रामनवमी पर इस बार तृणमूल कांग्रेस की अलग तस्वीर देखने को मिली। तस्वीर में बीरभूम से टीएमसी के उम्मीदवार शताब्दी रॉय को सिउरी में रामनवमी जुलूस में भाग लेते देखा गया। निवर्तमान सांसद के साथ टीएमसी बीरभूम कोर कमेटी संयोजक बिकास रॉय चौधरी भी नजर आए। पिछले सालों तक तृणमूल कांग्रेस के नेता वीरभूम में इतने भव्य तरीके से रामनवमी समारोह में हिस्सा लेते कभी नहीं देखा गया था। लेकिन इस बार लोकसभा चुनाव में ममता की टीएमसी के नेता पूरे जोश के साथ रामनवमी के जुलूस में हिस्सा लेते नजर आए। बता दें कि करीब 500 साल के लंबे इंतजार के बाद राम नगरी अयोध्या में भव्य राम मंदिर का उद्घाटन किया गया है। रामलला की प्रतिमा प्रतिष्ठापित हुई है। राममंदिर और रामलला को लेकर पूरे देश के लोगों में उत्साह है और बीजेपी इसे लोकसभा चुनाव में बड़ा मुद्दा बना रही है। बीजेपी के नेता राममंदिर में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा के कार्यक्रम में इंडिया गठबंधन के नेताओं के शामिल नहीं होने को हिंदू धर्म ही नहीं संस्कृति का अपमान भी करार दे रही है। ऐसे में विपक्षी दल के नेता अपने क्षेत्र के मतदाताओं को लुभाने के लिए रामनवमी के उत्सव का इस्तेमाल करते नजर आए।
- लोकसभा चुनाव के बीच राम मंदिर ने बदली बंगाल की सियासत?
- पिछले साल 2023 को हुए थे रामनवमी पर पश्चिम बंगाल में दंगे
- रामनवमी पर इस बार किया था अवकाश का ऐलान
- चुनाव प्रचार में जुटे टीएमसी के उम्मीदवार
- रामनवमी जुलूस में शामिल होते दिखे टीएमसी उम्मीदवार
- बंगाल में रामनवमी के अवसर पर दिखी अलग तस्वीर
- बीरभूम से टीएमसी उम्मीदवार हैं शताब्दी रॉय
- राम नवमी पर जुलूस में नजर आईं शताब्दी रॉय
बता दें कि कुछ समय पहले श्रीराम के नारे लगने के बाद पश्चिम बंगाल की सीएम और टीएमसी प्रमुख ममता बनर्जी उखड़ गईं थीं। उन्होंने खुलेआम राम मंदिर का नारा लगाने वालों को फटकार लगाई थीं। इसी तरह से विक्टोरिया मेमोरियल में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के साथ कार्यक्रम में जब दर्शकों ने जयश्री राम के नारे लगाए थे। उस समय ममता बनर्जी गुस्सा हो गईं थीं। वे कार्यक्रम को बीच में छोड़कर चली गईं थीं। हालांकि अब आखिर क्या कारण है कि पश्चिम बंगाल में मुस्लिमों को लेकर राजनीति करने वाली टीएमसी हिंदुओं को लुभाने में जुटी हैं? वहीं टीएमसी के बड़े नेता इस बार रामनवमी के कार्यक्रम में शिरकत करते नजर आए। हिंदू वोटों को लुभाने की कवायद पश्चिम बंगाल की सियासत में यह बात कही जाती है कि बंगाल में सीएम की कुर्सी पर वही बैठता है। जिसे मुस्लिम समुदाय का समर्थन मिलता है। राज्य में मुस्लिमों की आबादी करीब 27 प्रतिशत के आसपास है। लेकिन पिछले 2019 के लोकसभा चुनाव में बंगाल की सियासत के मिथक को तोड़ दिया है। पश्चिम बंगाल में बीजेपी ने बगैर मुस्लिमों को लुभाने की कोशिश किये राज्य की 42 लोकसभा सीटों में से 18 लोकसभा सीट पर कब्जा किया था। लोकसभा की कई सीटों पर हिंदु मतदाताओं ने एकजुट होकर बीजेपी के पक्ष में वोट किया था। ऐसे में तृणमूल कांग्रेस नहीं चाहती है कि फिर से हिंदुओं वोट बीजेपी के खाते में चली जाए। लिहाजा सीएम ममता बनर्जी ने पहले रामनवमी के अवसर पर अवकाश की घोषणा की और अब रामनवमी के अवसर टीएमसी नेता जुलूस में शामिल हुए। भाजपा के बीरभूम संगठनात्मक जिला अध्यक्ष ध्रुव साहा का कहना है कि तृणमूल भाजपा की राह पर चलने की बेताब कोशिश कर रही है। उनके शब्दों में तृणमूल को हिंदू वोट पाने के लिए मजबूर किया जा रहा है। हालांकि तृणमूल उम्मीदवार इस सिद्धांत को स्वीकार करने को तैयार नहीं हैं। उनका कहना है कि भगवान जय श्री राम का नारा लगाना कोई अनोखा नहीं है। यह नारा लगाने का अधिकार किसी एक का नहीं है। बल्कि भगवान श्री राम सबके हैं। यह नारा तो भगवान से प्रार्थना करने का एक मंत्र है। जिसे सब दोहरा सकते हैं।
मुस्लिम वोट के धुव्रीकरण का खतरा
लोकसभा चुनाव में बंगाल में लेफ्ट और कांग्रेस एक साथ चुनाव लड़ रहे हैं, जबकि टीएमसी राज्य की सभी लोकसभा सीटों पर अकेले चुनाव मैदान में उतरी हैं। टीएमसी हालांकि इंडिया गठबंधन का हिस्सा थी, लेकिन चुनाव से पहले पश्चिम बंगाल में इंडिया गठबंधन पूरी तरह से बिखर गया। ऐसे में मुस्लिम वोट के विभाजित होने का खतरा है। चुनाव में मुस्लिम वोट का विभाजन होता है, तो इसका लाभ किसी न किसी रूप से बीजेपी को ही होगा। लिहाजा टीएमसी चुनाव में मुस्लिमों के वोट के बंटने के बाद होने वाले नुकसान की भरपाई हिंदू वोटर्स से करना चाहती हैं। इसके पहले सागरदिघी विधानसभा सीट पर हुए उपचुनाव में टीएमसी के उम्मीदवार को हार का सामना करना पड़ा था। हालांकि यह इलाका मुस्लिम बाहुल्य है, लेकिन मुस्लिम वोटर्स ने खुलकर कांग्रेस उम्मीदवार का समर्थन किया था। जिसके बाद ममता बनर्जी अभी तक भी सागरदिघी में टीएमसी की हार को नहीं भूली हैं। पिछली बार पंचायत चुनाव में भी तृणमूल के नेतृत्व वाली तीन विधानसभाओं में से वाम-कांग्रेस के प्रत्याशियों ने कई पंचायतों पर कब्जा किया था।
सीएए के चलते हिंदू वोटर्स का ध्रुवीकरण
केंद्र सरकार ने लोकसभा से पहले सीएए लागू करने के लिए अधिसूचना जारी की थी। पिछले लोकसभा चुनाव में सीएए लागू करने के ऐलान से ही राज्य के मतुआ वोट पूरी तरह से बीजेपी में शिफ्ट हो गए थे। मतुआ समुदाय ने भी खुलकर बीजेपी का समर्थन किया था। ऐसे में केंद्र सरकार ने सीएए लागू करने की अधिसूचना जारी कर दी गई। जिस पर बंगालादेश से आए हिंदुओं के पूरी तरह से एकजुट होने की उम्मीद है। ऐसे में हिंदु वोटर्स के ध्रुवीकरण को रोकने के लिए सीएम ममता बनर्जी और टीएमसी के नेता लगातार सीएए के विरोध में आवाज बुलंद करते नजर आ रहे है। टीएमसी ने वादा किया है कि केन्द्र में इंडिया गठबंधन की सरकार बनी तो सीएए कानून रद्द किया जाएगा। नआरसी को भी समाप्त किये जाने की बात कही जा रही है। ममता बनर्जी भी लगातार एनआरसी के विरोध में आवाज उठा रही हैं और ममता हर मंच से सीएए और एनआरसी को मुस्लिम विरोधी करार देती नही आ रही हैं।
क्या है संदेशखाली की महिलाओं का ‘संदेश’
वहीं राज्य के संदेशखाली में हुई महिलाओं पर अत्याचार की घटना और ईडी अधिकारियों पर किये गये हमलों और इसके बाद भपतिनगर में सीबीआई अधिकारियों की टीम पर किये गये हमले की घटना के बाद टीएमसी बैकफुट पर है। पश्चिम बंगाल हो या फिर देश का दूसरा प्रदेश महिलाएं साइलेंट वोटर मानी जाती हैं। किसी भी उम्मीदवार की जीत में आधी आबादी के वोट की अहम भूमिका मानी जाती है। ऐसे में संदेशखाली की घटना के बाद से ही राज्य की महिलाएं टीएमसी से नाराज हैं। लिहाजा चुनाव से पहले फिर किसी भी रूप में महिला मतदाताओं को टीएमसी और अधिक नाराज नहीं करना चाहती हैं।