अरविंद केजरीवाल ने ऐसा क्या किया कि अध्यादेश का विरोध करने को मजबूर हो गई कांग्रेस !

मामला अटकेगा राज्यसभा में

केंद्र सरकार के दिल्ली को लेकर लाए गए अध्यादेश को संसद से पारित होना है। लोकसभा में भाजपा और साथी दलों का बहुमत है। विपक्ष के आक्रामक विरोध के बाद भी अध्यादेश आसानी से पास हो जाएगा। मामला अटकेगा राज्यसभा में। उच्च सदन में भाजपा के नेतृत्व का राजग गठबंधन अल्पमत में है। अध्यादेश पर वोटिंग की नौबत आई और शत प्रतिशत विपक्षी एकता बनी तो राज्यसभा में अध्यादेश पारित नहीं हो सकेगा। कानून का शक्ल अख्तियार नहीं कर पाएगा। विपक्षी एकता में पेंच यहीं फंस रहा था।

सियासी फांस को कांग्रेस ने निकाला

इस ‘सियासी फांस’ को आखिरकार कांग्रेस पार्टी ने निकाल फेंका। औपचारिक रूप से कांग्रेस पार्टी को घोषणा करनी पडी कि समूचे विपक्ष के साथ अध्यादेश का विरोध किया जाएगा। बकायदा, एआईसीसी महासचिव संगठन केसी वेणुगोपाल ने इस बाबत संशय के बादल को छांटते हुए आम आदमी पार्टी की शीर्ष समिति की बैठक से पहले मीडिया के समक्ष घोषणा की। कांग्रेस पार्टी की संसद को लेकर हुई स्ट्रेटजी कमेटी की बैठक में इस बाबत बहुत स्थिति स्पष्ट नहीं हुई थी। विस्तार से बात जरूर हुई थी। पर, दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने इस मामले को लेकर बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी, तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन से एकबार फिर फोन पर चर्चा की। कांग्रेस पर दबाव बनाने का आग्रह किया। अलग अलग हालांकि वे पहले सभी विपक्षी नेताओं से मुलाकात बात कर चुके हैं।

अध्यादेश के विरोध पर मुहर

कांग्रेस को छोड़कर इस मामले में सभी दलों ने अध्यादेश के विरोध का आश्वासन अरविंद केजरीवाल को दिया था। तभी से केजरीवाल ने बिहार में विपक्षी दल की बैठक से पहले रुख कड़ा करते हुए कहा था कि बैठक में कांग्रेस पार्टी को पहले अध्यादेश पर अपनी राय साफ करनी होगी। अब बंगलुरू में होने वाली विपक्षी बैठक के लिए कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खडगे ने दिल्ली के मुख्यमंत्री को फोन किया तो उन्होंने फिर अपनी शर्त दोहरा दी। सूत्रों ने बताया कि खडगे का जैसे जैसे अन्य विपक्षी नेताओं के पास न्यौते का फोन गया तकरीबन सभी दल के नेताओं ने अध्यादेश के विरोध का सलाह दिया। उल्लेखनीय है कि आम आदमी पार्टी को किसी भी मसले पर समर्थन के खिलाफ दिल्ली के वरिष्ठ नेता अजय माकन ने कई बार सार्वजनिक रूप से आलाकमान को खबरदार किया है। इसके बाद भी शीर्ष नेतृत्व ने अन्य साथी दलों की मंशा को मानते हुए अध्यादेश के विरोध पर मुहर लगा दिया।

तो क्या फिर बहाल हो जाएगा अध्यादेश

विशेषज्ञों का मानना है कि केंद्र सरकार अगर अध्यादेश को कानून का शक्ल देने को सदन में पेश करती है और किसी वजह से वो पास नहीं हो पाता तो केंद्र सरकार के पास अध्यादेश फिर से जारी करने का विकल्प खुला है। कुछ कानूनी पेंचीदगियों को पूरा कर पुन: अध्यादेश लाया जा सकता है। विदित हो कि बार बार अध्यादेश लाये जाने के खिलाफ एक अर्जी पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने 2017 में फैसला देते हुए कहा था कि विधायी विचारों के अध्यादेश बार बार लाया जाना असंवैधानिक होगा। इसे विधायिका की भूमिका का उल्लंघन माना जाएगा। बस सुप्रीम कोर्ट के इसी फैसले की तोड निकाल कर सदन में गिर गये अध्यादेश को केंद्र आराम से पुन: बहाल कर सकती है।

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