भारतीय रिजर्व बैंक यानी आरबीआई ने रेपो रेट में बढ़ोतरी नहीं करने का फैसला किया है। यानी ब्याज दर 6.50 फीसदी ही होगी। इससे पहले आरबीआई ने पिछली लगातार छह बार रेपो रेट में बढ़ाई थी। बता दें निगरानी नीति बैठकें हर दो महीने में आयोजित की जाती हैं। वित्तीय वर्ष 2022-23 की पहली बैठक अप्रैल-2022 में हुई थी। आरबीआई ने तब रेपो रेट को 4% पर स्थिर रखा था। हालांकि 2 और 3 मई को आरबीआई ने आपात बैठक बुलाकर रेपो रेट को 0.40% बढ़ाकर 4.40% कर दिया था। रेपो रेट में यह बदलाव 22 मई 2020 के बाद हुआ है। इसके बाद 6-8 जून को हुई बैठक में रेपो रेट में 0.50 फीसदी की बढ़ोतरी की गई थी। इससे रेपो रेट 4.40% से बढ़कर 4.90% हो गया। फिर अगस्त में इसे 0.50% बढ़ाकर 5.40% कर दिया गया था। सितंबर में, ब्याज दरें बढ़कर 5.90% हो गईं। फिर दिसंबर में ब्याज दर 6.25% हो गई। इसके बाद वित्त वर्ष 2022-23 के लिए आखिरी मौद्रिक नीति बैठक फरवरी में हुई थी, जिसमें ब्याज दरों को 6.25% से बढ़ाकर 6.50% कर दिया गया था।
- आरबीआई ने दी आम आदमी को राहत
- आरबीआई ने रेपो रेट में बदलाव नहीं किया
- 6.50% ब्याजदर बरकरार
- फरवरी में बढ़ाई थी ब्याजदर
- लगातार छह बार किया था रेपो रेट में बदलाव
इसलिए नहीं किया गया बदलाव
आरबीआई अर्थव्यवस्था में चल रही रिकवरी को बरकरार रखना चाहता है। आरबीआई गवर्नर ने कहा अर्थव्यवस्था में जारी रिकवरी को बनाए रखने के लिए हमने नीतिगत दर में बदलाव नहीं किया है, लेकिन जरूरत पड़ी तो स्थिति के अनुसार कदम उठाएंगे। तमाम वैश्विक तनावों के बीच भारत की अर्थव्यवस्था मजबूत है। क्या होगा इस फैसले से कर्ज महंगा नहीं होगा। ईएमआई पहले जैसी ही रहेगी आरबीआई के पास रेपो रेट के रूप में मुद्रास्फीति से लड़ने के लिए एक शक्तिशाली उपकरण है। जब मुद्रास्फीति बहुत अधिक होती है, तो आरबीआई रेपो दर बढ़ाकर अर्थव्यवस्था में धन के प्रवाह को कम करने की कोशिश करता है। अगर रेपो रेट ज्यादा रहता है तो बैंकों को आरबीआई से मिलने वाला कर्ज महंगा हो जाएगा। बदले में बैंक अपने ग्राहकों के लिए ऋण को और अधिक महंगा बना देंगे। इससे अर्थव्यवस्था में धन का प्रवाह कम होगा। यदि धन का प्रवाह कम होगा तो मांग घटेगी और मुद्रास्फीति घटेगी। इसी तरह जब अर्थव्यवस्था खराब दौर से गुज़रती है तो रिकवरी के लिए धन के प्रवाह को बढ़ाने की आवश्यकता होती है। ऐसे में आरबीआई रेपो रेट घटाता है।
द्विमासिक मौद्रिक नीति समीक्षा
आरबीआई गवर्नर शक्तिकांत दास ने द्विमासिक मौद्रिक नीति समीक्षा के बाद गुरुवार को कहा अमेरिका में बैंकों के अफल होने से आर्थिक संकट मुद्दा बन चुका है। उन्होंने कहा कि भारतीय रिजर्व बैंक ने चालू वित्त वर्ष की प्रथम द्विमासिक मौद्रिक नीति समीक्षा में नीतिगत दर रेपो में किसी तरह का परिवर्तन नहीं किया है यानी रेपो दर 6.5 प्रतिशत पर बरकरार रहेगी। शक्तिकांत दास ने यह भी कहा कि अर्थव्यवस्था में जारी पुनरुद्धार को बरकरार रखने के लिये हमने नीतिगत दर को यथावत रखा। हालांकि आने वले समय में आवश्यकता पड़ने पर तब के हालात के हिसाब से कदम उठाएंगे।
क्या है रेपो रेट और उसका प्रभाव
रेपो रेट की बात करें तो यह लोग अपने काम के लिए बैंकों से लोन लेते हैं। उसी तरह बैंक अपने काम के लिए रिजर्व बैंक से लोन लेते हैं। इस लोन बैंक जिस रेट से ब्याज चुकाते हैं उसे रेपो रेट कहते हैं। रेपो रेट का सीधा असर आम लोगों पर पड़ता है। क्योंकि अगर रेपो रेट ज्यादा होगा तो बैंकों को महंगा लोन मिलेगा और वो अपने ग्राहकों को ज्यादा रेट पर लोन देने को मजबूर हो जाती हैं। वहीं अगर रेपो रेट कम होगो तो कों को कम ब्याज दर पर ऋण उपलब्ध होगा और वो भी ग्राहकों को सस्ता कर्ज दे सकते हैं।