हिंदु धर्म के आषाढ़ महीने की शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को उड़ीसा में विश्वभर में भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा निकाली जाती है. लेकिन उड़ीसा के जगन्नाथ पुरी की यात्रा सबसे खास होती है.उड़ीसा के पुरी में यह यात्रा 10 दिनों तक चलती है. भगवान जगन्नाथ की इस भव्य यात्रा में देश दुनिया से भक्त दर्शन करने पहुंचते हैं. इस साल यह यात्रा कल से शुरू हो रही है. रथ यात्रा की सारी तैयारियां पूरी कर ली गई है. माना जाता है कि इस रथ यात्रा में जो शामिल होता है, उसे तीर्थ करने जितना फल मिलता है.
यात्रा से जुड़ी है मान्यता
भगवान जगन्नाथ को विष्णु का अवतार माना जाता है. उनकी यह रथ यात्रा करीब 250 सालों से चली आ रही है. रथ यात्रा के साथ मान्यता जुड़ी हुई है. मान्यता के अनुसार द्वापर युग में भगवान कृष्ण से उनकी बहन सुभद्रा ने द्वारका घूमने की इच्छा जाहिर की थी. तब भगवान ने अपनी बहन की इच्छा पूरी करने के लिए अपनी बहन सुभद्रा और बाई बलभद्र को रथ पर बैठाकर द्वारका का भ्रमण करवाया. इस दौरान वह अपनी मौसी के घर पर भी गए थे. इसी के चलते हर साल भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा निकाली जाती है.
मौसी के घर जाते है भगवान जगन्नाथ
रथ यात्रा से भगवान भगवान जगन्नाथ अपने भाई बालभद्र और बहन सुभद्रा के साथ नगर के भ्रमण के लिए निकलते है. तीनों की प्रतिमाएं भव्य रथ में निकलती है और अंत में अपनी मौसी के घर गुंडिचा मंदिर पहुंचती है. यहां भगवान जगन्नाथ अपने भाई बहन के साथ एक हफ्ते तक ठहरते हैं. उनका यहां खूब आदार सत्कार किया जाता है जिसके बाद वे बीमार पड़ जाते है. भगवान के स्वस्थ्य होने के बाद ही भक्त उनके दर्शन करते है. इसके बाद यात्रा वापस जगन्नाथ मंदिर लौट आती है. रथ यात्रा को देखने के लिए लोग देश विदेश से पहुंचते है. कहा जाता है कि जो इस यात्रा में शामिल होता है उसे 100 यज्ञो के बराबर पुण्य मिलता है.
जगन्नाथ मंदिर है चमत्कारिक
उड़ीसा का जगन्नाथ मंदिर भारत के चमत्कारिक मंदिरों में से एक है . यहां पर आपको कई ऐसे चमत्कार देखने मिल जाएंगे जिन्हें देखकर आप हैरान हो जाएंगे. मंदिर के ध्वज का हवा के विपरीत दिशा में फहरना, मंदिर के अंदर कदम रखते ही समुद्र की लहरों की आवाज का दब जाना या फिर मंदिर के गुंबद के आस पास पक्षियों का न उड़ना यह कुछ ऐसे चमत्कार है जो आपको जगन्नाथ मंदिर में देखने को मिल जाएंगे. जगन्नाथ मंदिर में हर रोज दो बार ध्वज फहराया जाता है, मान्यता है कि अगर एक भी दिन ध्वज नहीं फहराया गया तो मंदिर 18 सालों के लिए बंद हो जाएगा.