पहले भी कई बार पाला बदल चुके हैं नीतीश कुमार

पूराने नाता ताडू हैं नीतीश

बिहार में इन दिनों सियासी धमासान मचा हुआ है। नीतीश कुमार  ने बीजेपी गठबंधन से नाता तोड़ा लिया है। अब वे आरजेडी और कांग्रे स समेत छोड़े बड़ करीब सात दलों के साथ मिलकर राज्य में सरकार चलाएंगे। जेडीयू और बीजेपी के बीच पहली बार 1998 में गठबंधन हुआ था।  बिहार की राजनीति में कई ऐसे मौके आए जब नीतीश कुमार ने पाला बदला। साल 2013 में बीजेपी की ओर से लोकसभा चुनाव 2014 के लिए नरेंद्र मोदी को आगे बढ़ाना नीतीश को रास नहीं आया। 16 जून 2013 को बीजेपी ने मोदी को लोकसभा चुनाव प्रचार अभियान समिति का अध्यक्ष बनाया तो नीतीश कुमार खफा हो गए और उन्होंने बीजेपी के साथ अपने 17 साल पुराने नाते को तोड़ दिया और आरजेडी के साथ मिलकर सरकार बनाई।

42 सीट जीतने के बाद भी बने थी सीएम
2020 के बिहार विधानसभा चुनाव के परिणामों पर नजर डाले तो आरजेडी को सबसे अधिक 122 सीटों पर जीत हासिल हुई थी। वहीं चुनाव में 42 सीटों पर जीत हासिल करने वाली जेडीयू ने 72 सीट हासिल करने वाली बीजेपी के साथ मिलकर सरकार बनाई थी। अब  नीतीश की जेडीयू ने बीजेपी के साथ गठबंधन तोड़ लिया है और फिर से सीएम पद की शपथ लेने जा रहे हैं। इस तरह नीतीश कुमार आठवीं बार बिहार के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ लेने जा रहे हैं।

1994 में छोड़ लालू का साथ 

साल 1994 में  नीतीश कुमार ने अपने सबसे पुराने सहयोगी लालू प्रसाद यादव का साथ छोड़ने का फैसला लिया । तब उनके फैसले सेसभी को चौंक गए थे। तब नीतीश कुमार ने जनता दल से अलग होकर जॉर्ज फर्नाडिंस के साथ मिलकर समता पार्टी का गठन किया। नीतीश कुमार ने समता पार्टी के बैनर तले बिहार विधानसभा चुनाव लड़ा। हालांकि चुनाव में जनता ने उन्हें नकार दिया। और वे बुरी तरह से पराजित हुए थे।

1996 में बीजेपी से मिलाया हाथ
बिहार चुनाव में मिली हार से निराश नीतीश कुमार ने साल 1996 में बीजेपी से गठबंधन किया।  जबकि उस समय बिहार में बीजेपी एक कमजोर दल के रूप में जानी जाती थी। हांलाकि , बीजेपी और समता पार्टी का बीच ये गठबंधन अगले 17 साल चला।  बता दें कि इस बीच साल 2003 में समता पार्टी जनता दल यूनाइटेड बन गई। नाम बदला लेकिन बीजेपी के साथ उसकी दोस्ती नहीं टूटी। दोनों दलों ने साल 2005 का विधानसभा चुनाव लड़ा और शानदार जीत हासिल की। जेडीयू और बीजेपी ने साल 2013 तक बिहार में गठबंधन की सरकार चलाई।

पीएम की कुर्सी को लेकर पड़ी नीतीश और मोदी में दरार

2013 के बाद नीतीश कुमार की जेडीयू और बीजेपी के बीच दरार दिखाई देने गी।  नरेंद्र मोदी और नीतीश कुमार के बीच प्रधानमंत्री पद लालसा ने जेडीयू और बीजेपी गठबंधन टूट गया। 2013 में बीजेपी के साथ 17 साल पुराने गठबंधन को नीतीश कुमार ने तोड़ दिया। हालांकि इसके बाद  2014 में हुए लोकसभा चुनव में  नीतीश कुमार की पार्टी को करारी हार का सामना करना पड़ा। ऐसे में उन्होंने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा छोड़ दिया। नीतीश ने बिहार सरकार के मंत्री जीतन राम मांझी को सीएम की कुर्सी सौंप दी। और 2015 के बिहार विधानसभा चुनाव की तैयारियों में खुद को झोंक दिया।

2015 के विधानसभा चुनाव में नीतीश कुमार ने लालू प्रसाद यादव, कांग्रेस और अन्य दूसरे दलों के साथ महागठबंधन बनाया और  चुनाव लड़े। 2015 के विधानसभा चुनाव में लालू यादव की पार्टी आरजेडी को नीतीश कुमार की जेडीयू से ज्यादा सीट हासिल हुईं। इसके बाद भी नीतीश कुमार को बिहार का मुख्यमंत्री और तेजस्वी यादव को उपमुख्यमंत्री बनाया गया। यह गठबंधन करीब 20 महीने तक चला। बाद में नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव के बीच खटपट शुरु हो गई। जिसके चलते 2017 में  बिहार की जेडीयू  आरजेडी के बीच गठबंधन टूट गया। नीतीश कुमार ने इस्तीफा दे दिया तब बीजेपी ने आगे बढ़कर नीतीश कुमार साथ देनेे का निर्णय लिया। इसके बाद वे बार फिर से बिहार के मुख्यमंत्री  की कुर्सी पर बैठ गए।

बीजेपी से मतभेद की असली वजह

साल 2020 में बिहार विधानसभा चुनाव में जेडीयू को कम सीटें मिली थीं।  यानी 42 सीट ही जीत सकी थी। इसके बाद भी  बीजेपी ने उन्हें मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठाया लेकिन महज दो साल बाद ही मतभेद उभरने लगे।  सियासी गलियारों में जोरों की चर्चा है कि आरसीपी सिंह से नीतीश कुमार काफी नाराज बताए जाते हैं। आरोप ये भी है कि बीजेपी आरसीपी सिंह के सहारे नई चाल चल सकती है। हालांकि अभी तक बीजेपी की ओर से कोई कदम नहीं उठाया गया है।  दरअसल 1990 के दशक से एक दूसरे की सहयोगी रही जेडीयू और बीजेपी के बीच अग्निपथ योजना , जाति जनगणना , जनसंख्या कानून और लाउडस्पीकर पर प्रतिबंध जैसे मुद्दों पर अलग अलग राय रही है ।  हालांकि जेडीयू ने राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति चुनावों में एनडीए के उम्मीदवारों का समर्थन किया था। लेकिन दूरिश बढ़ती गईं।

अब फिर दिखाई देने लगी पीएम की कुर्सी
दरअसल नीतीश कुमार प्रधानमंत्री के लिए 2013 से ही प्रयासरत हैं। 1970 के दशक में नीतीश कुमार ने किसी भी किमत पर  बिहार का का मुख्यमंत्री बनने की मंशा जताई थी  ठीक उसी तर्ज पर अब नीतीश  पीएम पद के लिए भी एक बार ताल ठोकने की तैयारी में हैं  माना जा रहा है कि जो 2014 में नहीं हुआ उसे 2024 में करना चाहते हैं। लेकिन बड़ा सवाल तो ये है कि क्या 2024 में नीतीश सफल हो पाएंगे। सवाल ये भी है कि पिपक्ष नीतीश कुमार को क्या पीएम के दावेदार के रूप में स्वीकार कर लेगा।

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