देश के जिन विद्यार्थियों ने मेडिकल के फील्ड में सुनहरे भविष्य का सपना देखा, वो विद्यार्थी आज सड़कों पर धरना प्रदर्शन करने को विवश हैं। प्रोटेस्ट कर रहे छात्र डॉक्टर बनने के लिए कई साल से अथक परिश्रम कर रहे थे जो या तो सड़क पर प्रदर्शन कर रहे हैं या कोर्ट कचहरी के चक्कर लगाते नजर आ रहे हैं। न्यायालय में पेटिशन पर पेटिशन फाइल कर रहे हैं। NEET 2024 के एग्जाम में जिस तरह की गड़बड़ियां हुईं है उसने विद्यार्थियों और उनके अभिभावकों को हैरान कर दिया है।
- 67 विद्यार्थियों को 720 में से 720 अंक
- इतने विद्यार्थियों के फुल मार्क कैसे
- कई विद्यार्थियों को 718, 719 नंबर…ग्रेस मार्क में धांधली
- नीट का रिजल्ट 10 दिन पहले क्यों घोषित किया गया
- चुनाव नतीजों के दिन नीट का रिजल्ट क्यों घोषित किया
- टॉपर लिस्ट में एक ही परीक्षा केन्द्र से 8 विद्यार्थियों के नाम
- नीट के विद्यार्थियों को नंबर देने में गड़बड़ी की आशंका
- कई परीक्षा केन्द्र पर पेपर लीक की शिकायत की गई थी
- नीट परीक्षा फूलप्रूफ क्यों नहीं थी
हरियाणा के एक ही परीक्षा सेंटर से 6 टॉपर !
जहां पिछले चार साल में शतप्रतिशत अंक लाने वाले छह सात विद्यार्थी हुआ करते थे वो इस बार अचानक बढ़कर इस बार नीट में टॉपर एक दो नहीं बल्कि 67 हैं। जिनमें से 6 तो हरियाणा के एक ही परीक्षा सेंटर से हैं। सवाल उठता है कि एक ही सेंटर से 6 टॉपर कैसे हो गए। एक ही रोल नंबर वाली श्रंखला के 6 टॉपर कैसे हो गए। यह वो सवाल हैं जो अब हर भारतीय के दिमाग में कौंध रहे हैं।
जांच में चौंकाने वाले खुलासे हुए
जांच में जो बातें सामने आईं हैं वह चौंकाने वाली हैं। नीट एग्जाम के प्रक्रिया की बात करें तो देश भर के मेडिकल कॉलेज में भर्ती के लिए नेशनल टेस्ट एजेंसी नीट अंडरग्रैजुएट का एग्जाम करती है। इस बार नीट का एग्जाम 5 मई को हुआ था। इसके लिए फरवरी महीने में ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन शुरू किए गए थे जो 9 मार्च को बंद हुए। लेकिन एनटीए ने 9 अप्रैल से एक बार फिर ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन शुरू कर दिए। इस साल 24 लाख से ज्यादा स्टूडेंट्स ने नीट का एग्जाम देने के लिए रजिस्ट्रेशन कराया था। 5 मई को एग्जाम हुआ। जिसमें 23 लाख 21 हजार से ज्यादा स्टूडेंट्स शामिल हुए। पहले से डेट के मुताबिक रिजल्ट 14 जून को सामने आना था। लेकिन परीक्षा एजेंसी ने 10 दिन पहले नीट का रिजल्ट अलाउंस कर दिया। इस एग्जाम में 13 लाख से ज्यादा छात्र पास हुए हैं। हैरानी तब हुई जब रैंकिंग निकली। रैंकिंग की लिस्ट में पहली बार ऐसा हुआ जब 67 स्टूडेंट्स को ऑल इंडिया रैंकिंग में टॉप पोजीशन मिली। इन सबको टोटल 720 में से 720 यानी 100% मार्क्स मिले। जबकि 2023 में दो विद्यार्थी ऐसे थे जिन्हें 100% मार्क्स मिले थे। वहीं 2022 में नीट एग्जाम देने वाले एक भी स्टूडेंट्स को हंड्रेड परसेंट मार्क्स नहीं मिले। जब के 2022 में ही टोटल 720 मार्क्स थे।
किसी देश या राज्य की सरकारों की पहली जिम्मेदारी वहां के नागरिकों की मूलभूत आवश्यकता आवास और भोजन की पूर्ति के साथ ही साथ शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार जैसी प्राथमिकताओं को भी पूरा करना खासा अहम होता है। संस्कारित समाज की ये ऐसी आवश्यकताएं हैं। जिनसे राज्य और देश का सुनहरा भविष्य छिपा होता है। व्यक्ति जितना पढ़ा-लिखा और हुनरमंद होने के साथ अपने कर्तव्यों के प्रति ईमानदार होगा। वह राज्य व देश उतना ही ज्यादा तरक्की करेगा। इसलिए सरकार से उम्मीद की जाती है कि वो इन सेवाओं को निःशुल्क या कम से कम खर्च में नागरिकों को उपलब्ध कराए। इसके लिए पूंजीवादी सोच और बाजारवाद को तिलांजलि देने की आवश्यकता होती है। जहां ऐसा होता है, वहां विकास की गंगा बहती है, लेकिन जहां पैसा ही सब कुछ हो जाता है। वहां मानव सेवा वाली सोच नदारद हो जाती है और बाजारवाद फलने-फूलने लगता है। यह सब इसलिए कहा जा रहा है।
ग्रेस मार्क्स पाने वाले विद्यार्थियों का दोबारा इम्तिहान
क्योंकि नीट मामले को लेकर जो खुलासे हुए हैं और जिस तरह से अदालत ने ग्रेस मार्क्स पाने वाले बच्चों को दोबारा इम्तिहान देने को कहा है। उससे एक बात तो तय हो गई कि सब कुछ सही नहीं है। घपले पर घपला तो यह रहा कि राष्ट्रीय पात्रता सह प्रवेश परीक्षा यानी नीट-यूजी 2024 में कथित विसंगतियों के आरोपों के बीच परीक्षा का आयोजन करने वाली नेशनल टेस्टिंग एजेंसी ने इसकी गवर्निंग बॉडी के अध्यक्ष प्रदीप कुमार जोशी को ही जांच पैनल का प्रमुख नियुक्त कर दिया। इस फैसले की भी खूब आलोचना हुई है। इस निर्णय के बाद जांच की निष्पक्षता पर सवाल उठना लाजमी था, सो वही हो रहा है।
अनैतिक व्यवसाय बना नीट एग्जाम
वैसे देखा जाए तो नीट एग्जाम के नाम पर एक अनैतिक व्यवसाय ने जगह ले ली है। इसके पीछे खरबों रुपयों के घपला-घोटाले का खेल भी चलता नजर आ रहा है। जिसे लेकर समय-समय पर चचाएं तो होती हैं, लेकिन कोई साक्ष्य प्रस्तुत नहीं कर पाने की स्थिति में परिणाम भी नहीं मिल पाता है। इस स्थिति में तमाम कोशिशें ढाक के तीन पात साबित होती हैं। इसमें पिसते हैं वो मासूम बच्चे जो मेडिकल में अपना भविष्य बनाने के लिए उस व्यवस्था का हिस्सा बनने की कोशिश करते हैं। जिसमें जाकर ये बच्चे अपने आप को पूंजीवादी मकड़जाल में उलझा हुआ पाते हैं।