेस की लोकसभा चुनाव में भी और अधिक दुर्गति होने से कोई नहीं रोक सकता है।