कटारिया की सीट पर नहीं होगा उप चुनाव,लेकिन इस सीट पर है मेवाड़ राजघराने की नजर,राजपूत समाज की भी दावेदारी

Gulabchand Kataria Governor

जयपुर राजस्थान में साल के अंत में विधानसभा चुनाव होना हैं। ऐस बीच बीजेपी की ओर से विधानसभा में पार्टी की ओर से सरकार को घेरने वाले नेता प्रतिपक्ष गुलाबचंद कटारिया को राज्यपाल बना दिया गया है। वे जल्द ही नेता प्रतिपक्ष और विधायकी से इस्तीफा देने वाले हैं। कटारिया राजस्थान की उदयपुर शहर विधानसभा सीट से चुनकर आते हैं।

साल के अंत में होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले ही राजघराने के लक्ष्यराज सिंह मेवाड़ इस सीट से दावेदारी जता रहे हैं। वहीं लालसिंह झाला और फतेह सिंह के रूप में राजपूत समाज से भी दावेदारी की जा रही है। हालांकि बीजेपी और कांग्रेस दोनों ब्राह्मण चेहरों पर भी दांव खेल सकती है। बीजेपी की ओर से जैन, वैश्य चेहरे के रूप में महिला बीजेपी प्रदेशाध्यक्ष अल्का मूंदड़ा मजबूत दावेदार हैं। पूर्व मेयर रजनी डांगी, उपमहापौर पारस सिंघवी, ताराचंद जैन, डॉ. जिनेंद्र शास्त्री जैसे नेता भी अपनी अपनी दावेदारी पेश कर रहे हैं। वहीं कांग्रेस की ओर से से पंकज शर्मा, दिनेश श्रीमाली, गोपाल शर्मा, सुरेश श्रीमाली जैसे दावेदार सामने आ रहे हैं।

हालांकि कटारिया के इस्तीफे से खाली होने वाली उदयपुर शहर सीट पर माना जा रहा है कि उपचुनाव नहीं होंगे, क्योंकि विधानसभा चुनाव में अब ज्यादा समय नहीं बचा है। ऐसे में साल के अंत में होने वाले विधानसभा चुनाव तक ये सीट खाली रहेगी। वहीं यह सीट अब कांग्रेस और बीजेपी दोनों के लिए बेहद महत्वपूर्ण साबित होगी। क्योंकि कटारिया यहां 2003 से लगातार चुनाव जीते आ रहे हैं। उनके चुनाव लड़ने और जीतने के बीच राजस्थान में 2 बार कांग्रेस की सरकार आई, लेकिन वे हर बार जीते। पिछली बार उन्होंने पूर्व केंद्रीय मंत्री और कांग्रेस की कद्दावर नेता डॉ.गिरिजा व्यास को परास्त किया था। ऐसे में साल के अंत में होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए भी इसे बीजेपी के लिए सुरक्षित सीट माना जा सकता है।

कटारिया के जाते ही बदल जाएंगे सियासी समीकरण

उदयपुर शहर विधानसभा सीट कांग्रेस अपने लिए सबसे चुनौतीपूर्ण सीटों में से एक मानती है। दरअसल 1980 से बीजेपी नई पार्टी बनने के बाद अबतक इस सीट पर कांग्रेस सिर्फ 2 बार जीत हासिल कर पाई है। साल 1985 से 1990 में डॉ.गिरिजा व्यास और फिर 1998 से 2003 में त्रिलोक पूर्बिया, केवल दो कांग्रेस प्रत्याशी ही यहां चुनाव जीतने में सफल रहे।

कभी कांग्रेस का गढ़ था उदयपुर

बता दें मौजूदा दौर में उदयपुर पर बीजेपी की मजबूत पकड़ है, लेकिन कभी यह कांग्रेस का गढ़ हुआ करती थी। राजस्थान में सबसे ज्यादा समय तक मुख्यमंत्री की कुर्सी संभालने वाले मोहनलाल सुखाड़िया इस उदयपुर शहर सीट से ही चुनकर आते थे। बता दें 1951 में राम राज्य परिषद पार्टी के देवी सिंह के बाद 1957 से 1972 तक मोहनलाल सुखाड़िया लगातार चुनाव जीते। इस दौरान 14 साल तक वे सीएम भी रहे। लेकिन सुखाड़िया के सीट छोड़ने के बाद कांग्रेस केवल 2 बार ही चुनाव जीत सकी। उदयपुर में बीजेपी की पकड़ का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि 1980 में पार्टी बनने के बाद बीजेपी 33 साल यहां सत्ता में रही। बीजेपी से गुलाबचंद कटारिया और शिव किशोर सनाढ्य इस दौरान सत्ता में रहे। जबकि कांग्रेस से सिर्फ दो विधायक ही चुनाव जीत सके। 1980 से 85, 1990 से 1998 तक। फिर 2003 से अब तक यहां बीजेपी प्रत्याशी ने ही जीत दर्ज की।

जनसंघ के भानू कुमार से कटारिया तक

मोहन लाल सुखाड़िया ने जब सीट छोड़ी तो कांग्रेस के हाथ से ये सीट निकल गई। भारतीय जन संघ से भानू कुमार शास्त्री ने साल 1972 में यहां से विधानसभा चुनाव जीता। उस समय भी राजस्थान में कांग्रेस की ही सरकार बनी थी। इसके बाद 1977 में विधानसभा चुनाव हुए तो पहली बार गुलाबचंद कटारिया ने इस सीट पर जीत दर्ज की। कटारिया 1977 के बाद से ही वे जनता पार्टी से विधायक बने थे। इसके बाद 1980 में बीजेपी अस्तित्व में आई तो बीजेपी के चुनाव निशान पर कटारिया ने दोबारा यहां चुनाव जीता।

बीजेपी ने जीते 15 में से 7 चुनाव

उदयपुर शहर विधानसभा सीट पर ओवरऑल बीजेपी ने कांग्रेस के मुकाबले ज्यादा समय तक राज किया। अब तक हुए 15 विधानसभा चुनावों में से 7 बार इस सीट पर बीजेपी ने जीत हासिल की। जबकि कांग्रेस सिर्फ 5 बार ही जीत सकी। इसके अलावा जनसंघ, जनता पार्टी और राम राज्य परिषद ने भी एक एक बार चुनाव जीता।

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