6 करोड़ वर्ष पुराने होने का जिन पत्थरों का किया जा रहा है दावा, जानिए किस काम में आएंगी वे?

क्या होगा इन शालिग्रामी शिलाओं का?

प्रतीकात्मक तस्वीर है

पोखरा और मधुबनी। दो विशाल पत्थर नेपाल से अयोध्या की ओर भेजे जा रहे हैं। इनको शालिग्राम शिलाएं भी कहते हैं। इन पत्थरों से ही श्रीराम और माता सीता की मूर्तियां बनाई जाएंगी। ऐसा दावा किया जा रहा है कि ये शिलाएं करीब 6 करोड़ साल पुरानी हैं। हालांकि, इनसे बनी मूर्तियां गर्भगृह में रखी जाएंगी या परिसर में कहीं और स्थापित होगी? ये अभी तय नहीं है। इस पर राम मंदिर ट्रस्ट ही अंतिम फैसला लेगा। ये पत्थर नेपाल के पोखरा स्थित शालिग्रामी नदी से लाई जा रही है। शालिग्रामी नदी को काली गंडक भी कहते हैं।

बूढ़ी गंडक ही है शालिग्रामी या नारायणी नदी

नेपाल की शालिग्रामी नदी, भारत में प्रवेश करते ही नारायणी बन जाती है। सरकारी कागजों में इसका नाम बूढ़ी गंडकी नदी है। शालिग्रामी नदी के काले पत्थर भगवान शालिग्राम के रूप में पूजे जाते हैं। बताया जाता है कि शालिग्राम पत्थर, सिर्फ शालिग्रामी नदी में मिलता है। यह नदी दामोदर कुंड से निकलकर बिहार के सोनपुर में गंगा नदी में मिल जाती है।

क्षमा-याचना के बाद निकाला गया पत्थर

श्रीराम मंदिर के ट्रस्टी कामेश्वर चौपाल ने बताया कि नदी के किनारे से इन विशाल शिलाखंड को निकालने से पहले धार्मिक अनुष्ठान भी किए गए और नदी से क्षमा-याचना की गई। शिला का 26 जनवरी को गलेश्वर महादेव मंदिर में रूद्राभिषेक भी किया गया है।

रामजन्मभूमि के पुराने मंदिरों में इसी पत्थर का उपयोग

नेपाल की शालिग्रामी नदी में काले रंग के एक विशेष प्रकार के पत्थर पाए जाते हैं। धार्मिक मान्यताओं में इन्हें शालिग्राम भगवान का रूप कहा जाता है। शालिग्रामी पत्थर बेहद मजबूत होते हैं। इसलिए, शिल्पकार बारीक से बारीक आकृति उकेर लेते हैं। अयोध्या में भगवान राम की सांवली प्रतिमा इसी तरह की शिला पर बनी हैं। राम जन्मभूमि के पुराने मंदिर में कसौटी के अनेक स्तंभ इन्हीं से बने थे।

शनिवार यानी 28 जनवरी को ये शिलाएं जनकपुर पहुंच रही हैं। वहां दो दिवसीय अनुष्ठान के बाद शिलाएं बिहार के मधुबनी के सहारघाट, बेनीपट्‌टी होते हुए दरभंगा, मुजफ्फरपुर पहुंचेगी। फिर 31 जनवरी को गोपालगंज होकर UP में प्रवेश करेंगी। बिहार में 51 जगहों पर शिला का पूजन होना तय हुआ है।

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