राजस्थान में इस साल के अंत में विधानसभा चुनाव होना हैं, लेकिन राज्य के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और पूर्व डिप्टी सीएम सचिन पायलट के बीच सियासी अदावत कम होने का नाम नहीं ले रही है। गहलोत के खिलाफ अक्सर पायलट मुखर नजर आते हैं। कांग्रेस में छाए इस संकट के बीच बीत कुछ दिन से राजस्थान का सत्ता संघर्ष सुर्खियों में हैं। इसके केंद्र में रहे कांग्रेस के युवा तुर्क माने जाने वाले सचिन पायलट। पायलट के बगावती तेवर के चलते राजस्थान का सियासी संग्राम दिलचस्प बना हुआ है। राजस्थान में पिछले कई चुनावों से राज बदलने का रिवाज कायम है। वहीं बीजेपी भी इस बार पूरा जोर लगा रही है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी स्वयं राजस्थान में कई कार्यक्रम कर चुके हैं। वे लगातार इस पर नजर बनाए हुए हैं। ऐसे में माना जा रहा है कि कांग्रेस और सचिन पायलट के लिए इस बार आगे की राह इतनी आसान नहीं होगी।
सबसे कम उम्र में सांसद बनने का रिकॉर्ड
सचिन पायलट ने सबसे कम उम्र में सांसद बनकर संसद में जाने का एक नया रिकॉर्ड बनाया था। जिससे ये साबित होता है कि वे युवाओं और राजनीति जगत में सबसे लोकप्रिय नेताओं में से एक हैं। विरासत में मिली राजनीति को अपनी मेहनत से कम उम्र में केंद्रीय मंत्री ही नहीं राजस्थान के डिप्टी सीएम की जिम्मेदारी भी संभाल चुके हैं। सचिन पायलट दो बार सांसद और एक बार विधायक रहे। इसी दौरान गृह मामलों की स्टैंडिंग कमेटी के मेम्बर और नागरिक उड्डयन मंत्रालय में एडवाइजरी कमेटी के मेम्बर भी थे। इसके बाद कॉर्पोरेट मामलों के मंत्री, राजस्थान प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष और राजस्थान के उपमुख्यमंत्री बनाये गए थे।
पिता से विरासत में मिले सचिन को बगावती तेवर
2018 में कांग्रेस की सरकार बनने के बाद मुख्यमंत्री पद को लेकर अशोक गहलोत और सचिन पायलट में गहमागहमी बनी रही। हालांकि सचिन पायलट राजस्थान कांग्रेस के अध्यक्ष थे और मुख्यमंत्री पद के प्रबल दावेदार थे। लेकिन कांग्रेस ने अशोक गहलोत को मुख्यमंत्री पद की जिम्मेदारी सौंपी थी जबकि पायलट डिप्टी सीएम बनाया गया। लेकिन दोनों के बी सियासी अदावत नहीं थमी। कहा जाता है कि तब भी सीएम पद को लेकर गहलोत और पायलट के बीच झगड़ा चला था। कहा जाता है कि दोनों के बीच तब से मनमुटाव जारी रहा। 2020 में यह मनमुटाव खुलकर सामने आ गया। सचिन पायलट ने बगावत कर दी। वह कुछ विधायकों के साथ राजस्थान से बाहर चले गए थे। काफ़ी दिनों के बाद पायलट माने थे। पायलट प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष और उप मुख्यमंत्री जैसे बड़े पद पर भी थे लेकिन बगावत के बाद उन्हें दोनों पदों से हाथ धोना पड़ा था। दरअसल सचिन पायलट को बगावती तेवर अपने पिता स्वर्गीय राजेश पायलट से विरासत में मिले हैं। करीब 13 साल भारतीय वायुसेना में रहने के बाद राजेश पायलट ने राजनीति की राह पकड़ी थी। राजेश पायलट की एंट्री सीधे गांधी परिवार के जरिए ही राजनीति में हुई थी। साल 1980 में उन्होंने राजस्थान की भरतपुर लोकसभा सीट से चुनाव जीता। लेकिन राजीव गांधी की हत्या के बाद जब कांग्रेस में उथल पुथल मची तो राजेश पायलट भी कई मौकों पर अपने तेवर दिखाते रहे। इसका सबसे पहला उदाहरण 1997 में देखने को मिला जब राजेश पायलट ने सीताराम केसरी के खिलाफ कांग्रेस अध्यक्ष पद पर चुनाव लड़ा था। हालांकि पायलट को हार का सामना करना पड़ा था इसके बाद नवंबर 2000 में जब बागी नेता जितेंद्र प्रसाद ने कांग्रेस अध्यक्ष पद पर सोनिया गांधी के खिलाफ चुनाव लड़ा तो राजेश पायलट ने जितेंद्र प्रसाद के साथ खडे़ नजर आए थे। इस बीच 11 जून 2000 को एक सड़क हादसे में राजेश पायलट का निधन हो गया।
सचिन पायलट का सियासी सफर
साल 2004 में सक्रिय राजनीति में कदम रखने वाले सचिन पायलट ने 14वीं लोकसभा चुनाव में दौसा निर्वाचन क्षेत्र से चुनाव जीता था। उनके पिताजी भी इसी निर्वाचन क्षेत्र से चुनाव लड़ा करते थे। सचिन ने यहां से जीत दर्ज कर 26 साल की उम्र में देश के सबसे कम उम्र के सांसद बनने का रिकार्ड अपने नाम किया था। साल 2009 में इस बार दौसा की बजाय अजमेर लोकसभा से चुनाव लड़ा उनके सामने बीजेपी की किरण माहेश्वरी थी। जिन्हें 76 हज़ार मतों से हराकर जीत दर्ज की। सचिन पायलट होम अफेयर्स की लोकसभा की स्थायी समिति के सदस्य और सिविल एविएशन मिनिस्ट्री में एडवाइजरी कमेटी के सदस्य भी रहे। साल 2012 में मनमोहन सिंह सरकार के दूसरे कार्यकाल में कॉर्पोरेट मामलों के राज्यमंत्री बने। साल 2014 के लोकसभा चुनावों में एक बार फिर से अजमेर लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र से चुनाव लड़ा। इस बार उनके सामने भारतीय जनता पार्टी के सांवरलाल जाट चुनावी मैदान में थे। लेकिन मोदी लहर के चलते सचिन को करीब 1 लाख 71 हजार वोट के अंतर से हार का समाना करना पड़ा था। साल 2014 में उन्हें राजस्थान के प्रदेश कांग्रेस कमेटी का अध्यक्ष बनाया गया। साल 2018 में टोंक विधान सभा सीट से चुनाव लड़ा उनके सामने बीजेपी के उम्मीदवार यूनुस खान थे। जिन्हें सचिन ने 54 हजार मतों के अंतर से हराकर जीत दर्ज की। उस वक्त राजस्थान में कयास लगने लगे थे कि 2018 में राजस्थान का मुख्यमंत्री सचिन पायलट को बनाया जायेगा। क्यों कि कांग्रेस की जीत में मुख्य भूमिका निभाने वाले सचिन थे लेकिन 17 दिसंबर 2018 उन्हें राजस्थान का उप मुख्यमंत्री बनाया गया। राजस्थान की राजनीति सीएम गहलोत से मतभेद के चलते सचिन को प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष पद के साथ ही डिप्टी सीएम के पद से भी हटा दिया गया था।
फारुख अब्दुल्ला की बेटी सारा से की शादी
7 सितंबर 1977 को उत्तरप्रदेश के सहारनपुर में सचिन पायलट का जन्म हुआ था। उनके पिता स्वर्गीय राजेश पायलट पूर्व केंद्रीय मंत्री थे। सचिन की प्रारंभिक शिक्षा नई दिल्ली के एयर फोर्स बाल भारती स्कूल में हुई। उन्होंने सेंट स्टीफेंस कॉलेज से बीए की डिग्री हासिल की। सचिन पायलट ने गाजियाबाद के आईएमटी कॉलेज से मार्केटिंग में डिप्लोमा किया। इसके बाद अमेरिका के फिलाडेल्फिया में पेंसिलवेनिया विश्वविद्यालय के व्हार्टन स्कूल से एमबीए किया। इसके बाद 15 जनवरी 2004 को उन्होंने जम्मू.कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री फारुख अब्दुल्ला की बेटी सारा अब्दुल्ला से शादी की। उनके दो बेटे हैं।
फिलहाल चुनाव की तैयारी में जुटे हैं पायलट, जाटलैंड में ताबड़तोड़ सभाएं
सचिन पायलट को राहुल और प्रियंका गांधी के करीबी माना जाता है। राजस्थान के मुख्यमंत्री बनने के लिए उन्होंने पुरजोर कोशिश की, लेकिन सफल नहीं हुए। अब साल के अंत में राजस्थान विधानसभा के चुनाव होना हैं। माना जा रहा है चुनाव के बाद शायद प्रदेश में नेतृत्व परिवर्तन हो। ऐसे में सबकुछ छोड़कर सचिन पायलट फिलहाल विधानसभा चुनाव की तैयारी में जुटे हैं। उन्होंने जाटलैंड में ताबड़तोड़ सभाएं की हैं। पायलट की लोकप्रियता के चलते इन सभाओं में बड़ी संख्या में लोगों की मौजूदगी दर्ज की। वहीं पेपर लीक मामले में पायलट ने अपनी ही सरकार पर सवाल भी उठाए। गहलोत पर हमला बोलते हुए पायलट ने कहा कॉपी तिजोरी में बंद होकर बच्चों तक पहुंच गई। यह तो जादूगरी हो गई। कोई न कोई तो जिम्मेदार होगा।
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