नए संसद भवन बनाने के पीछे हैं कई कारण,आइए जानते हैं सब कुछ

तमाम जरूरतों को पूरा करने वाला है नया संसद भवन

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश को नया संसद भवन सौंप दिया है। इस भवन से देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था को चलाना अब और आसान हो जाएगा। यहां तमाम आधुनिक सुविधाओं के साथ कार्य क्षमताओं में वृध्दि होगी। सभी को पता है कि इस देश को नए संसद भवन की काफी जरूरत थी। इसके बाद भी विपक्ष ने इस भवन को लेकर कई सवाल उठाए है। इसलिए ये जानना जरूरी है कि पुराने संसद भवन में क्या कमियां थी और नई संसद भवन की जरूर क्यों पड़ी? इसलिए जानते हैं कि पुरानी संसद भवन की कमियां और नए संसद भवन की जरूरत।

ये थी पुराने संसद भवन में खामियां

पुरानी संसद का निर्माण 1921 में प्रारंभ किया गया था। जिसका निर्माण कार्य 1927 में पूरा किया गया। कुल 6 साल में तैयार हुए इस भवन को लगभग सौ साल हो गए थे। काफी पुराना होने के कारण कई तरह के व्यावहारिक कठिनाईयां आ रहीं थी। इसके अलावा बीते वर्षों में संसदीय कार्यों और उसमें काम करने वालों के अलावा आगुंकों की संख्या में लगातार वृध्दि हो रही थी। ऐसे में जगह कम पड़ी तो नए निर्माण और संशोधन अस्थाई तौर पर किए थे। उदाहरण के लिए पुराने भवन के बाहरी गोलाकार भाग पर वर्ष 1956 में निर्मित दो नई मंजिलों से सेंट्रल हॉल का गुंबद छिप गया और इससे मूल भवन के आगे के भाग का परिदृश्य में बदलाव हो गया। इसके साथ ही जाली और खिड़कियों को कवर करने से संसद के दोनों सदनों के कक्ष में प्राकृतिक रोशनी कम हो गई। यही वजह है कि अधिक दबाव और अतिउपयोग के संकेत यह भवन देने लगा था। मतलब साफ है कि स्थान,सुविधाएं और तकनीकी जरुरतों को पूरा करने में यह भवन पर्याप्त नहीं रहा।

संकीर्ण थी बैठक व्यवस्था

पुराने संसद भवन में द्विसदनीय विधायिका को समायोजित करने के लिए कभी भी डिजाइन नहीं किया गया था। जिसके कारण बैठक व्यवस्था काफी संकीर्ण थी। इस भवन को 1971 की जनगणना के अनुसार किए गए परिसीमन के आधार पर लोकसभा सीटों की संख्या 545 में कोई बदलाव नहीं हो पा रहा था। जबकि 2026 के बाद लोकसभा की सीटों में काफी वृध्दि होने की संभावना है। वजह ये है कि लोकसभा की कुल सीटों की संख्या में केवल 2026 तक स्थिरता रखी जा सकती है इसके बाद परिसीमन के आधार में इनकी संख्या बढ़ाना ही पड़ेगी। इसके अलावा जब यहां संयुक्त सत्र होते हैं तो सदस्यों को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है क्योंकि दूसरी पंक्ति में कोई सेंट्रल डेस्क नहीं है और सेंट्रल हॉल में केवल 440 लोगों के बैठने की क्षमता है। यहां आवाजाही के कारण सुरक्षा को लेकर भी चिंताए व्यक्त की जाने लगीं थी।

नए संसद भवन निर्माण की ये रही वजह

पिछले सालों के दौरान सीवर लाइनों,पानी की आपूर्ति लाइनों,अग्निशमन,एयर कंडीशनिंग, सीसीटीवी, ऑडियो वीडियो सिस्टम जैसी सेवाओं को जोड़ा गया, जो मूल रूप से नियोजित नहीं थी। हालांकि, इन सुविधाओं को उपलब्ध करवाए जाने से भवन में सीलन आ गई है और इससे भवन का समग्र सौंदर्य बिगड़ गया है। अग्नि सुरक्षा एक प्रमुख चिंता का विषय है क्योंकि भवन को वर्तमान अग्नि मानदंडों के अनुसार डिजाइन नहीं किया गया है। कई नए विद्युत केबल लगाए गए हैं जो संभावित आग के लिए खतरा थे। इस भवन की विद्युत, यांत्रिक, वातानुकूलन, प्रकाश व्यवस्था, दृश्य-श्रव्य, ध्वनिक, सार्वजनिक उद्घोषणा प्रणाली और सुरक्षा अवसंरचना बिल्कुल पुरानी है और इसे आधुनिक बनाने की आवश्यकता थी। इस भवन को भूकंपरोधी प्रमाणित नहीं किया जा सकता है। यह विशेष रूप से चिंता का विषय है क्योंकि दिल्ली का भूकंप जोखिम गुणॉक भवन निर्माण के समय के भूकंपीय क्षेत्र- II से भूकंपीय क्षेत्र- IV में स्थानांतरित हो गया है, जिसके जोन-V में बढ़ जाने की आशंका है।

कब-कब हुई इसकी मांग?

लोकसभा अध्यक्षों अर्थात मीरा कुमार ने 13 जुलाई 2012, सुमित्रा महाजन ने दिनांक 09 दिसंबर 2015 और ओम बिरला ने दिनांक 02 अगस्त 2019 के अपने पत्र में सरकार से संसद के लिए नए भवन के निर्माण का अनुरोध किया था।

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