नीतीश ने खाई सौंगध, बीजेपी नहीं करेंगे गठबंधन
“अब अटल आडवाणी वाली बीजेपी नहीं रही”
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने जब से बीजेपी से नाता तोड़ा है तब से उनके बीजेपी पर हमले तेज हो गए हैं। नीतीश कुमार ने एक बार फिर स्पष्ट किया है कि वे अब कभी भी बीजेपी का दामन नहीं पकड़ेंगे उसके साथ गठबंधन कभी नहीं करेंगे। नीतीश कुमार ने कहा कि अब वे समाजवादियों के साथ हैं। जिंदगी में कभी बीजेपी के साथ नहीं जाएंगे। बीजेपी अब अटल अडवाणी वाली पार्टी नहीं रह गई है। समाजवादियों के साथ रहकर बिहार और देश का विकास करेंगे। बता दें मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने समस्तीपुर जिले के सरायरंजन में इंजीनीयरिंग कॉलेज के लोकार्पण कार्यक्रम में बीजेपी पर जमकर हमला बोला। उन्होंने कहा कि पहले बीजेपी में अटल बिहारी वाजपेयी, लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी सरीखे नेता थे। ये सभी खूब काम करते थे। मगर अभी के बीजेपी नेता काम से ज्यादा प्रचार करते हैं। अब अटल आडवाणी वाली बीजेपी नहीं रही है। नीतीश कुमार ने कहा कि इससे पहले जब बिहार में महागठबंधन की सरकार बनी थीए तब केंद्र की मोदी सरकार ने लालू यादव पर झूठे आरोप लगाए थे। मगर उस मामले में कुछ नहीं हुआ। अब फिर से महागठबंधन सत्ता में हैए तो लालू को फंसाने की साजिश की जा रही है।
नया नहीं है जेडीयू और बीजेपी में अलगाव
दरअसल जेडीयू और बीजेपी के बीच पहली बार अलगाव नहीं हुआ है। यो दोनों ही पार्टियां अपने अपने हित देखते हुए गठबंधन तोड़ती और करती रहीं हैं। जेडीयू और बीजेपी के बीच पहली बार 1998 में गठबंधन हुआ था। बिहार की राजनीति में कई ऐसे मौके आए जब नीतीश कुमार ने पाला बदला। साल 2013 में बीजेपी की ओर से लोकसभा चुनाव 2014 के लिए नरेंद्र मोदी को आगे बढ़ाना नीतीश को रास नहीं आया। 16 जून 2013 को बीजेपी ने मोदी को लोकसभा चुनाव प्रचार अभियान समिति का अध्यक्ष बनाया तो नीतीश कुमार खफा हो गए और उन्होंने बीजेपी के साथ अपने 17 साल पुराने नाते को तोड़ दिया और आरजेडी के साथ मिलकर सरकार बनाई।
42 सीट जीतने के बाद भी बने थी सीएम
बात करें 2020 की तो बिहार विधानसभा चुनाव के परिणामों पर नजर आते हैं। तब आरजेडी को सबसे अधिक 122 सीटों पर जीत हासिल हुई थी। वहीं चुनाव में 42 सीटों पर जीत हासिल करने वाली जेडीयू ने 72 सीट हासिल करने वाली बीजेपी के साथ मिलकर सरकार बनाई थी।
1994 में छोड़ा लालू का साथ
साल 1994 में नीतीश कुमार ने अपने सबसे पुराने सहयोगी लालू प्रसाद यादव का साथ छोड़ने का फैसला लिया । तब उनके फैसले सेसभी को चौंक गए थे। तब नीतीश कुमार ने जनता दल से अलग होकर जॉर्ज फर्नाडिंस के साथ मिलकर समता पार्टी का गठन किया। नीतीश कुमार ने समता पार्टी के बैनर तले बिहार विधानसभा चुनाव लड़ा। हालांकि चुनाव में जनता ने उन्हें नकार दिया। और वे बुरी तरह से पराजित हुए थे।
1996 में फिर बीजेपी के गले लगे
बिहार चुनाव में मिली हार से निराश नीतीश कुमार ने साल 1996 में बीजेपी से गठबंधन किया। जबकि उस समय बिहार में बीजेपी एक कमजोर दल के रूप में जानी जाती थी। हांलाकिए बीजेपी और समता पार्टी का बीच ये गठबंधन अगले 17 साल चला। बता दें कि इस बीच साल 2003 में समता पार्टी जनता दल यूनाइटेड बन गई। नाम बदला लेकिन बीजेपी के साथ उसकी दोस्ती नहीं टूटी। दोनों दलों ने साल 2005 का विधानसभा चुनाव लड़ा और शानदार जीत हासिल की। जेडीयू और बीजेपी ने साल 2013 तक बिहार में गठबंधन की सरकार चलाई।
पीएम की कुर्सी को लेकर नीतीश और मोदी में दरार
साल 2013 के बाद नीतीश कुमार की जेडीयू और बीजेपी के बीच दरार दिखाई देने लगी। नरेंद्र मोदी और नीतीश कुमार के बीच प्रधानमंत्री पद की लालसा ने जेडीयू और बीजेपी गठबंधन में दरार डाल दी। 2013 में बीजेपी के साथ 17 साल पुराने गठबंधन को नीतीश कुमार ने तोड़ दिया। हालांकि इसके बाद 2014 में हुए लोकसभा चुनव में नीतीश कुमार की पार्टी को करारी हार का सामना करना पड़ा। ऐसे में उन्होंने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा छोड़ दिया। नीतीश ने बिहार सरकार के मंत्री जीतन राम मांझी को सीएम की कुर्सी सौंप दी। और 2015 के बिहार विधानसभा चुनाव की तैयारियों में खुद को झोंक दिया। 2015 के विधानसभा चुनाव में नीतीश कुमार ने लालू प्रसाद यादव, कांग्रेस और अन्य दूसरे दलों के साथ महागठबंधन बनाया और चुनाव लड़े। 2015 के विधानसभा चुनाव में लालू यादव की पार्टी आरजेडी को नीतीश कुमार की जेडीयू से ज्यादा सीट हासिल हुईं। इसके बाद भी नीतीश कुमार को बिहार का मुख्यमंत्री और तेजस्वी यादव को उपमुख्यमंत्री बनाया गया। यह गठबंधन करीब 20 महीने तक चला। बाद में नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव के बीच खटपट शुरु हो गई। जिसके चलते 2017 में बिहार की जेडीयू आरजेडी के बीच गठबंधन टूट गया। नीतीश कुमार ने इस्तीफा दे दिया तब बीजेपी ने आगे बढ़कर नीतीश कुमार साथ देनेे का निर्णय लिया। इसके बाद वे बार फिर से बिहार के मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठ गए।
बीजेपी से मतभेद की असली वजह
साल 2020 में बिहार विधानसभा चुनाव में जेडीयू को कम सीटें मिली थीं। यानी 42 सीट ही जीत सकी थी। इसके बाद भी बीजेपी ने उन्हें मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठाया लेकिन महज दो साल बाद ही मतभेद उभरने लगे। सियासी गलियारों में जोरों की चर्चा है कि आरसीपी सिंह से नीतीश कुमार काफी नाराज बताए जाते हैं। आरोप ये भी है कि बीजेपी आरसीपी सिंह के सहारे नई चाल चल सकती है। हालांकि अभी तक बीजेपी की ओर से कोई कदम नहीं उठाया गया है। दरअसल 1990 के दशक से एक दूसरे की सहयोगी रही जेडीयू और बीजेपी के बीच अग्निपथ योजना , जाति जनगणना , जनसंख्या कानून और लाउडस्पीकर पर प्रतिबंध जैसे मुद्दों पर अलग अलग राय रही है। हालांकि जेडीयू ने राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति चुनावों में एनडीए के उम्मीदवारों का समर्थन किया था। लेकिन दूरी बढ़ती गईं।
फिर दिखाई देने लगी पीएम की कुर्सी
नीतीश कुमार प्रधानमंत्री के लिए 2013 से ही प्रयासरत हैं। 1970 के दशक में नीतीश कुमार ने किसी भी कीमत पर बिहार का का मुख्यमंत्री बनने की मंशा जताई थी। ठीक उसी तर्ज पर अब नीतीश पीएम पद के लिए भी एक बार ताल ठोकने की तैयारी में हैं। माना जा रहा है कि जो 2014 में नहीं हुआ उसे 2024 में करना चाहते हैं। लेकिन बड़ा सवाल तो ये है कि क्या 2024 में नीतीश सफल हो पाएंगे। सवाल ये भी है कि विपक्ष नीतीश कुमार को क्या पीएम के दावेदार के रूप में स्वीकार कर लेगा।