बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भारतीय जनता पार्टी के तमाम विरोधी दलों को समेटने में लगे हुए हैं। उन्हे लगता है सभी दल एक साथ आ जाएंगे तो भाजपा से निपटना आसान हो जाएगा। हालांकि विपक्षी एकजुटता होगी या नहीं होगी,इसका जवाब मिलने से पहले विपक्ष अपनी रणनीति गढ़ने में लगा है,ताकि भाजपा की भाषा में भाजपा को जवाब दिया जा सके। विरोधियों को लगता है कि भाजपा हिन्दुत्व के नाम पर सफल हो रही है तो हम पिछड़ों की नाम पर सियासी जमीन मजबूत कर लेंगे। यही कारण है कि धर्म और जाति के नाम पर एक तरफ भाजपा और दूसरी तरफ तमाम विरोधी दल खड़े होते दिखाई दे रहे हैं। जानकारों का मानना है यदि भाजपा हिन्दुत्व की राजनीति करती है जो विपक्षी दल,दलित और पिछड़ों के नाम पर सियासी जाल बिछाना चाहते हैं।
. पटना हाईकोर्ट ने लगाई जातिगत जनगणन पर रोक
. हिन्दुत्व और पिछड़ों की गर्मा रही राजनीति
. बिहार में 52 प्रतिशत है पिछड़ों की संख्या
. आरक्षण के आधार पर चल रहे दांव पेंच
. उत्थान के बहाने वोट बैंक बनाने की तैयारी
बिहार में जाति आधारित जनगणना को लेकर लंबे समय से राजनीति गर्मा रही है। वजह ये है कि बिहार की सरकार चाहती है कि किसी भी हाल में राज्य में जाति आधारित जनगणना की जाए। ताकि किस जाति के कितने वोट है उसी आधार पर उन्हे योजनाओं का लाभ दिया जाए। पिछड़ों के उत्थान के लिए आगे की रणनीति बनाई जा सके। इसके लिए राज्य में जातिगत जनगणना प्रारंभ भी कर दी गई थी। पहले चरण का काम भी पूरा हो गया और दूसरे चरण की गिनती शुरु हो गई थी,लेकिन इसके पहले ही पटना हाईकोर्ट ने इस गणना पर रोक लगा दी।
इसलिए चाहिए जातिगत जनगणना
राज्य में जेडीयू और आरजेडी की सरकार है। दोनों ही दल भाजपा विरोधी है। भाजपा पर हिन्दुत्व की राजनीति के आरोप लगते रहे है। ऐसे में राजद और जेडीयू जातिगत आंकड़ा एकत्रित करके उनके बड़े वोट बैंक पर कब्जा करना चाहते हैं। आपको बता दें कि विभिन्न रिपार्टस के मुताबिक बिहार में ओबीसी और ईबीसी मिलाकर 52 प्रतिशत की आबादी है। जिसमें 14 प्रतिशत यादव,5 प्रतिशत कुर्मी, 9 प्रतिशत कुशवाहा शामिल हैं। यदि सवर्णों की बात करें तो कुल आबादी में इनकी संख्या 15 प्रतिशत की भागीदारी है। जिसमें भूमिहार 6 प्रतिशत, ब्राह्मण 5 प्रतिशत, राजपूत 3 प्रतिशत और कायस्थ की जनसंख्या 1 प्रतिशत है। मतलब साफ है कि यहां पिछड़ों की संख्या काफी अधिक है। इन पिछड़ों के सहारे भी राजद और जेडीयू अपनी जमीन मजबूत करना चाहते हैं। इन्हे लगता है भाजपा हिन्दुत्व की राजनीति करती है तो हम इन पिछड़ों के भरोसा जीतकर अपनी सियासी जमीन मजबूत कर सकते हैं।
आरक्षण के आधार पर चल रहा सियासी खेल
लंबे समय से एक नारे ने सभी का ध्यान आकर्षित किया है। जिसमें कहा गया है कि जिसकी जितनी भागीदारी,उसकी उतनी हिस्सेदारी। मतलब जातीय समितियों की मांग है कि उन्हे आबादी के हिसाब से आरक्षण दिया जाना चाहिए। पिछड़े वर्ग के लोगों का कहना है कि एससी-एसटी को संख्या के आधार पर आरक्षण दिया जा रहा है। इसी तरह ओबीसी को भी उनकी आबादी के हिसाब से आरक्षण दिया जाना चाहिए। बड़ी संख्या और इस तरह की मांगों को बिहार सरकार हाथों हाथ उठाना चाहती है। इसलिए राज्य की नीतीश सरकार का दावा है कि जातीय जनगणना की रिपोर्ट आने के बाद पिछड़े लोगों की सही संख्या पता चलेगी। इससे उन्हें उन सुविधाओं का लाभ मिल सकेगा,जिससे वे अब तक वंचित रहे हैं। आबादी के हिसाब से उनके लिए योजनाएं बनेंगी और समाज की मुख्य धारा में पिछड़े लोगों की जिंदगी काफी बदलाव संभव हो सकेगा।
बिहार सरकार के सपनों पर फिरा पानी
जातिगत गणना के लिए ऐड़ी चोटी का जोर लगा रही नीतीश सरकार के सपनों पर पानी फिर गया है। वजह ये है कि पटना हाई कोर्ट ने जातिगत गिनती पर रोक लगा दी है। कोर्ट अगली सुनवाई तीन जुलाई को करेगा। इससे पहले बिहार सरकार जातिगत जनगणना के लिए काम शुरु कर दिया था। जिसका पहला चरण पूरा कर लिया गया था और दूसरे चरण की गिनती चल रही थी। पहला चरण जनवरी में पूरा हुआ था और 15 अप्रैल से दूसरे चरण की शुरुआत हुई थी जिसे 15 मई तक पूरा किया जाना था। पहले चरण में लोगों के घरों की गिनती की गई। इसकी शुरुआत पटना के वीआईपी इलाकों से हुई थी।