सनातन धर्म में नर्मदा जयंती का विशेष महत्व है। इस वर्ष यह जयंती आज यानी 28 जनवरी शनिवार को हैं। नर्मदा जयंती हिन्दुओं द्वारा मनाया जाने वाला एक पवित्र त्यौहार है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने नर्मदा जयंती पर प्रदेश वासियों को बधाई दी है। इसका एक वीडियो भी सीएम शिवराज ने जारी किया है। जिसमें उनके साथ बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा भी नजर आ रहे हैं।
- मप्र में आस्था का बड़ा केन्द्र है नर्मदा नदी
- दशकों से चली आ रही नर्मदा नदी पर सियासत
- दलों ने उठाया नर्मदा के नाम पर सियासी फायदा
- सत्ता के लिए नर्मदा किनारे घूमते नेता
- 2018 में दिग्विजय सिंह ने की 142 दिन की नर्मदा परिक्रमा
- शिवराज भी 2016 में कर चुके हैं नर्मदा सेवा यात्रा
मध्य प्रदेश की जीवन दायनी कहे जाने वाली नर्मदा नदी प्रदेश के लोगों की आस्था का बड़ा केंद्र है। लेकिन मध्य प्रदेश में नर्मदा नदी केवल आस्था तक ही सीमित नहीं है बल्कि यह प्रदेश के सियासत के केंद्र में भी रहती है। नर्मदा नदी पर सियासत दशकों से चली आ रही है। नदी सरंक्षण के नाम पर राजनीतिक दलों को अपने-अपने दावे रहे हैं। बीजेपी और कांग्रेस दोनों ही अपने राजनीतिक हितों को पूरा करने के लिए नर्मदा नदी के नाम, उसके धार्मिक सामाजिक ऐतिहासिक महत्व का भरपूर फायदा उठाने की कोशिश करते हैं। इस कोशिश में कभी पूर्व सीएम दिग्विजय सिंह ने नर्मदा परिक्रमा की तो कभी सीएम शिवराज सिंह चौहान ने नर्मदा सेवा यात्रा की। मप्र में अधिकांश नेता सियासी सफलता के लिए नर्मदा नदी के किनारे घूमते नजर आते हैं।
नर्मदा की सियासी परिक्रमा
नर्मदा एक मात्र ऐसी नदी भी है कि जिसकी परिक्रमा की जाती है। मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह भी नर्मदा परिक्रमा कर चुके हैं। साल 2018 के विधानसभा चुनाव से ऐन पहले की गई दिग्विजय सिंह की 142 दिन की नर्मदा परिक्रमा यात्रा खूब चर्चा में रही थी। दिग्विजय सिंह की इस यात्रा का कांग्रेस को चुनावी लाभ भी मिला। फायदा पहुंचा और 2018 में कांग्रेस ने सत्ता हासिल की। दिग्विजय सिंह ने नर्मदा किनारे तकरीबन 33 सौ किलोमीटर की इस पद यात्रा के जरिए एक बड़ा राजनीतिक संदेश देने की भी कोशिश की।
जबकि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान भी उनसे पहले 11 दिसंबर 2016 को 150 दिन की नर्मदा यात्रा कर चुके हैं। सीएम शिवराज का तो जन्म ही नर्मदा किनारे बसे जेत गांव में हुआ है। ऐसे में उनका भी नर्मदा से विशेष लगाव है। पूर्व सीएम कमलनाथ भी नर्मदा के मुद्दे पर मुखर रहते हैं। ऐसे में राजनीतिक जानकारों का कहना है कि नर्मदा के महत्व को सियासतदान समझते हैं यह उनके लिए कितनी जरूरी है।
नर्मदा के किनारे-किनारे बहते सियासी मुद्दे
मैकल पर्वत के अमरकंटक शिखर से निकली नर्मदा नर्मदा नदी गुजरात में दाखिल होने तक मध्य प्रदेश में एक हजार से भी ज्यादा किलोमीटर का सफर तय करती हैं। इस लंबे सफर के दौरान नर्मदा को लेकर कई मुद्दे नदी के किनारे किनारे बहते नजर आते हैं। अवैध उत्खनन, नदी का संरक्षण, बांध जैसे कई अहम मुद्दे हैं। जिनमें अवैध उत्खनन सबसे बड़ा मुद्दा है। बीजेपी और कांग्रेस दोनों ही दल इस मुद्दे पर एक दूसरे के खिलाफ मुखर रहते हैं। जिसकी सत्ता होती है वह अवैध उत्खनन, के मुद्दे पर एक दूसरे को घेरने का कोई मौका नहीं छोड़ता। इसी तरह नर्मदा की सफाई भी एक बड़ा मुद्दा है। जबकि नर्मदा नदी पर कई बांध बनाए गए हैं। जिसमें पलायन का मुद्दा भी छाया रहता है। जाहिर यह है यह ऐसे मुद्दे हैं जिन पर जमकर सियासत हो सकती है।
अपने-अपने दावे और वादे
साल के अंत होने वाले विधानसभा चुनाव को लेकर मध्य प्रदेश में नर्मदा नदी को लेकर दावे और वादे भी शुरू हो गए हैं। प्रदेश की बीजेपी सरकार ने ऐलान किया है कि नर्मदा नदी को स्वच्छ और निर्मल बनाने के लिए उसके आसपास प्राकृतिक खेती की जाएगी। इसके लिए किसानों को प्रेरित किया जाएगा। उन्होंने कहा कि नर्मदा नदी प्रदेश के हर एक व्यक्ति की आस्था का बिंदु है तो कांग्रेस ने भी चुनाव के लिहाज से कई मुद्दे उठाए हैं। ऐसे में राजनीतिक दलों ने तैयारियां शुरू कर दी है। जिसकी झलक इस नर्मदा जयंती पर दिखनी शुरू हो गई है।