देश का पहला गणतंत्र दिवस समारोह इरविन स्टेडियम में आयोजित हुआ था, लेकिन तब तक इसके लिए कोई एक जगह तय नहीं की गई थी। इसके बाद अलग-्अलग जगहों पर परेड होती रही। गणतंत्र दिवस कार्यक्रम का आयोजन लाल किला, किंग्सवे कैंप, रामलीला मैदान में आयोजित होता रहा। 1955 में पहली बार राजपथ पर परेड का आयोजन हुआ और तब से अब तक इसी जगह पर गणतंत्र दिवस परेड होती है।
- गणतंत्र दिवस परेड का रास्ता 5 किलोमीटर से भी ज्यादा लंबा होता है
- यह राष्ट्रपति भवन के पास रायसीना हिल से शुरू होती है
- परेड इंडिया गेट से होते हुए लाल किले पर जाकर पूरी होती है
संविधान और गणतंत्र के बारे में कुछ खास बातें
24 जनवरी, 1950 को संविधान बनाने वाली कॉन्स्टिट्युएंट असेंबली आखिरी बार इकट्ठा हुई थी। उस दिन सभी सदस्यों ने संविधान पर हस्ताक्षर किए थे। ये हस्ताक्षर ही हमारे संविधान पर फाइनल मुहर थी। भारत के पहले राष्ट्रपति के तौर पर डॉ. राजेंद्र प्रसाद का निर्वाचन हुआ था, वो भी सर्वसम्मति से। ऐसा इसलिए हुआ था, क्योंकि राष्ट्रपति के पद पर और किसी ने फॉर्म ही नहीं भरा था, नॉमिनेशन ही नहीं किया था। इसलिए राजेंद्र बाबू बने हमारे पहले राष्ट्रपति।
राष्ट्रगान और राष्ट्रीय गीत पर सहमति भी उसी दिन बनी थी। इसके लिए पहले एक प्रस्ताव लाने की बात थी, लेकिन बाद में सहमति बनी कि राजेंद्र बाबू अपने भाषण में इसका जि्क्र करेंगे। इसलिए, अपने संबोधन में राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद ने कहा कि जन-गण-मन हमारा राष्ट्रगान होगा और वंदे मातरम् को इसके बराबर ही तवज्जो दी जाएगी। इसके बाद ही वंदे मातरम् राष्ट्रीय गीत बन गया।
संविधान की जिस कॉपी पर हस्ताक्षर किए गए वो पूरी तरह हाथ से लिखी गई थी। इसे लिखने वाले ने इसके एवज में कोई फीस भी नहीं ली थी। संविधान की इस कॉपी को नंदलाल बोस सहित शांतिनिकेलतन के और नामचीन कलाकारों ने सजाया था। एक और ध्यान देने की बात यह है कि राजेंद्र प्रसाद को राष्ट्रपति चुने जाने के बाद केवल 6 लोगों ने बधाई दी थी, क्योंकि राजेंद्र बाबू ने चेयरमैन के अधिकार का प्रयोग करते हुए इस पर रोक लगा दी थी।
पहले परेड में झांकियां नहीं थीं
गणतंत्र दिवस के पहले परेड के साथ झांकियां शामिल नहीं की गई थीं। सबसे पहली बार 26 जनवरी 1953 को सेना और अन्य बलों के साथ राज्यों की झांकियों को भी परेड में शामिल किया गया। इन झांकियों में सांस्कृतिक कार्यक्रमों के साथ ही आदिवासी लोकनृत्यों का भी लोगों ने आनंद लिया। इसके बाद से ही लगातार राज्यों की झांकियों को चुनकर परेड में शामिल किया जाता है। परेड में शामिल सभी झांकियां 5 किमी प्रति घंटा की रफ्तार से चलती हैं। इस बार के परेड में 23 झांकियां हैं।
सबसे अंत में हस्ताक्षर किए राजेंद्र प्रसाद ने
24 जनवरी, 1950 को जब संविधान पर हस्ताक्षर किए जाने थे तो तीनों प्रतियों को सदन की टेबल पर रखा गया था। क्रम में चेयरमैन के हस्ताक्षर सबसे ऊपर आने चाहिए थे, लेकिन हस्ताक्षर करने के नियत स्थान पर ऊपर जगह नहीं बची थी। ऐसे में डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने इस नियत स्थान के ऊपर तिरछे हस्ताक्षर किए। ऐसा इसलिए हुआ था कि पंडित जवाहरलाल नेहरू ने सबसे पहले हस्ताक्षर कर दिए थे और राजेंद्र बाबू के लिए जगह ही नहीं छोड़ी थी। वहां मौजूद सदस्यों में सबसे आखिरी हस्ताक्षर फिरोज गांधी के थे। कान्स्टिच्युएन्ट असेंबली के चेयरमैन डॉ सच्चिदानंद सिन्हा उम्रदराज और बीमार थे। उनके हस्ताक्षर के लिए संविधान की प्रति को पटना भेजा गया था।
पहले 30 तोपों की सलामी मिलती थी
देश के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने जब 26 जनवरी 1950 को इरविन स्टेडियम में गणतंत्र दिवस के मौके पर तिरंगा फहराया तो उन्हें 30 तोपों की सलामी दी गई। बाद में इस मौके पर 21 तोपों की सलामी दी जाने लगी। ये सलामी भारतीय सेना की 7 खास तोपों से दी जाती है, जिनको पॉन्डर्स कहते हैं। आज तक इन तोपों को बदला नहीं गया।
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