प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राजधानी भोपाल में पसमांदा मुस्लिमों की जमकर वकालत की। उन्होंने मंगलवार को ‘मेरा बूथ सबसे मजबूत’ कार्यक्रम में भाजपा कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए कहा कि यूनिफार्म सिविल कोड के नाम पर लोगों को भड़काया जा रहा है। दो कानून से एक घर नहीं चल पाएगा। भारत के संविधान मे भी नागरिक के समान अधिकार की बात की गयी है। वोट बैंक की राजनीति हो रही है। पसमांदा मुस्लिम राजनीति के शिकार हो रहे हैं। कुछ लोग तुष्टीकरण की राजनीति करते है और देश को तोड़ते है। भाजपा कैडर मुस्लिम को जाकर समझाए। ऐसे में सवाल उठने लगा है कि भाजपा पर वोटों के ध्रुवीकरण के आरोप लगते रहे,लेकिन कर्नाटक विधानसभा में भाजपा का यह फॉर्मूला फेल हो गया और कांग्रेस को बंपर जीत मिली। शायद यही कारण है कि अब भाजपा संतुष्टिकरण की बात करने को मजबूर हो रही है।
कर्नाटक ने भाजपा को सिखाया सबक
राजनीति के जानकारों का मानना है कि भारतीय जनता पार्टी ने कर्नाटक विधानसभा चुनाव में बजरंगबली के नाम पर हिंदुओं का पोलराइजेशन करने की कोशिश की थी लेकिन वहां यह फॉर्मूला फेल हो गया है। इसी वजह से अब भाजपा अन्य राज्यों में होने जा रहे विधानसभा चुनाव में कोई जोखिम उठाना नहीं चाहती। यही कारण है कि पसमांदा मुस्लिमों के नाम पर पार्टी सॉफ्ट कॉर्नर के साथ अपनी पैठ बनाने के मूड में नजर आ रही है। साथ ही संतुष्टिकरण पर भी जोर देते हुए पसमांदा मुस्लिमों को मित्र बनाने की डगर पर चल पड़ी है।
पहले भी मोदी उठा चुके हैं पसमांदा मुस्लिम का मुद्दा
इससे पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दिल्ली में आयोजित भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में भी पसमांदा मुस्लिमों का मुद्दा उठाया था। बैठक में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए कहा था कि मुस्लिम समाज के बारे में गलत बयानबाजी ना करें। पार्टी के कार्यकर्ताओं को पसमांदा मुस्लिम समाज से मिलना चाहिए। समाज के सभी वर्गों से मुलाकात करें। चाहे वो वोट दें या ना फिर दें।
विरोधियों को बड़ा झटका देना चाहती है भाजपा
भाजपा की मुस्लिमों के बीच पैठ से बाकी राजनीतिक दल जो सेकुलरिज्म की राजनीति करते हैं, उनकी भी नींद हराम हो सकती है। यूपी में सपा और बसपा, महाराष्ट्र में कांग्रेस, गुजरात में कांग्रेस और एनसीपी जैसी पार्टियों को भाजपा के रणनीति से बड़ा झटका लग सकता है। इससे पहले भाजपा को कई राज्यो में 40 फीसदी से भी अधिक वोट मिल चुके हैं। ऐसे में अल्पसंख्यको के बीच बढ़ती पहुंच से फायदा होना साफ है। चुनाव के नतीजों से यह पता लग जाएगा कि असल में पार्टी की अल्पसंख्यकों के बीच कितनी पकड़ है।
मुस्लिमों ने भाजपा के समर्थन में लगाए थे नारे
पिछले साल भाजपा ने उत्तर प्रदेश के बरेली में पसमांदा मुस्लिमों की रैली निकली थी। इस रैली में बड़ी संख्या में भीड़ मौजूद थी, मुस्लिमों की ओर से योगी आदित्यनाथ और नरेंद्र मोदी के लिए जिंदाबाद के नारे लगाए गए थे। जिसके बाद से यह साफ हो गया कि भाजपा पसमांदा मुस्लिमों को एक जुट करने में लग गई है और इसका असर भी दिखने लगा। भाजपा यह कहती रही है कि उनकी सरकारें कभी भी किसी जाति और धर्म के आधार पर योजनाओं का निर्माण नहीं करती है। इन योजनाओं का ज्यादा फायदा अल्पसंख्यकों को मिला है।
कौन हैं पसमांदा मुस्लिम ?
जानकारों की माने तो पसमांदा मुसलमानों को बाकी मुस्लिमों की तुलना में निचले दर्जे का माना जाता है। बताया जाता है कि जिन लोगों ने अपने धर्म को त्याग कर इस्लाम को अपनाया है, उन्हें ही पसमांदा मुस्लिम माना जाता है। धर्म परिवर्तन करने वाले मुसलमान स्थानीय आबादी का हिस्सा थे और काफी समय के बाद इन लोगों ने धर्म अपनाया है। इनमें से ज्यादातर लोगों ने अपने व्यवसाय के आधार पर ही अपने नाम का टाइटल रखा। जैसे अंसारी लोगों को बुनकर, कुरैशी (कसाई) के रूप में पहचाना जाने लगा।