आंध्र प्रदेश एसराजशेखर रेड्डी यानी कड़प्पा सीट सियासी संग्राम पारिवारिक संग्राम में बदल गया है। कड़प्पा सीट से कांग्रेस प्रत्याशी वाईएस शर्मिला रेड्डी चुनाव मैदान में है। अपने पिता की विरासत बचाने के लिए मैदान में उतरी है। शर्मिला का मुकाबला अपने ही चचेरे भाई अविनाश रेड्डी से है। अविनाश को वाईएसआरसीपी ने अपना प्रत्याशी बनाया है। जिन पर अपने ही चाचा और पार्टी के नेता वाईएस विवेकानंद रेड्डी की हत्या का आरोप है। एसएमएस शर्मिला प्रचार के दौरान अपने पिता की रिकॉर्ड की गई आवाज का उपयोग करती नजर आ रही हैं। पूर्व मुख्यमंत्री वाईएस राजशेखर की आवाज में जब नमस्ते अम्मा यानी मां अक्का यानी बहन और पापा यानी बच्चा सभी को नमस्ते सुनाई देता है तो लोग टिकट कर सुनाने लगते हैं। उनके जहां में एएस राजशेखर रेड्डी की यादें ताजा होती है। अब शर्मिला मतदाताओं से कहती है। नायडू और मेर भाई जगन दोनों ही भाजपा के साथ है लिहाजा आप जिसे भी वोट देंगे उससे भाजपा को ही लाभ मिलेगा।
- आंध्र की कड़प्पा सीट पर भाई-बहन के बीच सियासी जंग
- कौन जीतेगा कड़प्पा में सियासत और विरासत की जंग
- वायएस शर्मिला को पिता की आवाज को सहारा
- पिता की आवाज सुनाकर बेटी वाईएस शर्मिला मांग रही वोट
- कड़प्पा सीट से चुनाव मैदान में उतरी हैं जगनमोहन की बहन शर्मिला
- चुनावी जंग नहीं बल्कि, वाईएसआर रेड्डी की विरासत की लड़ाई
कड़प्पा सीट की बात करें तो एएस राजशेखर रेड्डी की विरासत की जंग का मैदान यह सीट बन चुकी है। साल 2011 में पिता के नाम से मिली पार्टी वाईएसआर बनाई और 2019 में लोकसभा चुनाव में सफलता भी हासिल की यह सीट विरासत की जंग का मैदान बन चुकी है। पिता के निधन के बाद जगनमोहन रेड्डी उनके इस सीट से चुनाव लड़ना चाहते थे। राजशेखर रेड्डी का निधन 2 सितंबर 1909 को एक हेलिकॉप्टर हादसे के दौरान हुआ था। उसे समय उन्हें दोबारा सत्ता में आए महेश 3 महीने ही हुए थे। रेड्डी की मौत का सदमा उनके समर्थक बर्दाश्त नहीं कर पाए। रिपोर्ट्स पर भरोसा करें तो रेड्डी की मौत के सदमे में या खुदकुशी करने वाले करीब 60 से अधिक लोगों अपनी जीवन लीला समाप्त कर चुका है। उसे समय उनके बेटे जगनमोहन रेड्डी सांसद थे। लेकिन वह अपने पिता की विरासत हासिल करना चाहते थे। कांग्रेस नेतृत्व ने उनके बजाए बुजुर्ग नेता रोसैया को राज्य का मुख्यमंत्री बना दिया।
आंध्र में सत्ता परिवर्तन में यात्राओं का अहम रोल
इससे नाराज जगनमोहन ने पिता की रहा पर चलते हुए एक विशाल यात्रा निकाली। ठीक उसी तरह जिस तरह कभी 9 अप्रैल 2003 को अब विभाजित आंध्र प्रदेश में रंगा रेड्डी जिले में कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष रहते हुए वाईएस राजशेखर रेड्डी ने निकाली थी। उस समय उस यात्रा का नाम प्रजापत यात्रा दिया था। तब कांग्रेस को राज्य से बेदखल हुए करीब 20 साल से अधिक का समय हो चुका था। जब यात्रा कर 11 राज्यों से होकर करीब 1475 किलोमीटर के बाद 6 जून को श्रीकुलम जिले में संपन्न हुई। तब तक डॉक्टर रेड्डी जनता की नब्ज टटोल चुके थे। इसके बाद 2004 में जब विधानसभा चुनाव हुए तो चंद्रबाबू नायडू को वे सत्ता से बेदखल करने में कामयाब हुए। ठीक इसी तरह उनके बेटे जगनमोहन रेड्डी ने भी एक यात्रा का ऐलान कर दिया। जिस पार्टी ने बगावत और चुनौती मानते हुए कार्रवाई की चेतावनी दी। बता दें आंध्र प्रदेश की सियासत में पदयात्रा का बेहद महत्व है और यह सिलसिला आज से नहीं बल्कि बीते कई दशकों से चलता आ रहा है। आंध्रप्रदेश का इतिहास इस बात का गवाह रहा है कि राज्य में नेताओं की पदयात्रा ने सत्ता बदलाव में सबसे अहम रोल निभाया है।
जगन मोहन ने 2019 में चंद्रबाबू नायडू को सत्ता से बेदखल
दरअसल जगन मोहन कड़प्पा लोकसभा सीट से इस्तीफा देकर पिता की पुलीवेंडुला सीट से विधानसभा चुनाव लड़ना चाहते थे। लेकिन सीट पर एक और दावेदार थे जिनका नाम एएस विवेकानंद रेड्डी यह उनके चाचा थे। 2009 में जिनकी जगह पर जगन मोहन रेड्डी को कड़प्पा लोकसभा सीट से उम्मीदवार बनाया गया था। मोहन रेड्डी को नाराज कर दिया। इससे जगन मोहन कांग्रेस नेतृत्व से लगातार दूर होते गए। इस बीच 25 नवंबर साल 2010 में रोसैया में सीएम पद से इस्तीफा देकर उनकी जगह किरण रेड्डी को नया सीएम बना दिया। किरण रेड्डी की सरकार में उनके चाचा पूर्व सांसद विवेकानंद रेड्डी को भी शामिल किया गया था। इसे अपमान समझकर इसके चार दिन बाद 29 नवंबर 2010 को जगनमोहन रेड्डी ने लोकसभा और उनकी मां विजयलक्ष्मी रेड्डी ने विधानसभा के साथ ही कांग्रेस पार्टी से भी इस्तीफा दे दिया। यह इस्तीफा कांग्रेस की तत्कालीन अध्यक्ष श्रीमती सोनिया गांधी को भेजी गई 5 पेज की चिट्ठी के रूप में था। जिसमें जगन ने एक साथ कई आरोप लगाए थे। आरोप लगाया कि यह वायएस परिवार में फूट डालने की एक कोशिश है। और 11 मार्च 2011 को जगनमोहन रेड्डी ने अपने पिता के नाम से मिलती-जुलती वाईएसआर कांग्रेस पार्टी बना ली। 2014 के लोकसभा चुनाव में वह चंद्रबाबू नायडू से मात खा गए लेकिन 5 साल बाद 2019 के लोकसभा चुनाव में उन्हें सत्ता से बेदखल कर दिया।
चचेरे भाई अविनाश रेड्डी से बहन शर्मिला रेड्डी का मुकाबला
इस बीच दो बड़ी सियासी घटनाओं ने जगनमोहन की छवि को बड़ा धक्का पहुंचा। राजशेखर रेड्डी की विरासत के सवाल को फिर से चिंगारी से शोला बना दिया। पहली घटना थी 15 मार्च 2019 की विवेकानंद रेड्डी कड़प्पा स्थित अपने निवास पर संदिग्ध अवस्था में मृत पाए गए थे। जांच में पता चला विवेकानंद रेड्डी की हत्या की गई थी। इसके बाद दूसरी बड़ी राजनीतिक घटना 25 फरवरी 2021 को हुई। जिसमें उनकी बहन वाईएस शर्मिला रेड्डी ने नई पार्टी बनाने की राह पकड़ कर हैदराबाद में प्रेस कॉन्फ्रेंस की और जिसमें ऐलान कर दिया कि भाई जगन मोहन रेड्डी के साथ उनके राजनीतिक मतभेद हैं। ऐसे में 2024 के लोकसभा चुनाव से ठीक पहले अपनी पार्टी का कांग्रेस में विलय कर शर्मिला रेड्डी ने कडप्पा लोकसभा सीट से चुनाव मैदान में उतरकर इसे सियासत और विरासत की जंग का मैदान बना दिया। इस सीट से उनका मुकाबला रिश्ते के भाई और मौजूदा सांसद जगनमोहन के करीबी अविनाश रेड्डी से है। अविनाश पर वे विवेकानंद रेड्डी की हत्या का आरोप लगाती रही हैं। शर्मिला रेड्डी यह अच्छे से जानती हैं कि साल 2014 में आंध्र प्रदेश के विभाजन के साथ ही यहां कांग्रेस की जमीन खिसक चुकी है। फिर भी यह देखना अब दिलचस्प होगा कि हड़प्पा लोकसभा सीट पर कौन जीत हासिल करता है। क्योंकि यह चुनाव सिर्फ सियासी जंग नहीं बल्कि वाईएसआर राजशेखर रेड्डी की विरासत की भी लड़ाई है।