देश की सबसे बड़ी अदालत में ‘मुस्लिम पर्सनल लॉ’ के एक और नियम के खिलाफ बहस की तारीख मंजूर हो गई है। हिजाब और तीन तलाक के गंभीर मुद्दों के बाद इस बार मुस्लिम लड़कियों के कम उम्र में निकाह को मुद्दा बनाया गया है।
इस तारीख को होगी सुनवाई
दरअसल, इसी साल जून में 16 साल की नाबालिग मुस्लिम लड़की और 21 साल के मुस्लिम लड़के के निकाह का मामला पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट में पहुंचा था। याचिका में दोनों ने बताया था कि उन्होंने हाल ही में निकाह किया है। लेकिन दोनों के परिवार वाले इस निकाह के खिलाफ थे, ऐसे में उन्हें सुरक्षा दी जाए। सुनवाई के बाद हाईकोर्ट ने कहा, ‘कानून के मुताबिक मुस्लिम लड़कियों की शादी ‘मुस्लिम पर्सनल लॉ’ के तहत होती है। ऐसे में 15 साल की उम्र में मुस्लिम लड़की निकाह के योग्य हो जाती है।’
जस्टिस जे एस बेदी की सिंगल बेंच ने यह भी कहा कि लड़का-लड़की ने अपने परिवार वालों की मर्जी के खिलाफ निकाह किया है। सिर्फ इस वजह से उन्हें संविधान से मिलने वाले मौलिक अधिकारों से वंचित नहीं किया जा सकता है। इस तरह कोर्ट की ओर से उन्हें सुरक्षा दी गई।
फिर आगे क्या हुआ?
पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट के इस फैसले को नेशनल कमीशन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ चाइल्ड राइट यानी NCPCR ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दे दी। जिसके बाद 17 अक्टूबर 2022 को सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले की सुनवाई 9 नवंबर 2022 को करने का फैसला सुनाया।
मुस्लिम पर्सनल लॉ फिर विवादों में
- 9 नवंबर को इस मामले पर सुनवाई होगी
- अदालत ने इस केस में सीनियर एडवाेकेट राजशेखर राव को न्याय मित्र नियुक्त किया है।
- NCPCR ने कहा कि हाईकोर्ट ने मुस्लिम पर्सनल लॉ का हवाला देकर बाल विवाह की अनुमति दी है। कोर्ट का यह फैसला एक तरह से बाल विवाह रोकने के लिए 2006 में बनाए गए कानून को तोड़ता है।
- याचिकाकर्ता की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि मुस्लिम पर्सनल लॉ में लड़कियों की शादी की उम्र 15 साल बताया गया है जो देश के 2 अहम कानून के खिलाफ है।
- ये दो कानून हैं – बाल विवाह निषेध अधिनियम 2006 और पॉक्सो एक्ट 2012
ऐसी शादी पॉक्सो एक्ट के खिलाफ क्यों?
बता दें कि मुस्लिम पर्सनल लॉ के तहत 15 साल की लड़की का निकाह किया जा सकता है। वहीं, पॉक्सो एक्ट 2012 कहता है कि18 साल से कम उम्र की लड़कियां नाबालिग होती हैं। ऐसे में नाबालिग लड़कियों से शादी करके शारीरिक संबंध बनाना कानून अपराध है।