भाजपा के विरोधी दलों को एकजुट करने में जुटे बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की राह में कदम कदम पर ब्रेकर दिखाई दे रहे हैं। उन्होने तमाम दिग्गज नेताओं से मुलाकात कर भाजपा से भिड़ने के लिए रणनीति भी बनाना शुरु कर दिया है। इसके बाद भी कई चुनौतियां है जो आए दिन उनके सामने खड़ी हो जाती हैं। पहले कई दल बिहार में मीटिंग और रैली करने को लेकर सहमत नहीं थे,बाद में जैसे तैसे उन्हे तैयार किया लेकिन अब और ब्रेकर उनके सामने है।
- पटना में बैठक के लिए कई दल सहमत
- तमाम चुनौतियां है नीतीश की राह में
- सीट बंटवारे को लेकर खींचतान होगी
- जयप्रकाश नारायण के आंदोलन पर नजर
- कई राज्यों में पार्टियों के लिए बढ़ेगी दिक्कतें
पटना के लिए कई दल सहमत
हाल ही में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने अपना एक दूत मुंबई भेजकर एनसीपी और शिवसेना प्रमुख क्रमश: शरद पवार और उद्धव ठाकरे को गांधी मैदान में सभा के लिए न्यौता भेजा था। बताया जा रहा है कि दोनो दिग्गज नेता इसके लिए तैयार भी हो गए थे। आपको बता दें कि इसके पहले पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने नीतीश को सलाह दी थी कि अन्य राज्यों के बजाय पटना में ही विरोधी दलों की बैठक होना चाहिए। ममता ने तर्क देते हुए सुझाव दिया था कि जयप्रकाश नारायण ने 1974 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के खिलाफ पटना से अपना आंदोलन शुरू किया था। माना जा रहा है कि पटना में बैठक और रैली के लिए नीतीश ने एनसीपी, शिवसेना और टीएमसी के अलावा समाजवादी पार्टी, कांग्रेस और वाम दलों से सैद्धांतिक मंजूरी ले ली है।
यहां है नीतीश के लिए बड़ी चुनौती
भाजपा विरोधी गठबंधन में जिन दलों के शामिल होने की उम्मीद है उसमें राष्ट्रीय जनता दल,झारखंड मुक्ति मोर्चा, आम आदमी पार्टी, द्रविड़ मुनेत्र कड़गम एवं भारतीय राष्ट्र समिति शामिल हैं। मान लेते हैं कि ये सभी दल एक साथ आ भी जाते हैं तो सीट बंटवारे को लेकर खींचतान होगी। फिर भी किसी तरह सहमति बन भी जाती है तो बिहार, महाराष्ट्र,उत्तर प्रदेश,पश्चिम बंगाल,दिल्ली,झारखंड,तेलंगाना और ओडिशा को कहीं न कहीं प्रभावित करेगा। क्योंकि राज्यों में इसका ज्यादा प्रभाव दिखेगा जहां कांग्रेस अभी सत्तारुढ है,या फिर जहां मुख्य विपक्षी दल की भूमिका में है।