बिहार में बाहुबली नेता आनंद मोहन सिंह की हाल ही में जेल से रिहाई हुई है। उनके साथ 27 दुर्दांत अपराधियों को भी छोड़ दिया गया है। ये सब इसलिए संभव हुआ है कि राज्य की नीतीश सरकार ने नियमों में बदलाव कर इनके रिहा होने का रास्ता साफ कर दिया। इसी मामले में यूपी आइएएस एसोसिएशन सहित कई संगठनों ने आपत्ति दर्ज की थी और नियमों में हुए बदलाव पर पुन: विचार करने की मांग की थी। लेकिन बिहार में ऐसे कोई विरोधी स्वर नहीं उठे,जिस पर भाजपा सांसद सुशील मोदी भड़क उठे।
. नियमों के बदलाव पर उठाए सवाल
. बिहार में अधिकारियों के संगठन की चुप्पी पर नाराजगी
. दिनकर की कविता का किया जिक्र
. मुुख्यमंत्री नीतीश पर साधा निशाना
. धारा 353 का किया जिक्र
इस पूरे मामले पर बिहार में बीते कई दिनों से राजनीति उबल रही है। भाजपा के वरिष्ठ नेता और सांसद सुशील मोदी ने कैदियों की रिहाई पर कड़ी आपत्ति दर्ज की है। उन्होने राज्य के आइएएस एसोसिएशन पर अपना गुस्सा निकालते हुए कहा कि एक दलित आइएएस अधिकारी कृष्णैया की गोपालगंज में खुलेआम हत्या होती है। इस मामले में पूर्व सांसद और बाहुबली आनंद मोहन सिंह को दोषी करार दिया गया, जिसके कारण उन्हे उम्रकैद की सजा हुई थी। लेकिन नियमों में बदलाव कर उन्हे जेल से रिहा कर दिया गया है। इस तरह से रिहाई के लिए नियमों में बदलाव की निंदा पूरे देश में हो रही है। कई अधिकारी संगठनों ने भी आपत्ति दर्ज की है। लेकिन बिहार के अधिकारी चुप्पी साधे बैठे हुए हैं, इन्हे किसका डर सता रहा है। उन्होंने आश्चर्य व्यक्त करते हुए कहा कि प्रशासनिक सेवा संघ और आइएएस एसोसिएशन की राज्य इकाई की चुप्पी काफी निंदनीय है। मोदी ने कहा कि ये हत्या महज कृष्णैया की नहीं है बल्कि एक ऐसे अफसर की हत्या है जो अपनी डियूटी पर थे। इतने बड़े मामले पर बिहार के अधिकारी चुप्पी साधे हुए हैं।
निंदा प्रस्ताव तक पारित नहीं किया
बिहार के अधिकारियों पर नाराजगी जाहिर करते हुए सांसद सुशील मोदी ने कहा कि कृष्णैया हत्याकांड के दोषी की रिहाई पर अधिकारियों के संगठनों ने विरोध करना मुनासिब नहीं समझा। ज्यादा नहीं तो कम से कम एक निंदा प्रस्ताव ही पारित कर देते,लेकिन ये सब करने की संगठन हिम्मत नहीं जुटा पा रहा है। अफसरों की इस तरह की चुप्पी पर मोदी ने राष्ट्रकवि दिनकर की पंक्ति याद करते हुए कहा कि ‘जो तटस्थ हैं, समय लिखेगा उनका भी इतिहास।
आइपीसी की धारा-353 का दिया हवाला
सांसद मोदी ने आईपीसी की धारा 353 का जिक्र करते हुए कहा कि यह धारा उस समय लगती है जब किसी लोकसेवक के कामकाज में बाधा डाली जाती है। लेकिन ये धारा किसी अन्य सिविल व्यक्ति पर लागू नहीं होती है। उन्होने सवाल करते हुए कहा कि क्या इस अंतर को राज्य की बिहार सरकार खत्म करेगी। इसी तरह लोकसेवकों को विशेष सुरक्षा के लिए कानून है तो कुछ कानून उन पर प्रतिबंध भी लगाते हैं। जैसे लोक सेवकों को आम लोगों की तरह चुनाव लड़ने का अधिकार नहीं है और न ही वे राजनैतिक गतिविधयों में शामिल हो सकते हैं। फिर यहां भी इस तरह के नियमों को खत्म कर देना चाहिए।
बचकाना है मुख्यमंत्री का तर्क
सुशील मोदी ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के उस तर्क को बचकाना बताया जिसमें उन्होंने लोकसेवक और आम नागरिक में अंतर समाप्त करने जैसा कथित बयान दिया था।मोदी ने कहा कि यदि सरकारी कर्मचारी और अधिकारी को सुरक्षा के लिए अतिरिक्त नियम कानून हैं तो उसके पीछे कारण भी हैं। इससे अधिकारियों का मनोबल बना रहे और वे निडर होकर अपना काम करते रहें। उन्होने सवाल करते हुए कहा कि क्या मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जेल के नियमों में बदलाव के बाद सभी कानूनी में क्या ऐसी ही समानता ला सकते हैं।