छह बार के विधायक और पूर्व मंत्री रामनिवास रावत अंततः एक बार फिर मंत्री बन गए हैं। कभी कांग्रेसी रहे रावत इस बार बीजेपी की सरकार में मंत्री बनाए गए हैं। राजभवन में अकेले रावत को मंत्री पद की शपथ दिलाई गई।
यह भी अब चर्चा में है कि आखिर रावत को अकेल क्यों शपथ दिलाना पड़ी, ऐसी क्या मजबूरी थी की आनन फानन में रावत को मंत्री बनाना पड़ा।
- लोकसभा चुनाव के समय छोड़ी थी रावत ने कांग्रेस
- कांग्रेस छोड़ बीजेपी का थामा था दामन
- लोकसभा चुनाव में मिला बीजेपी को रावत वोटर्स का साथ
- रावत से किया था बीजेपी ने मंत्री बनाने का वादा
- बीजेपी ने रावत को मंत्री बनाकर पूरा किया अपना वादा
बताया जाता है कि इसके पीछे कई बड़ी वजह मानी जा रही है और कहा जा रहा है कि रावत के बीजेपी में शामिल होने के वक्त ही यह तय हो चुका था कि भविष्य में उन्हें मंत्री बनाया जाएगा। बीजेपी ने रावत से वादा किया था, जिसके बाद रावत ने लोकसभा चुनाव के पहले बीजेपी का दामन लिया।
दरअसल रामनिवास रावत बेशक कद्दावर नेता हैं और ओबीसी का बड़ा चेहरा माने जाते हैं, लेकिन उनकी राजनीति का विशेषता उनकी रावत जाति भी है जो लोकसभा चुनाव में बीजेपी के लिए सबसे बड़ी जरूरत थी। जिसके चलते लोक सभा चुनाव से पहले रामनिवास रावत को बीजेपी में शामिल किया गया था। ग्वालियर अंचल की मुरैना लोकसभा की सबलगढ़, जौरा, विजयपुर,श्योपुर चारों विधानसभा क्षेत्रों में रावत जाति के वोट बड़ी संख्या में है।
लोकसभा चुनाव के दौरान मुरैना में भाजपा के सामने दो चुनौती खड़ी हो गई थी पहला कांग्रेस ने सजातीय ठाकुर उम्मीदवार उतार दिया था और दूसरा बसपा ने उद्गयो पति रमेश गर्ग को टिकट देकर पार्टी के कोर व्यापारी वोटर्स को अपनी ओर खिंचने का प्रयास किया था। ऐसे में रामनिवास रावत का दलबदल से मुरैना लोकसभा सीट के चुनावी गणित को तो साधा ही साथ में अंचल की दर्जन भर सीट पर भी भाजपा के जातीय समीकरण को मजबूती मिली। अब रामनिवास रावत को वो सब मिल चुका है जिसके लिए रावत ने कांग्रेस से बगावत की थी।