मध्यप्रदेश ही नहीं देश भर में नामीबिया से लाए गए 8 चीतों की चर्चा हो रही है। ये चीते पीएम नरेन्द्र मोदी ने अपने जन्मदिन पर एमपी के ग्वालियर चंबल अंचल में स्थित कूनो अभयारण्य में छोड़े। भारत में करीब 7 दशक बाद अब चीते चहलकदमी करते दिखाई देंगे। इन चीतों की सुरक्षा के लिए राज्य सरकार ने विशेष प्रबंध किये हैं। वन विभाग की टीम ता तैनात रहेगी ही साथ ही 90 गांवों के करीब 457 लोगों को चीता मित्र बनाया गया है। इनमें सबसे चर्चित नाम है रमेश सिंह सिकरवार का। रमेश सिंह सिकरवार 1970 और 80 के दशक में कुख्यात डकैत रह चुके हैं।
अपने समय में उन्हें दस्यु सम्राट कहा जाता था। लेकिन रमेश सिंह अब चीता मित्र बन गए हैं। बता दें श्योपुर स्थित कूनो नेशनल पार्क में नामीबिया से चीतों को लाकर बसाया जा रहा है। ऐसे में पार्क के आसपास के गांवों में रहने वाले लोग चीतों से डरकर उन्हें नुकसान न पहुंचाएं, इसके लिए सरकार ने खास इंतजाम किये हैं। यहां चीता मित्र बनाए हैं। 90 गांवों के करीब 457 लोगों को चीता मित्र बनाया है। इन्हीं में एक नाम है रमेश सिकरवार का है। रमेश पहले डकैत थे। उन पर करीब 70 हत्याओं का आरोप था। साल 1984 में दस्यु रमेश सिंह सिकरवार ने अपने गिरोह के साथ पुलिस के सामने आत्मसमर्पण कर दिया था। इसके बाद वे दस साल जेल में भी रहे। सजा पूरी करने के बाद रमेश सिकरवार को जेल से रिहा किया गया था।
क्यों उठाई थी रमेश सिंह ने बंदुक
रमेश सिंह सिकरवार का परिवार भी आम लोगों की तरह था। श्योपुर जिले के कराहल ब्लॉक के ग्राम लहरोनी में खेती किसानी करते थे। खेती से जो आमदनी होती थी रमेश सिंह उसी से परिवार का पालन पोषण करते थे लेकिन 1976 में परिवार में जमीनी विवाद को लेकर रमेश सिंह ने अपने ही चाचा की हत्या कर दी थी। इसके बाद वे बागी हो गए। रमेश सिंह ने अपना एक गिरोह बनाकर कूनो के जंगलों को बसेरा बना लिया। रमेश सिंह सिकरवार और उनके गिरोह ने कई वारदातों को अंजाम दिया। पुलिस ने रमेश सिंह सिकरवार को पकड़ने के कई बार प्रयास किए लेकिन कूनो के जंगल की चप्पे चप्पे की जानकारी रमेश और उसके गिरोह को थी ऐसे में वो हर बार पुलिस को चकमा देने में कामयाब होजाते थे। इसी के चलते पुलिस के हाथ नहीं लगे। दस्यु रमेश सिंह सिकरवार ने कई वर्ष कूनो के जंगल में गुजारे। वे जंगल के चप्पे चप्पे से बाकिफ हैं।
मुखबिरी पर की थी 27 लोगों की हत्या
साल 1983 के आते आते रमेश सिकरवार दस्यु सम्राट बन चुका था। इस बीच उसके खास सहयोगी रहे हल्के धानुक को खाड़ी गांव में गांव के ही कुछ लोगों ने मुखबिरी कर मरवा दिया। जिससे खफा होकर दस्यु रमेश सिंह सिकरवार ने खाड़ी के ग्रामीणों से बदला लिया। साथी की मौत का बदला बदला पूरा करने के लिए उन्होंने गांव पहुंचकर 27 लोगों की एक साथ हत्या। इसके बाद साल 1984 में दस्यु रमेश सिंह सिकरवार ने गिरोह के साथ पुलिस के सामने सरेंडर कर दिया था। सरेंडर की शर्त के अनुसर उसे दस साल सजा हुई। दस साल की सजा काटने के बाद रमेश सिकरवार जेल से रिहा हुआ था।
शिकारियों में अब भी है रमेश सिकरवार का खौफ
चीता मित्र बने रमेश सिंह का कहना है कि उसने दस्यु रहते हुए कई शिकारियों को सजा दी थी। वे वन्यजीवों से प्रेम करते हैं। इसलिए वे जब जंगल में रहते थे, तो किसी भी शिकारी को शिकार नहीं करने देते थे। मना करने के बाद भी कोई ऐसा करता हुआ शिकारी उन्हें मिला जाता था तो उसे वे कड़ी से कड़ी सजा देते थे। इतना ही नहीं वे किसी भी व्यक्ति को जंगल में घुसकर अवैध रूप से पेड़ की काटाई नहीं करने देते थे। उनका मानना था कि जिस जंगल में उनकी रक्षा की तो उनका भी फर्ज जंगल की रक्षा करना है।
अब चीता मित्र के रुप में जंगल में उतरेंगे
रमेश सिंह सिकरवार का कहना है उन्होंने दस्यु रहते कई साल जंगलों में बिताए। जब वे दस्यु बने तो जंगल में उतर गए थे। जंगल ने उन्हें पनाह दी। अब वन विभाग ने उन्हें एक बार फिर जंगल में उतर कर वन्य प्राणियों की रक्षा करने का दायित्व सौंपा है। कभी दुस्यु रहे रमेश सिकरवार ने चीता मित्र बनने के बाद शिकारियों को जंगल में शिकार ना करने की चेतावनी दी है। इसका संदेश भी उन्होंने सभी को पहुंचा दिया है।। रमेश सिंह का कहना 70 साल पहले जो चीते देश में विलुप्त हो गए थे। आज उन्हीं चीतों को फिर से कूनो के जंगल में बसाने की कोशिश की जा रही है। चीते फिर से लौटे हैं से उनके क्षेत्र के लिए बड़े गौरव के क्षण हैं।