कहते है कि शिकार करने गए थे शिकार हो गए। ये कहावत विपक्षी दलों पर सटीक बैठ रही है। पटना में हुई विपक्षी दलों की बैठक के बाद जिस तरह के सियासी समीकरण बन रहे हैं,उनको देखकर लगता है कि आम आदमी पार्टी को विपक्षी गठबंधन में रखने की उम्मीद कम है। इसकी एक नहीं कई वजह हैं। राजनीति के जानकारों की माने तो कांग्रेस विपक्षी एकता के लिए पूरी ताकत से जुटी हुई है,लेकिन आम आदमी पार्टी को इस गठबंधन में शामिल करने की उम्मीद कम ही दिखाई दे रही है। इसके पीछे सिर्फ कांग्रेस ही नहीं बल्कि कई बड़े राजनैतिक दल भी आम आदमी पार्टी को गठबंधन में शामिल रखने के लिए उत्साहित नहीं दिख रहे हैं।
आप और कांग्रेस में बढ़ रहा है विवाद
कांग्रेस और आप के बीच चल रही तनातनी के कई कारण है। पहला कारण ये है कि आम आदमी पार्टी जब अध्यादेश के लिए कई दलों से अपने लिए समर्थन मांग रहीं थी तब कांग्रेस ने आप का इस मामले में साथ नहीं दिया तभी से आप और कांग्रेस के बीच टसन शुरु हो गई। एक दूसरे के खिलाफ दोनों ही दलों ने बयानबाजी शुरु कर दी। इसी बीच आम आदमी पार्टी की प्रवक्ता प्रियंका कक्कड़ ने जहां कांग्रेस के नेताओं को निशाने पर लेना शुरू किया वहीं कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व कैबिनेट मंत्री अजय माकन ने आम आदमी पार्टी को भारतीय जनता पार्टी का एजेंट तक कह दिया। ऐसी सियासी तकरार में राजनीतिक जानकारों का कहना है कि फिलहाल तो कांग्रेस और आम आदमी पार्टी में कोई भी समझौता होता हुआ नहीं दिख रहा है।
केजरीवाल को झटक देंगे नीतीश और ममता
इन दिनों सियासी गलियारों में सबसे बड़ा सवाल यही है कि पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार आम आदमी पार्टी के संयोजक और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को इस गठबंधन में आखिर कैसे शामिल कराएंगे। खासतौर से जब कांग्रेस और आप के बीच तनातनी चल रही है। दोनों ही नेताओं के सामने सबसे बड़ी चुनौती होगी कि वे कांग्रेस और आप के बीच किसी भी तरह सुलह कराएं। हालांकि सुलह की संभावनाएं बहुत कम है फिर भी नीतीश और ममता को कांग्रेस छोड़ना बहुत कठिन होगा,ऐसे में यदि किसी एक को छोड़ना पड़े तो वो आम आदमी पार्टी ही हो सकती है। जानकारों का मानना है कि अगर आम आदमी पार्टी शामिल नहीं होती है फिर भी यह गठबंधन आगे बढ़ सकता है।
गठबंधन को इसलिए मजबूत करना चाहती है कांग्रेस
आने वाले लोकसभा चुनाव के लिए कांग्रेस सधे हुए कदमों से चल रही है। जानकारों का मानना है कि पटना में हुई विपक्षी दलों की बैठक के बाद गठबंधन को आगे बढ़ाना चाहती है। इसमें कांग्रेस अपना फायदा देख रही है। चॅूकि कांग्रेस अपने पुराने साथियों के साथ पिछले लोकसभा चुनाव के परिणाम देखे हैं इसलिए उसे लगता है नए साथी भी जुड़ जाएंगे तो कांग्रेस को फायदा हो सकता है। इसलिए हो सकता है कि कांग्रेस गठबंधन के तहत कम सीटों पर चुनाव लड़ने के लिए भी तैयार हो जाए।