नीतीश के वो फैंसले जो उन्ही के लिए मुसीबत बन गए!

गिरफ्तारों की रिहाई को लेकर फंसा पेंच

कहते है जब वक्त अच्छा होता है तो मिट्टी भी सोना बन जाती है। जब इसके ठीक विपरीत परिस्थितयां बनती हैं तो सबकुछ उल्टा पुल्टा होने लगता है। अभी भाजपा का वक्त मिट्टी को सोना बनाने वाला है। बिहार में जेडीयू और आरजेडी जो कुछ भी करते हैं उसका फायदा इन दलों का न मिलकर भाजपा को मिलने लगता है। ऐसे बिहार में कई सियासी दांव है जो सीएम नीतीश और डिप्टी सीएम तेजस्वी ने मिलकर चले थे। उनका फायदा इन दोनों ही दिग्गजों को नहीं मिल पाया,उल्टा भाजपा को बैठे ​बिठाऐ फायदा होने लगा।

गिरफ्तारों की रिहाई को लेकर फंसा पेंच

बिहार में बाहुबली नेता आनंद मोहन सिंह को जेल से रिहा करने के​ लिए नीतीश सरकार ने कानून में बदलाव कर दिया। इसके बाद शराबबंदी कानून के तहत गिरफ्तार लोगों को रिहा करने की मांग उठने लगी। आने वाले दिनों यह मांग पूरी हो जाए तो आश्चर्य नहीं करना चाहिए। वजह ये है कि नीतीश सरकार में शामिल आरजेडी के प्रमुख लालू प्रसाद यादव पहले ही बिहार की शराबबंदी पर सवाल उठा चुके हैं,उन्होने यहां तक कह दिया था कि नीतीश को इसे खत्म कर देना चाहिए। इसी तरह महागठबंधन के दूसरे घटक ‘हम’ के नेता और पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी तो कई बार शराबबंदी कानून को हटाने की मांग कर चुके हैं।

जहरीली शराब मामले में हुई फजीहत

आपको याद होगा कि बिहार के सारण जिले में जहरीली शराब के कारण कई लोगों की मौत हुई थी। विपक्ष ने भी नीतीश सरकार पर जमकर हमला बोला और मृतकों के परिजनों को मुआवजा देने के लिए बिहार सरकार दवाब बनाया। इस मामले में गुस्साए नीतीश ने विधानसभा में इतने ज्यादा झल्ला गए कि उन्होंने कह दिया कि शराब पीयोगे तो मरोगे ही। इसी बीच मोतीहारी में जहरीली शराब की एक और घटना हो गई। जिसमें कई लोगों की मौत हो गई। इस बार विपक्ष ने फिर नीतीश सरकार घेरा और बच निकलने का कोई मौका नहीं दिया। अंतत: मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को अपने ही फैसले से पलटना पड़ा और सीएम रिलीफ फंड से मुआवजा देने की घोषणा करना पड़ी। जिसका परिणाम ये हुआ है विपक्ष को बैठे बिठाए सरकार को घेरने का एक और मौका मिल गया। और देखते ही देखते विपक्षी नीतीश की आलोचना करते हुए पलटूराम की संज्ञा दे डाली।

जातिगत गणना पर भी फंसे नीतीश

नीतीश और तेजस्वी ने जातिगत गणना के बहाने एक नया दांव फेंका था। इनका प्लान था कि अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव में इसका फायदा मिलेगा। इसी सोच के साथ बिहार में कैबिनेट की बैठक में जाति जनगणना के लिए पांच सौ करोड़ रुपए स्वीकृत कर दिए। जैसे ही मामला सुर्खियों में आया तो पता चला कि जनगणना का अधिकार केन्द्र सरकार को न की राज्य सरकार को। फिर इसका नाम बदल कर जाति आधारित गणना किया गया। विपक्ष में बैठी भारतीय जनता पार्टी ने तब भी इस मामले में खूब मजाक उड़ाया था।

अंतत: कोर्ट ने अटका दी योजना

इसके बाद भी नीतीश सरकार ने हार नहीं मानी और नाम बदलकर जातिगत गणना प्रारंभ करवा दी। गणना इतनी तेजी से हुई की पहला चरण पूरा कर लिया और दूसरा प्रारंभ कर दिया। तभी पटना कोर्ट ने एक याचिका की सुनवाई करते हुए जातिगत गणना पर अंतरिम रोक लगा दी।उच्च न्यायालय अंतिम फैसला क्या सुनाता है,बहुत कुछ इसी पर निर्भर करेगा। बता दें जातिगत गणना शुरु से ही विवादों में रही है और कई तरह के अवरोधकों का सामना करना पड़ा है। प्रथम चरण पूरा होने के बाद अलग अलग जातियों के लिए कोड बनाए गए थे,जिन्हे लेकर इसलिए विवाद हुए कि उसमें कई जातियां छूट गईं थी। फिर इसके बाद उन्हे ठीक किया गया। जातिगत गणना की सबसे पहले मांग आरजेडी नेता तेजस्वी यादव ने की थी,इससे उन्हे बड़ा लाभ मिल सकता था क्योंकि 2024 में लोकसभा और 2025 में विधानसभा चुनाव में बड़ा लाभ लेने की उनकी योजना थी। जिस पर फिलहाल विराम लग गया है।

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