रूसी राष्ट्रपति पुतिन ने पीएम मोदी को बताया सच्चा देशभक्त
पसंद आई भारत विदेश नीति और मेक इन इंडिया मिशन
भारत और रुस को मित्रता दशकों पुरानी है। यही वजह है कि यूक्रेन से युद्ध के बीच रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने एक बार फिर से भारत की जमकर तारीफ की। इतना ही नहीं पुतिन ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की भी तारीफ करते हुए अपने भाषण में कहा कि पीएम मोदी एक देशभक्त हैं। अपने देश की स्वतंत्र सोच को आगे बढ़ाने में पूरी तरह सक्षम हैं। बता दें व्लादिमीर पुतिन ने मॉस्को में वल्दाई डिस्कशन क्लब की 19वीं वार्षिक बैठक के दौरान कहा भारत ने ब्रिटेन की गुलामी से आधुनिक राज्य बनने के अपने विकास में जबरदस्त प्रगति और ठोस विकास परिणाम हासिल किए। भारत के विकास से उसका सम्मान और प्रशंसा बढ़ी है। इस दैरान पुतिन ने भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को उन लोगों में से एक बताया जो स्वतंत्र विदेश नीति का संचालन करने में सक्षम हैं। मोदी को पुतिन ने एक सच्चा देशभक्त बताया। पुतिन ने कहा भारत और रूस के बीच दशकों से विकसित विशेष संबंध हैं और दोनों देशों के बीच कोई भी बकाया मुद्दा नहीं है।
भविष्य भारत का है
पुतिन ने कहा पीएम मोदी के नेतृत्व में पिछले वर्षों में बहुत कुछ किया गया है। स्वाभाविक रूप से वह एक देशभक्त हैं। पुतिन ने कहा मेक इन इंडिया के लिए उनका विचार आर्थिक और नैतिक दोनों रूप से मायने रखता है। भविष्य भारत का है। इसे सबसे बड़ा लोकतंत्र होने पर गर्व होता है। भारत और रुस के बीच एक विशेष रिश्ता है। हमारे बीच घनिष्ठ संबंध हैं। उन्होंने रक्षा साझेदारी और बढ़ते व्यापारिक संबंधों का भी उल्लेख किया। पुतिन ने कहा हमारे व्यापार की मात्रा में काफी वृद्धि हुई है। पीएम मोदी ने मुझसे भारत को उर्वरकों की आपूर्ति बढ़ाने के लिए कहा और इसमें 7.6 गुना वृद्धि हुई है। कृषि में व्यापार लगभग दोगुना हो गया है। ज्ञात हो कि जब पुतिन और मोदी एससीओ शिखर सम्मेलन के इतर समरकंद में मिले थे। तो ऊर्जा और उर्वरक आपूर्ति पर भी बातचीत हुई थी। मोदी ने तब पुतिन के साथ अपने दो दशक से अधिक पुराने संबंधों को याद किया था। और अब पुतिन ने गुरुवार को कहा पीएम मोदी उन लोगों में से एक हैं जो स्वतंत्र विदेश नीति का संचालन करने में सक्षम हैं। वह भारतीय लोगों के लिए एक आइसब्रेकर की तरह चल रहे हैं। उन्हें यकीन है कि भविष्य में भारत की एक बड़ी भूमिका है।
परमाणु हथियारों के इस्तेमाल से इनकार
पुतिन ने यूक्रेन में परमाणु हथियारों के इस्तेमाल के किसी भी इरादे से बृहस्पतिवार को इनकार किया लेकिन वहां के संघर्ष को पश्चिम द्वारा अपने वैश्विक प्रभुत्व को सुरक्षित करने के कथित प्रयासों के हिस्सा बताया। इसके साथ ही उन्होंने जोर दिया कि वैश्विक प्रभुत्व के पश्चिम के प्रयास नाकाम होंगे। पुतिन ने अंतरराष्ट्रीय विदेश नीति विशेषज्ञों के एक सम्मेलन को संबोधित करते हुए कहा रूस के लिए यूक्रेन पर परमाणु हथियारों से हमला करना निरर्थक है। उन्होंने कहा हमें इसकी कोई जरूरत नहीं दिख रही है। लेकिन इसका कोई अर्थ नहीं है न तो राजनीतिक और न ही सैन्य।
अमेरिका और उसके सहयागियों को लताड़ा
पुतिन ने अपने लंबे भाषण में अमेरिका और उसके सहयोगियों पर जमकर निशाना साधा। उन्होंने अमेरिका और उसके सहयोगियों पर प्रभुत्व के खतरनाकए रक्तरंजित और गंदे खेल में अन्य देशों पर अपनी शर्तों को थोपने की कोशिश करने का आरोप लगाया। पुतिन ने दलील दी कि दुनिया एक अहम मोड़ पर हैए जहां पश्चिम अब मानव जाति के लिए अपनी इच्छा थोपने में सक्षम नहीं हैए लेकिन फिर भी ऐसा करने की कोशिश करता है और ज्यादातर देश अब इसे बर्दाश्त नहीं करना चाहते हैं। उन्होंने दावा किया कि पश्चिमी नीतियां से और अधिक अराजकता पैदा होगी।
भारत और रुस की पुरानी दोस्ती
भारत और रुस के बीच दोस्ती कोई नई नहीं है। इस दोस्ती की नींव 21 दिसम्बर 1947 को पड़ी थी। तब से अब तक कई बार दुनिया में उथल पुथल मची लेकिन भारत और रूस के रिश्ते नहीं बिगड़े। 1947 में आजादी मिले 4 महीने गुजर गए थे लेकिन भारत को उसका असली दोस्त अब तक नहीं मिला था। 21 दिसम्बर 1947 को एक रूसी पति पत्नी अपने बच्चों को लिए दिल्ली हवाईअड्डे पर उतरे। उनका नाम था। किरिल नोविकोव। इन्होंने ही भारत और रूस के अटूट रिश्ते की नींव रखी। ये आजाद भारत के पहले रूसी एंबेसडर थे। 1951 में आजादी के सिर्फ 4 साल बीते थे। किरिल नोविकोव भारतीयों में ऐसे रचण्बस गए थे जैसे वो यहीं के हों। उन्होंने अपने एक सेलिब्रेशन में भारत के राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद को बुला लिया और डॉ राजेंद्र प्रसाद चले भी गए। ये मौका था रूस में हुई दुनिया की सबसे बड़ी मजदूरों की अक्टूबर समाजवादी क्रांति की 34वीं वर्षगांठ मनाने का। 1955 में दोस्ती की मिठास बढ़ती गई। 8 साल हुए थे और पहली बार यूएसएसआर मंत्रिपरिषद के अध्यक्ष निकोलाई बुल्गानिन और निकिता ख्रुश्चेव सीपीएसयू सेंट्रल कमेटी के मुख्य सचिव खुद भारत आ गए। दोनों ने नई दिल्ली में बने हैदराबाद हाउस में नवंबर 1955 में कई दिन बिताए। ये दोनों कश्मीर घूमने भी गए। वहां इनके स्वागत में कश्मीरियों ने जुलूस निकाल दिया। जब वे श्रीनगर की सड़कों पर निकले तो सड़कें जाम हो गईं। सात साल बाद मौका आया तो संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में रूस यानी सोवियत संघ ने 22 जून 1962 को अपने 100वें वीटो से कश्मीर मुद्दे पर भारत का समर्थन करके पाकिस्तान को बैकफुट पर ढकेल दिया। 1955 में वक्त था इस दोस्ती को कागज पर उतारने का। रूसी मंत्री निकोलाई बुल्गानिन और निकिता ख्रुश्चेव ने उसी भारतीय दौरे में प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू से मिले। दोनों देशों के बीच राजनयिकों को बुलाया गया। दोनों देशों ने अलग अलग तरीके से एक दूसरे के साथ देने के लिए कई समझौते किए। 1960 में भारत किसी को गाय गिफ्ट कर दे ये बात समझ आती है। लेकिन कोई और देश हमारे देष के पीएम को गाय गिफ्ट कर दे मतलब कि दोस्ती को गाढ़ा करने का एक भी मौका न छोड़ना। ये बात है 27 मार्च 1960 की। तब के पीएम जवाहरलाल नेहरू को रूस सरकार ने एक गाय गिफ्ट कर दी थी। जब सोवियत राजदूत इवान बेनेडिक्टोव ने गाय की रस्सी नेहरू को थमाई तो वो तुरंत उसे चारा खिलाने लगे। 1966 में ही भारतीय सरकार ने तय किया कि अब अगर देश को आगे बढ़ाना है तो उसे स्टील प्लांट लगाना ही पड़ेगा। पर प्लांट लगाने के लिए पर्याप्त व्यवस्था न थी। भारत ने दोस्त रूस की ओर देखा। उसने तुरंत खास मदद भेजने का ऐलान कर दिया। नतीजा 1966 में तब की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने बोकारो स्टील प्लांट की आधारशिला रखी। 1971में में तत्कालीन पीएम इंदिरा गांधी और रूस के कद्दावर विदेश मंत्री आंद्रेई ग्रॉमिको के बीच समझौता हुआ। एक ऐसे समझौते के लिए जिसके बाद भारत के लिए रूस आधी दुनिया से टकरा गया था। 1971में पाकिस्तान में बंगाली लोगों की हत्या हुई थी। भारत ने युद्ध छेड़ा लेकिन अमेरिका ने भारत को विलेन कहना शुरू किया था। यूके, फ्रांस, यूएई, टर्की, इंडोनेशिया, चीन और आधी दुनिया ने पाकिस्तान का साथ दिया लेकिन रूस ने दोस्ती निभाते हुए समुद्री रास्ता रोककर अमेरिका, ब्रिटेन समेत दूसरे देशों के पोत को भारत पर हमला करने से रोक दिया था। बात 1984 की करें तो रूस ने भारत को सिर्फ जंग के मैदान में ही नहीं बल्कि आसमान और अंतरिक्ष को फतह करने में भी साथ दिया। 1975 में पहले उपग्रह आर्यभट्ट के प्रक्षेपण में और फिर 1984 में राकेश शर्मा के अंतरिक्ष यात्रा में भी रूस ने काफी मदद किया था। 1988 की बात करें तो 1971 के बाद भारत और रूस की दोस्ती दुनिया भर के लिए मिसाल बन गई थी। दुनिया के दूसरे देश दोनों देशों की दोस्ती पर नजर लगानी शुरू कर दी। इसके बाद जब सोवियत राष्ट्रपति मिखाइल गोर्बाचेव आधिकारिक दौरे पर भारत आए तो प्रधानमंत्री राजीव गांधी उनका स्वागत करने सीधे एयरपोर्ट पहुंच गए थे। वहीं 1993 में एक बार फिर से भारत के दौरे पर रूसी राष्ट्रपति बोरिस येल्तसिन आए। इस दौरान राष्ट्रपति भवन में एक स्वागत समारोह में भारत के राष्ट्रपति शंकर दयाल शर्मा ने राष्ट्रपति बोरिस येल्तसिन का स्वागत किया। साल 2000 में दोस्त बदल सकते हैं लेकिन पड़ोसी नहीं कहने वाले पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी भी समझते थे कि पाकिस्तान और चीन जैसे पड़ोसी से निपटने के लिए रूस जैसा एक यार तो पक्का ही साथ होना चाहिए। इसीलिए दोस्ती को मजबूत करने के लिए अक्टूबर 2000 में वाजपेयी और राष्ट्रपति पुतिन मिले। इस दौरान भारत और रूस के बीच सामरिक भागीदारी की घोषणा पर हस्ताक्षर किए गए थे। बात करें 2007 की तो अटल बिहारी वाजपेयी के बाद सरकार भले बदल गई हो पर भारत को लेकर पुतिन के प्यार में कोई कमी नहीं आयी। एक बार फिर पुतिन भारत आए और हिंदुस्तान को परमाणु ऊर्जा के लिए तकनीक और संसाधन देने का वादा किया। रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और भारतीय प्रधान मंत्री डॉ मनमोहन सिंह की मौजूदगी में ये समझौता हुआ। इसके बाद 2014 में जब नरेंद्र मोदी के सत्ता में आने पर दुनिया भर में हाय तौबा मची कि भारत की यह सरकार अमेरिका के ज्यादा करीब है। लेकिन पुतिन को पता था भारत कहीं नहीं जाने वाला है। यही वजह है कि एक बार फिर जब पुतिन 2014 में भारत आए और अपने कलेजे से प्रधानमंत्री मोदी को लगाया तो आधी दुनिया के देश इस दोस्ती को देख जल गए। 2021 में जब मामला कश्मीर का आया तो रूस ने आगे बढ़कर संयुक्त राष्ट्र में भारत की आवाज बुलंद की। अब ड्रैगन को जवाब देने के लिए रूस भारत को एस ण् 400 मिसाइल डिफेंस सिस्टम भेजी। रूस भारत को सुखोई एसयू 30एमकेएलए जेट फाइटर का अपडेट वर्जन देता है। जिसका वह अपने देश की सुरक्षा के लिए भी इस्तेमाल करता है। इसलिए ये यात्रा बहुत जरूरी है।
भारत का भरोसेमंद साथी है रुस
बता दें 1990 के दशक में सोवियत संघ का पतन हो गया। इसके बाद भारत ने अमेरिका की तरफ हथियारों के लिए रुख किया। कूटनीतिक और राजनयिक प्रयासों में इजाफा तो हुआ लेकिन इसके कोई अच्छे नतीजे नहीं मिल सके। इन प्रयासों के बाद भी जरूरी हथियारों की सप्लाई नहीं हो सकी।1997 से 2016 तक जो भी हथियार भारत को मिल रहे थे। उनमें से तीन चौथाई हिस्सा रूस से आयात किए गए हथियारों का होता था। रूस हमेशा से ही हथियारों के लिए भारत का पसंदीदा देश रहा है। यही वजह है कि रुस रक्षा क्षेत्र में विश्वसनीय साथी बना हुआ है।