2024 के लोकसभा चुनावों के तैयारियों में राजनैतिक दल लगे हुए हैं। बीजेपी के खिलाफ कांग्रेस पार्टी ने इंडिया गठबंधन बनाया है। इस गठबंधन में घटक दलों को मनाने और सीट शेयरिंग को लेकर कांग्रेस को कई तरह के समझौते करने पड़ रहे हैं। इन चुनावों में देश की सबसे पुरानी कांग्रेस पार्टी हाशिए पर दिखाई दे रही है। कांग्रेस के हाशिये पर जाने के पीछे की वजह जानकर आप भी हैरान हो जाऐंगे। मौजूदा दौर में बीजेपी कांग्रेस पर परिवारवाद का आरोप लगा रही है। बीजेपी का आरोप है कि कांग्रेस केवल एक परिवार की पार्टी है। अगर हम देश के राजनैतिक इतिहास पर जाए तो शायद हालात कुछ ऐसे ही नजर आऐंगे। सियासी जानकारों का मानना है कि पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय राजीव गांधी के कार्यकाल में लिये फैसलों के चलते आज कांग्रेस पार्टी को अपना अस्तित्व तलाशने को मजबूर होना पड़ रहा है। 10 साल पहले तक देश पर राज करने वाली कांग्रेस आज तीन अंकों में आने वाली सीटों के लिए तरस रही है। आइए बताते हैं आपको कि जानकार किन तीन फैसलों को लेकर राजीव गांधी को कटघरे में खड़ा कर रहे हैं। जिनके चलते आज कांग्रेस हाशिये पर नजर आ रही है।
- 1989 के बाद देश में कमजोर होगी गई कांग्रेस
- अपना अस्तित्व तलाशने को मजबूर कांग्रेस
- 1984 में सहानभूति लहर के चलते मिला था कांग्रेस को प्रचंड बहुमत
- 1984 के आमचुनाव में कांग्रेस को मिली थी 404 सीट
- 1986 में सामने आया शाहबानो प्रकरण
- राजीव गांधी ने खुलवाया था अयोध्या में राम मंदिर के ताला
- 1989 में बड़ी पार्टी के बाद भी कांग्रेस ने नहीं बनाई सरकार
- बीजेपी और वामदल ने बनवा दी जनता दल की सरकार
- 1989 में अस्तित्व में आया राजनीतिक गठबंधन
कांग्रेस पर भारी पड़ा पड़ा शाहबानो और राम मंदिर मुद्दा
1984 में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद राजीव गांधी प्रधानमंत्री बने। 1984 के लोकसभा चुनाव में सहानभूति लहर के चलते कांग्रेस को प्रचंड बहुमत मिला। कांग्रेस 1984 के आमचुनाव में 404 सीटों के साथ लोकसभा में पंहुची। इसी दौरान शाहबानो प्रकरण सामने आया। इसमें शाहबानो नाम के एक मुस्लिम महिला ने तलाक के बाद पति से गुजारा भत्ता मांगा। मामला सुप्रीम कोर्ट तक जा पहुंचा सुप्रीम कोर्ट ने महिला के पक्ष में फैसला सुनाया। जिससे मुस्लिम कट्टरपंथी नाराज हो गए। मुस्लिम कट्टरपंथियों का तर्क था कि मुस्लिम शरियत कानून मानते हैं। शरियत के मुताबिक महिलाओं को गुजारा भत्ता नहीं मिल सकता। मुस्लिम कट्टरपंथियों की नाराजगी के डर से राजीव गांधी ने कोर्ट के फैसले को संसद में बदल दिया। शाहबानो को गुजारा भत्ता नहीं मिला।
- शाहबानो ने तलाक के बाद मांगा था पति से गुजारा भत्ता
- सुप्रीम कोर्ट ने भी लगाई थी अपने फैसले से मुहर
- सुप्रीम कोर्ट के फैसले से नाराज हो गए मुस्लिम कट्टरपंथी
- मुस्लिम कट्टरपंथियों की नाराजगी से डर गए थे राजीव गांधी
- राजीव गांधी ने संसद में बदल दिया कोर्ट का फैसला
- राजीव गांधी सरकार के फैसले से नहीं मिला शाहबानो को गुजारा भत्ता
- इसे बीजेपी ने बनाया मुद्दा
- बीजेपी राजनीति में लेकर आई छ्दम धर्मनिरपेक्षता के शब्द
- जगह जगह कांग्रेस को होना पड़ा आलोचना का शिकार
बीजेपी छ्दम धर्मनिरपेक्षता के शब्द को राजनीति में लेकर आई। जगह जगह कांग्रेस के आलोचना का शिकार होना पड़ा। जल्दी ही राजीव गांधी समझ गए कि उनसे बड़ी राजनैतिक भूल हो गई है। इस भूल की भरपाई के लिए और कांग्रेस को छ्दम धर्मनिरपेक्षता के टैग को हटाने के लिए 1986 में राजीव गांधी ने राम मंदिर विवादित स्थल का ताला खुलवा दिया। और कांग्रेस का यही फैसला उसके खत्म होने का दूसरा कारण बना। राजीव गांधी की हत्या हो गई। उसके बाद बीजेपी ने राम मंदिर के मुद्दे को जमकर कैश कराया। यही वो मुद्दा था, जिससे बीजेपी चुनाव दर चुनाव सफलता की सीढ़ी चढ़ने लगी और आज जहां बीजेपी प्रचंड बहमुत से सत्ता में है वहीं कांग्रेस को बीजेपी के खिलाफ लड़ने के लिए साथियों को तलाशना पड़ रहा है।
पैर पर कुल्हाड़ी मारी थी या कुल्हाड़ी पर पैर!
इसके बाद साल 1989 के आम चुनाव ने राजीव गांधी की कांग्रेस जिसने 1984 में 414 सीट जीती थी उसे 197 सीटों पर सिमटा दिया। 1989 में कांग्रेस के बाद जनता दल दूसरी सबसे बड़ी पार्टी थी, जिसे लोकसभा की 143 सीटें मिली थीं। सबसे बड़ी पार्टी होने के बाद भी कांग्रेस खासकर राजीव गांधी ने केन्द्र में सरकार बनाने का दावा न करने का फ़ैसला किया। इस फैसले ने एक ऐसे अस्वाभाविक गठबंधन का रास्ता खोल दिया। जिसमें एक-दूसरे के घोर वैचारिक दुश्मन माने जाने वाली बीजेपी और वामदल पंथी दलों ने बाहर से समर्थन देकर वी.पी.सिंह की सरकार बनवा दी थी। जाहिर सी बात है राजीव गांधी उस समय यही सोचा रहे होंगे कि इस तरह का बेमेल राजनीतिक गठबंधन अधिक दिनों तक नहीं चलने वाला है। अगले चुनाव में वे फिर सत्ता में वापस आ जाएंगे। लेकिन राजीव गांधी सियासी आकलन करने में बड़ी गलतियां कर बैठे। राजीव गांधी की सबसे बड़ी राजनीतिक भूल यह थी कि वे यह नहीं समझ ही पाए कि बीजेपी को कांग्रेस के राष्ट्रीय विकल्प के तौर पर खड़ा करने का मौका देने के क्या खतरे हो सकते हैं। 1989 के बाद कांग्रेस लगातार कमजोर पड़ती गई। इधर बीजेपी की लोकसभा सीटों की संख्या जल्द ही सैकड़े के अंक तक पहुंच गई। 1998 के आते आते बीजेपी ने अछूत वाले अपने ठप्पे से इस हद तक मुक्ति पा ली थी कि 1998 में बड़ी संख्या में क्षेत्रीय दलों ने बीजेपी के साथ गठजोड़ करने में कोई बुराई नहीं समझी। एक दूसरे का विरोध करने वाले मंडलवादी और वामपंथी दलों ने भी बीजेपी के साथ गठबंधन करने से गुरेज नहीं किया 1989 में यह राजीव गांधी की ओर से बीजेपी को मिला उपहार था। राजीव गांधी की पार्टी कांग्रेस बाद में 15 साल तक केन्द्र की सत्ता में जरूर रही लेकिन वह धीरे धीरे कमजोर पड़ती गई। राजीव गांधी के इस एक गलत आकलन ने भारतीय राजनीति में देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस के युग का पटाक्षेप कर दिया। इसके बाद 2014 में शुरु हुआ बीजेपी का युग। इसके महज दस साल बाद अब 2024 में बीजेपी से निपटने के लिए कांग्रेस को दूसरी पार्टियों के सहारे की जुरुरत आ पड़ी है।