महाकुंभ, कुंभ और अर्धकुंभ के बीच क्या अंतर है? और कुंभ मेले की तारीख और जगह कैसे तय की जाती है? यह सभी के मन में सवाल के रुप में अक्सर आता है। क्या आप जानते हैं कि समुद्र मंथन की कथा से लेकर ज्योतिषीय गणनाओं तक पवित्र मेले का रहस्य क्या है।
भारत में कुंभ मेले का आयोजन चार नगरों में होता है। जिसमें हरिद्वार, प्रयागराज, नासिक और उज्जैन शामिल हैं। चारों नगरों में होने वाले कुंभ की स्थिति भी विशेष होती है। एक ओर जहां महाराष्ट्र के नासिक और मध्यप्रदेश के उज्जैन कुंभ को आमतौर पर सिंहस्थ कहा जाता है तो वहीं उत्तराखंड के हरिद्वार और उत्तरप्रदेश के प्रयागराज में कुंभ, अर्धकुंभ और महाकुंभ का आयोजन होता है।
हर 12 साल में होता है महाकुंभ मेले का आयोजन
हिंदू धर्म में महाकुंभ मेला सभी की आस्था और संस्कृति को दर्शाता है। हर 12 साल में महाकुंभ मेले का आयोजन किया जाता है। हिंदू पंचांग की माने तो हर साल पौष माह की पूर्णिमा तिथि के दिन महाकुंभ मेले का आयोजन किया जाता है। इसी दिन से शाही स्नान की भी शुरुआत होती है। बता दें इस साल महाकुंभ मेला 13 जनवरी से प्रयागराज में लगने जा रहा है। जिसे लेकर यूपी की योगी आदित्यनाथ सरकार की ओर से जोरो-शोरों से तैयारियां की जा रही हैं। यह तैयारी लगभग पूरी भी हो चुकी हैं। महाकुंभ पौष माह की पूर्णिमा से आरंभ होगा और महाशिवरात्रि पर यह धार्मिक आयोजन का समापन होगा। यानी सोमवार 13 जनवरी से महाकुंभ शुरू होगा और इसका समापन रविवार 26 फरवरी को होगा। इस बार महाकुंभ का आयोजन पूरे 45 दिनों तक होगा। अब हम आपको बता रहे हैं महाकुंभ मेला अर्घकुंभ, पूर्णकुंभ और सिंहस्थ कुंभ से कितना अलग होता है।
प्रयागराज महाकुंभ में शाही स्नान की तिथियां
13 जनवरी सोमवार पौष पूर्णिमा स्नान
14 जनवरी मंगलवार मकर संक्रांति स्नान
29 जनवरी बुधवार मौनी अमावस्या स्नान
3 फरवरी सोमवार बसंत पंचमी स्नान
12 फरवरी बुधवार माघ पूर्णिमा स्नान
26 फरवरी बुधवार महाशिवरात्रि स्नान
क्या होता है अर्धकुंभ का महत्व?
अर्धकुंभ अगर बात करें तो अर्ध से आशय है आधा। बता दें, हर छह साल में कुंभ मेले के बीच अर्धकुंभ का आयोजन हरिद्वार और प्रयागराज में किया जाता है। जिसे छोटे स्तर का कुंभ भी कहा जाता है।
क्या है पूर्णकुंभ का महत्व ?
पूर्णकुंभ का आयोजन हर 12 सालों में किया जाता है। ऐसी मान्यता है कि देवताओं के 12 दिन मनुष्यों के 12 साल के समान होते हैं। यही वजह है कि 12 साल में पवित्र स्थल पर पूर्णकुंभ मेले का आयोजन किया जाता है। पूर्णकुंभ प्रयागराज, नासिक, उज्जैन और हरिद्वार में आयोजित किया जाता है।
जानें क्या है सिंहस्थ कुंभ का महत्व?
सिंहस्थ कुंभ विशेष रूप से महाराष्ट्र के नासिक और मध्यप्रदेश के उज्जैन में ही आयोजित किया जाता है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार सिंहस्थ कुंभ का संबंध सिंह राशि से होता है। माना जाता है कि जब बृहस्पति सिंह राशि में सूर्य मेष राशि में होती है, तभी इन स्थानों पर सिंहस्थ कुंभ मेले का आयोजन किया जाता है।
महाकुंभ मेले में शाही स्नान का महत्व
महाकुंभ केवल प्रयागराज में हर 144 साल के लंबे अंतराल में आयोजित किया जाता है। पौराणिक मान्यता है कि कुल 12 कुंभों में से चार कुंभ धरती पर होते हैं। जबकि बाकी 8 कुंभ का आयोजन देवलोक में ही किया जाता है। ज्योतिष शास्त्र की माने तो जब सूर्य, चंद्रमा और बृहस्पति एक खास स्थिति में होते हैं। तब इन स्थानों पर कुंभ मेले का आयोजन होता है। महाकुंभ मेला 144 साल में से एक बार प्रयागराज में गंगा नदी के किनारे आयोजित किया जाता है। ऐसी धार्मिक मान्यता है कि महाकुंभ में साक्षात देवी देवता भी धरती पर शाही स्नान करने के लिए आते हैं। जिसके चलते शाही स्नान की महत्ता और अधिक बढ़ जाती है। कहते हैं महाकुंभ के दौरान शाही स्नान करने से व्यक्ति को मृत्यु के बाद मोक्ष की प्राप्ती होती है। ऐसा मान्यता है कि शाही स्नान करने वाले को साक्षात भगवान शिव के चरणों में स्थान मिलता है। शाही स्नान करने से आरोग्य की भी प्राप्ति होती है।