भारतीय जनता पार्टी के खिलाफ लामबंद हो रहे विपक्षी दल की बैठक 17 एवं 18 जुलाई को बेंगलुरु में होने जा रही है। इस बैठक को लेकर कांग्रेस सहित कई विपक्षी दल अपना अपना भविष्य संवारने का सपना देख रहे हैं। उनकी अपनी रणनीति है और किसी भी हाल में भाजपा को मात देकर खुद का सियासी भविष्य उज्जवल करने की कोशिशें हो रहीं हैं। बैठक में कई सवाल हैं जिनके जवाब शायद विपक्षी दलों के पास भी नहीं होंगे। वजह ये है कि सभी को प्रधानमंत्री बनना है और सभी को ज्यादा से ज्यादा सीटों पर चुनाव लड़ना है। ताकि सियासी दमखम दिखाकर पीएम के पद की दावेदारी की जा सके।
कांग्रेस को कर्नाटक से मिली ताकत
कांग्रेस खुद को सबसे मजबूत दल के रूप में देख रही है। पार्टी को कर्नाटक में मिली सफलता ने बड़ी ताकत दी है। यही कारण है कि कांग्रेस अब विपक्षी दलों को बताना चाहती है कि एक मात्र कांग्रेस पार्टी ही है जब समूचे दलों का नेतृत्व कर सकती है। इसका मतलब है कि उसे सीटे शियरिंग में बड़ी हिस्सेदारी की उम्मीद होगी। जानकारों की माने तों यही सब रणनीति के तहत विपक्ष की दूसरी बैठक में शामिल होने कांग्रेस की सबसे ताकतवर नेता सोनिया गांधी शामिल होने जा रहीं हैं। हालांकि इस आशय की कोई अधिकृत जानकारी सामने नहीं आई लेकिन उम्मीद की जा रही है कि सोनिया गांधी बैठक में शामिल होंगी।
भाजपा को मात देने के लिए सक्षम है कांग्रेस
पटना की पहली विपक्षी एकता बैठक में कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष सोनिया गांधी ने शिरकत नहीं की थी। उम्मीद की जा रही है कि 17 और 18 जुलाई को बंगलुरू की दूसरी विपक्षी एकता बैठक में सोनिया गांधी भी शिरकत करेंगी। एआईसीसी के एक वरिष्ठ नेता का कहना है कि अभी तक सोनियाजी कार्यक्रम बैठक के लिए मुकर्रर किया हुआ है। बैठक के इंतजामात उसी तरह से करने के आदेश को कर्नाटक प्रदेश संगठन को दिया गया है। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष और उपमुख्यमंत्री डीके शिवकुमार की देखरेख में बंगलुरू में विपक्षी समागम होगा। सिद्धरमैया बेंगलुरू के इंचार्ज भी हैं। कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धरमैया विपक्षी बैठक में दक्षिण के अन्य राज्यों में कांग्रेस की चुनावी योजनाओं पर पार्टी की ओर से बात रखेंगे। जाहिर है ये विपक्षी साथी दलों के दिमाग में इस बात को डालने की शुरूआत होगी कि कांग्रेस पार्टी कहां, किन राज्यों में किन वायदों के साथ भाजपा को हराने अन्य विपक्षी साथियों के साथ कदमताल कर सकती है।
नीतीश का क्या होगा
राजनीति की गलियों में इस बात पर चर्चा जोरों पर है कि यदि विपक्ष में कांग्रेस ही इतनी ताकत के साथ मैदान में आएगी तो उसकी अपनी अपेक्षाएं भी ज्यादा होंगी। फिर विपक्ष को जोड़ने के लिए पसीना बहा रहे बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार क्या करेंगे। क्या वे कांग्रेस के नेतृत्व में खुद स्थापित कर पाएंगे। ये सवाल भी उठ रहा है कि दूसरे दलों की भी अपनी उम्मीदें हैं इसलिए विपक्षी बैठक में सीट शेयरिंग और पीएम के चेहरे को लेकर घमासान हो सकता है। फिर सहमति बनने में कठिनाई तो आएगी ही।