लोकसभा चुनाव का अंतिम चरण 1 जून को संपन्न होने के बाद 4 जून को चुनाव परिणाम सामने आ जाएंगे। केन्द्र की नई सरकार करीब 10 जून तक अस्तित्व में आने की संभावना है। यानी 4 जून को नतीजे आने के बाद यह स्पष्ट हो जाएगा कि देश में सत्ता की बागडोर कौन संभालेगा। हालांकि चुनाव परिणाम आने से पहले ही नरेंद्र मोदी सरकार की वापसी और पीएम के तौर पर नरेंद्र मोदी के तीसरे कार्यकाल की भविष्यवाणी की जा रही है। इसके साथ यह भी कहा जा रहा है कि इस बार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कई बड़े फैसले सत्ता में आने के बाद ले सकते हैं।
- मोदी 3.0 सरकार में जीएसटी के दायरे में होंगे पेट्रोल-डीजल
- सख्त होंगे राज्यों के लिए बजट नियम
- राज्यों की केंद्र सरकार पर बढ़ेगी निर्भरता
बता दें आम चुनाव के चलते केंद्र की मौजूदा मोदी सरकार ने इस बार संसद में बजट पेश नहीं किया था। ऐसे में आमसभा चुनाव संपन्न होने के बाद जो नई सरकार अस्तित्व मे आएगी। वह संसद में अपना बजट पेश करेगी। जिसमें कुछ राहत तो कुछ नए टैक्स लगाए जाने की संभावना अर्थशास्त्री जता रहे हैं।
बजट में टेक्स बढ़ना तय
सरकार की जितनी आय पिछले वर्षों में बढ़ी है। उस आय की तुलना में सरकार के खर्च आय की तुलना में कई गुना बढ़ रहे हैं। फरवरी माह में सरकार का हाउसहोल्ड एक्सपेंडिचर सर्वे आया था। उसमें प्रति व्यक्ति 3773 रुपए गांव में और 6459 प्रति व्यक्ति खपत शहरी क्षेत्र में बताई गई थी। बता दें भारत की जनसंख्या करीब 140 करोड़ से ऊपर पहुंच गई है। 80 करोड़ आबादी को 5 किलो मुफ्त राशन देना पड़ रहा है। विश्व बैंक की ओर से निर्धारित मानदंड के अनुसार दुनिया के उच्चतम खर्च और न्यूनतम खर्च से भी कम भारत में आम आदमी कर पा रहा है।
निम्न वर्ग चुकाता है सबसे अधिक जीएसटी
वहीं ऑक्सफैम की रिपोर्ट को माने तो साल 2022 में जितना जीएसटी से टैक्स एकत्रित हुआ। उसमें 50 फीसदी टैक्स निम्न आय वर्ग के लोगों द्वारा चुकाया गया है। सबसे ऊंची आय वाले लोगों द्वारा मात्र तीन फीसदी टैक्स जीएसटी से चुकाया गया है। बाकी का टैक्स मध्यम वर्ग ने चुकाया है।
जीएसटी टैक्स की दरों में भिन्नता
जीएसटी में 18 फीसदी औसतन कर की दर गरीबों को भी चुकानी पड़ रही है। जबकि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर यह दर 14 फीसदी है। अर्थात भारत में जीएसटी, विकसित राष्ट्रों से ज्यादा वसूल की जा रही है। पेट्रोल, डीजल और गैस पर केंद्र एवं राज्य सरकारों की ओर से भारी भरकर टैक्स जीएसटी से हटकर भी वसूल किया जा रहा है। जिसके कारण भारत में महंगाई बढ़ रही है। पिछले दस साल में केंद्र और राज्य सरकार अचल संपत्ति, जल कर, संपत्ति कर, टोल टैक्स, वाहन टैक्स, कचरा टैक्स और कई प्रकार की सेवाओं पर भी जीएसटी वसूल रही है।
प्रशांत किशोर की भविष्यवाणी ने बढ़ाया सियासी पारा
वहीं पॉलिटिकल स्ट्रेटजिस्ट प्रशांत किशोर ने पेट्रोल और डीजल को जीएसटी के दायरे में ले जाने की उम्मीद जताई है। प्रशांत किशोर की इस भविष्यवाणी ने सियासी पारा बढ़ा दिया है। बता दे भाजपा ने चुनाव से पहले ही अबकी बार 400 पर का नारा दिया था। बीजेपी के दावे पर काफी चर्चा हो रही है। इस बीच प्रशांत किशोर ने बीजेपी की जीत को लेकर भी बड़ा दावा करते हुए कहा था कि बीजेपी की संख्या इस बार 2019 के 303 के करीब या उससे भी ज्यादा हो सकती है। इसके अलावा उन्होंने मोदी सरकार बनने के बाद क्या-क्या बदलाव होंगे इसको लेकर भी अपनी बात रखी।
प्रशांत किशोर ने कहा कि तीसरे कार्यकाल में पेट्रोलियम को जीएसटी के दायरे में ले जाने की संभावना है। इसके साथ ही राज्यों की फाइनेंशियल ऑटोनॉमी पर लगाम लगाई जा सकती है। पीके ने कहा उन्हें लगता है मोदी 3.0 गवर्नमेंट धमाकेदार शुरुआत करेगी। केंद्र के पास पावर और रिसोर्स दोनों का और भी ज्यादा कंसंट्रेशन बढ़ेगा। राज्यों की फाइनेंशियल ऑटोनॉमी में कटौती करने की भी कोशिश की जा सकती है।
पीके ने संभाला था 2014 में बीजेपी का चुनावी कैंपेन
2014 में बीजेपी और पीएम मोदी के लिए इलेक्शन कैंपेन मैनेज करने वाले पीके ने कहा की पीएम के खिलाफ कोई बड़ा मसाला नहीं है और बीजेपी तकरीबन 303 सीट जीत सकती है। उन्होंने कहा राज्य के पास राजस्व हासिल करने के तीन बड़े स्रोत हैं पेट्रोलियम, लिंकर और लैंड। यह आश्चर्य नहीं होगा कि पेट्रोलियम को जीएसटी के दायरे में लाया जा सकता है। फिलहाल पेट्रोल, डीजल, नेचुरल गैस जैसे पेट्रोलियम पदार्थ जीएसटी के दायरे से बाहर हैं। हालांकि उन पर अभी भी वेट सेंट्रल सेल्स टैक्स और सेंट्रल एक्साइज ड्यूटी लगती है।
राज्यों को हो सकता है टैक्स का नुकसान
पेट्रोलियम प्रोडक्ट को जीएसटी के अंदर अंदर लाना इंडस्ट्री की लंबे समय से डिमांड रही है देखा लेकिन देश के राज्य इस मांग के खिलाफ रहे हैं। दरअसल राज्यों को इससे रेवेन्यू की हानी होगी। अगर जीएसटी के दायरे में पेट्रोलियम पदार्थों को लाया जाता है तो इससे राज्यों को टैक्स का नुकसान होगा और अपना हिस्सा हासिल करने के लिए केंद्र पर निर्भर रहना होगा। फिलहाल जीएसटी के अंदर उच्चतम टैक्स स्लैब 28% है। पेट्रोल और और डीजल जैसे ईंधन पर 100% से ज्यादा टैक्स लगता है। पीके ने यह भी भविष्यवाणी की है कि राज्यों को संसाधनों के डिस्ट्रीब्यूशन में देरी कर सकता है। जिस पर रिस्पांसिबिलिटी और बजट मैनेजमेंट एफआरबीएम रूल्स को को सख्त बनाया जा सकता है। 2003 में बनाया गया एफआरबीएम अधिनियम राज्यों के वार्षिक बजट घाटे पर एक सीमा लगता है। उन्होंने यह भी कहा कि केंद्र संसाधनों के हस्तांतरण में देरी कर सकता है। राज्यों के बजट से यह कर उधारी सख्त की जा सकती है।