इस्लामाबाद। पाकिस्तान क्या शाब्दिक अर्थों में एक असफल राष्ट्र होने जा रहा है, क्या वहां के आर्थिक हालात इतने नाजुक हैं कि पाकिस्तान के उबरने के आसार बेहद कम हैं, क्या पाकिस्तान में फिर से एक बार सेना कमान अपने हाथ में ले लेगी? पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शाहबाज शरीफ के बोल तो यही बता रहे हैं कि हालात बेहद-बेहद खराब हैं।
- शाहबाज माना है कि इंटरनेशनल मॉनेटरी फंड (IMF) ने 1.2 अरब डॉलर के कर्ज की तीसरी किश्त देने के लिए बेहद सख्त शर्तें रखी हैं
- उन्होंने कहा कि IMF ने जो शर्तें रखी हैं वो उनकी सोच से भी ज्यादा सख्त और खतरनाक हैं, लेकिन उनके पास कोई और चारा नहीं है
- शहबाज को भयंकर आर्थिक संकट के साथ ही अपने ही पाले इस्लामी आतंकवाद से भी निपटना है, इसलिए उनकी हालत बेहद खराब है
पाकिस्तान की पतली हालत और चीन का धोखा
शरीफ के बयान को गहराई में समझने के लिए पाकिस्तान की बेहद बदहाल इकोनॉमी को समझें। विदेशी मुद्रा भंडार या फॉरेक्स रिजर्व अब सिर्फ 3.1 अरब डॉलर बचा है। इसमें से 3 अरब डॉलर सऊदी अरब और UAE के हैं। ये भी गारंटी डिपॉिजट हैं, यानी पाकिस्तान इन्हें भी खर्च नहीं कर सकता है।
पाकिस्तान की खस्ता हालत
- पाकिस्तान में महंगाई दर गुरुवार को 27.8% हो गई
- सितंबर 2022 में विदेशी कर्ज 130.2 अरब डॉलर था जिसके बाद डेटा जारी नहीं किया गया
- डॉलर के मुकाबले पाकिस्तानी रुपया (पाकिस्तानी करंसी) 274 का हो चुका है, यानी पतली है हालत
- पाकिस्तानी अखबारके मुताबिक पाक के वित्त मंत्री भले ही सऊदी अरब और चीन से 13 अरब डॉलर के नए लोन मिलने का दावा कर रहे हों, लेकिन हकीकत कुछ और है
- नवंबर की शुरुआत में दोनों देशों से बातचीत हुई थी और अब तक इनकी तरफ से कोई पैसा मिलना तो दूर, वादा भी नहीं किया गया
- चीन बल्कि एक कदम आगे निकल गया है और उसने पाकिस्तान से 1.3 अरब डॉलर की किश्त मांग ली
- वित्त मंत्री इश्हाक डार अब दावा कर रहे हैं कि सऊदी अरब से बातचीत जारी है और उम्मीद है कि जल्द ही वहां से 3 अरब डॉलर मिल जाएंगे
- हालांकि, सऊदी अरब ने इस मामले पर चुप्पी साध रखी है।
शाहबाज की परेशानी है राजनीतिक परिस्थिति
IMF ने लोन के लिए बेहद सख्त शर्तें रखी हैं और उसने इन तमाम शर्तों को पूरा करने के लिए पॉलिटिकल गारंटी भी मांगी है। IMF चाहता है कि पाकिस्तान सरकार टैक्स कलेक्शन दोगुना करे। यानी, 9 फरवरी को जब IMF और शाहबाज सरकार की बातचीत खत्म होगी और सरकार यह शर्तें मान लेती है तो महंगाई करीब-करीब दोगुनी यानी 54 से 55% हो जाएगी। फिलहाल महंगाई 25 फीसदी है।
- आसान भाषा में कहें तो महंगाई दोगुनी हुई तो जनता सड़कों पर उतर आएगी और शाहबाज शरीफ की कुर्सी जानी तय है
- इमरान खान इसी मौके का इंतजार कर रहे हैं
- वैसे, पाकिस्तान की बदहाली के जिम्मेदार इमरान के करीब 4 साल के कार्यकाल में पाकिस्तान का विदेशी कर्ज दोगुना हो गया था
- शाहबाज इतने डरे हैं कि उन्होंने यह तक कह दिया- मैं डीटेल्स तो नहीं बता सकता, लेकिन इतना जरूर कहूंगा कि हमारी इकोनॉमी के जो हालात हैं, वो आपके तसव्वुर से परे हैं
शरीफ के इस बयान का समय देखिए। 31 जनवरी को IMF की टीम इस्लामाबाद पहुंची और 9 फरवरी तक वहां रहेगी।
पाकिस्तान सरकार की रिपोर्ट
रिपोर्ट बताती है 2022 जनवरी में महंगाई दर 13% थी। इसके मायने ये हुए कि महज एक साल में इन्फ्लेशन रेट यानी महंगाई दर दोगुने से ज्यादा हो गई। इस वक्त कराची पोर्ट पर करीब 6 हजार कंटेनर्स खड़े हैं और इन्हें अनलोड सिर्फ इसलिए नहीं किया जा सका, क्योंकि बैंकों के पास डॉलर नहीं हैं। कारोबारियों को तो तगड़ा नुकसान हो ही रहा है, इससे बड़ी परेशानी आम लोगों के लिए है, क्योंकि इन कंटेनर्स में रोजमर्रा की जरूरतों का सामान जैसे फल और सब्जियां भी हैं। डॉलर के मुकाबले पाकिस्तानी करेंसी की वैल्यू 274 रुपए हो गई। यह पिछले साल से दोगुनी है।
पाकिस्तान ब्यूरो ऑफ स्टेटिस्टिक्स (PBS) के मुताबिक 1975 के बाद महंगाई सबसे ज्यादा है। तब यह आंकड़ा 27.77% था।
दिवालिया और असफल राष्ट्र हो जाएगा पाकिस्तान
दो महीने पहले तक पाकिस्तान के वित्त मंत्री थे मिफ्ताह इस्माइल। उन्होंने कहा है कि पाकिस्तान अब किसी भी वक्त डिफॉल्टर घोषित हो सकता है। एक टीवी शो के दौरान उन्होंने कहा कि इंटरनेशनल मॉनेटरी फंड यानी IMF पाकिस्तान को नए कर्ज की किश्त देने तैयार नहीं है। इमरान खान के दौर में हमारी इकोनॉमी की जो तबाही शुरू हुई, उससे पाकिस्तान उबर ही नहीं सका।
पाकिस्तान के बड़े अखबार ‘द एक्सप्रेस ट्रिब्यून’ की बुधवार को जारी एक स्पेशल रिपोर्ट में IMF की एक ऐसी शर्त के बारे में जानकारी दी गई है, जिसे पूरा कर पाना मुश्किल है। वह शर्त पॉलिटिकल गारंटी की है। इमरान किसी दूसरी पॉलिटिकल पार्टी के किए वादों को नहीं मानेंगे। तब IMF क्या करेगा? सरकार संसद में एक ऑर्डिनेंस लाकर यह शर्त पूरी कर सकती है, लेकिन ये भी बहुत मुश्किल है।
संसद में विपक्ष है ही नहीं और 6 महीने बाद ऑर्डिनेंस खत्म हो जाएगा, फिर क्या होगा। फिलहाल तो 9 फरवरी पर सबकी निगाहें टिकी हुई हैं। शाहबाज के पास मुसीबतें केवल इतनी नहीं हैं। उनको आतंकवाद से भी निबटना है। अभी हाल ही में पेशावर में मस्जिद में जो ब्लास्ट हुआ, उससे पुलिसवालों का भी मनोबल टूटा हुआ है। तालिबान का पाकिस्तानी हिस्सा टीटीपी भी पाकिस्तान के लिए नासूर बन गया है।
पाकिस्तान ने जितने भी बबूल के पेड़ लगाए थे, सब अभी भरपूर फल दे रहे हैं।
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