Religious Minorities in India: भारत में अल्पसंख्यकों, खासकर मुसलमानों को कई बार विक्टिम बताया जाता है। मेनस्ट्रीम मीडिया से लेकर सोशल मीडिया तक पर कई बार हैशटैग और ट्रेंड्स चलते हैं, जिससे लगता है कि भारत मुसलमानों के लिए असुरक्षित है। हालांकि, भारत के अन्य अल्पसंख्यकों जैसे ईसाई, पारसी, सिख या जैन वगैरह के लिए ऐसा सुनने-देखने को नहीं मलिता। अब हालांकि, तस्वीर दूसरी है।
- वैश्विक स्तर पर अल्पसंख्यकों के अधिकारों पर रिसर्च करने वाली संस्था सेंटर फॉर पॉलिसी एनालिसिस (CPA )की रिपोर्ट आई है
- इस रिपोर्ट ने भारत को अल्पसंख्यकों के लिए एक बेहतरीन देश बताया है
- रिपोर्ट के मुताबिक अल्पसंख्यकों के जीवन में सुधार लाने के लिए भारत की ओर से बनाई जाने वाली नीतियों के चलते देश में उनकी स्थिति बेहतर है
- ये रिपोर्ट ऑस्ट्रेलिया टुडे में आई है
UN बना सकता है मॉडल
इस रिपोर्ट में कहा है कि संयुक्त राष्ट्र भारत की अल्पसंख्यक नीति को अन्य देशों के लिए एक मॉडल के रूप में उपयोग कर सकता है, क्योंकि भारत में कई धर्म हैं लेकिन फिर भी उनके संप्रदायों के खिलाफ कोई ज्यादा भेदभाव नहीं है। वैसे, CPA की रिपोर्ट के अनुसार, बहुसंख्यक हिंदुओं और अल्पसंख्यक समुदायों में मुस्लिम समुदाय के साथ संघर्ष की कुछ रपटें हैं।
- रिपोर्ट में भारत की अल्पसंख्यक नीति पर प्रकाश डाला गया है
- इसमें यह भी कहा गया है कि यदि भारत को संघर्षों से मुक्त रखना है, तो उसे अल्पसंख्यकों के प्रति अपने दृष्टिकोण को तर्कसंगत बनाना होगा
- CPA की वैश्विक अल्पसंख्यक रिपोर्ट का उद्देश्य भी विश्व समुदाय को विभिन्न देशों में उनकी आस्था के आधार पर अल्पसंख्यकों के खिलाफ भेदभाव की व्यापकता पर शिक्षित करना है
- 110 देशों को लेकर यह रिसर्च की गयी, जिसमें भारत ने पहले नंबर पर अपनी जगह बनाई है
- इस सूची में साउथ कोरिया, जापान, पनामा भी शामिल हैं और भारत ने सर्वोच्च स्थान पर आकर अमेरिका, ब्रिटेन और मुस्लिम देश यूएई को भी पछाड़ दिया है.
कहां हैं सबसे बुरे हालात?
सेंटर फॉर पॉलिसी एनालिसिस (CPA) एक रिसर्च इंस्टीट्यूट है। इसका भारत के पटना में हेडक्वार्टर है। इसकी रिपोर्ट में अमेरिका, मालदीव, अफगानिस्तान और सोमालिया में अल्पसंख्यकों के हालात सबसे बुरे हैं।
सूची में ब्रिटेन 54वें नंबर पर है और खाड़ी देश यूएई 61वें नंबर पर है। रिपोर्ट में भारत नंबर एक पर है। सीपीए की इस रिपोर्ट के अनुसार, भारत की अल्पसंख्यक नीति विविधता बढ़ाने के दृष्टिकोण पर आधारित है। भारत के संविधान में भी इस बात का ध्यान रखा गया है और खासकर अल्पसंख्यकों को संस्कृति और शिक्षा के क्षेत्र में कई अधिकार दिए गए हैं। रिपोर्ट में ये भी कहा गया है कि भारत में किसी भी धार्मिक संप्रदाय पर किसी तरह का कोई प्रतिबंध नहीं है, इसके उलट पाकिस्तान जैसे मुस्लिम देशों में धार्मिक अल्पसंख्यकों पर कई तरह के प्रतिबंध लगाए गए हैं।