सीरिया में 13 साल चले गृहयुद्ध के बाद अब विद्रोहियों ने वहां बशर अल असद की सरकार को उखाड़ फेंका है। राष्ट्रपति असद रूस भाग गए है। रुप में उन्हें राजनैतिक शरण मिली हुई है। राजधानी दमिश्क में विद्रोहियों के हाथ में सत्ता है। जिसमें अबू मुहम्मद अल जुलानी नए नेता के रूप में उभर कर सामने आए हैं।
- शिया और सुन्नी में बंटा मुस्लिम समाज
- खंडहर में बदला मीडिल ईस्ट का देश सीरिया
- सीरिया में 13 साल गृहयुद्ध …अब विद्रोहियों का कब्जा
- बशर अल असद की सरकार को विद्राहियों ने उखाड़ फेंका
- राष्ट्रपति असद को छोड़ना पड़ा देश, रूस में ली शरण
- विद्रोहियों के हाथ में दमिश्क की सत्ता
- अबू मुहम्मद अल जुलानी नए नेता के रूप में उभरे
- अमेरिका ने किया सीरिया में सत्ता परिवर्तन का स्वागत
- जुलानी के आतंकवादी संबंधों को लेकर जताई चिंता
- सीरिया में शांति स्थापना के लिए बड़ी चुनौतियां
- सीरिया में करीब 54 साल बाद हुआ सबसे बड़ा तख्तापलट
- घोषित रूप से आतंकवादियों की पनाह में सीरिया
- सीरिया में छिड़ा गृह युद्ध दरअसल था एक धर्म युद्ध
- एक ओर थे पूर्व राष्ट्रपति बशर अल असद
- शिया मुसलमान हैं पूर्व राष्ट्रपति बशर अल असद
- दूसरी ओर विद्रोही और आतंकवादी गुट
- यह आतंकी गुट सुन्नी मुसलमान हैं
अमेरिका ने किया सत्ता परिवर्तन का स्वागत
अमेरिका ने सीरिया में हुए इस सत्ता परिवर्तन का स्वागत किया, लेकिन जुलानी के आतंकवादी संबंधों को लेकर चिंता भी जताई जा रही है। इज़राइल की ओर से रासायनिक हथियारों की सुरक्षा को लेकर भी चिंता जताई गई है। ऐसे में सीरिया में शांति स्थापना फिलहाल की बड़ी चुनौतियां अभी बाकी हैं।
मीडिल ईस्ट के देश सीरिया में करीब 54 साल बाद सबसे बड़ा तख्तापलट हुआ है। सीरिया अब पूर्णरुप से घोषित रूप से आतंकवादियों की पनाह में चला गया है। सीरिया में छिड़ा गृह युद्ध दरअसल एक धर्म युद्ध था। जिसमें एक ओर पूर्व राष्ट्रपति बशर अल असद थे। असद शिया मुसलमान हैं। वहीं दूसरी ओर विद्रोही और आतंकवादी गुट थे। यह आतंकी गुट सुन्नी मुसलमान हैं।
सीरिया में असद सरकार के खिलाफ वैसा ही हुआ जैसा कुछ कुछ 1982 में हुआ था। उसकी तर्ज पर सीरिया सरकार के खिलाफ एक बार फिर जंग ने राष्ट्रपति असद को भागने पर विवश कर दिया। इस बार मुस्लिम ब्रदर हुड के स्थानपर हयात तहरीर अल शाम के हाथ में विद्रोही गुट का नेतृत्व था। वहीं हाफिद अल असद के बेटे बशर अल असद सीरिया के राष्ट्रपति हुआ करते थे।
इतिहास खुद को दोहराता है
यह कहावत सहीं है कि इतिहास खुद को दोहराता है। बस किरदार बदल जाते हैं। करीब चार दशक पहले 2 फरवरी 1982 की रात विद्रोही ग्रुप मुस्लिम ब्रदरहुड के जंगी लड़ाकों ने घात लगाकर सीरियाई सेना की एक टुकड़ी पर हमला किया। इस घटना के बाद सीरिया के तत्कालीन राष्ट्रपति हाफिज अल असद और विद्रोही गुट की लड़ाई ने खूब हंगामा किया था।
सीरिया के खिलाफ शहर में जमकर विद्रोह पनप उठा था। उस समय मुस्लिम ब्रदरहुड के लड़ाकों की ओर से सरकारी नेताओं के निवास और ऑफिस पर हमला किया गया। उनका मकसद हमा शहर पर कब्जा करना था। इस विद्रोह को समाप्त करने के लिए हाफिज अल असद की ओर से करीब आठ हजार सैनिकों ने हमा शहर की घेराबंदी की। बमबारी भी की गई। इस ऑपरेशन की कमान हाफिज अल असद के भाई रिफात अल असद के हाथ में थी। 27 दिन में सैनिकों ने शहर को लगभग समतल सा बना दिया था। इसके बाद घरों की तलाशी और सामूहिक तलाशियों का दौर चला।
रिपोर्ट पर भरोसा करें तो करीब 10 हजार से 40 हजार लोग इस दौरान मारे गए। इसके बाद से ही रिफात अल असद को हमा का कसाई कहा जाता था। इस घटना के करीब 42 साल बाद मीडिल ईस्ट के सीरियाई सरकार के खिलाफ एक बार फिर विद्रोह देखने को मिला। इस बार मुस्लिम ब्रदर हुड के स्थान पर उनकी जगह हयात तहरीर अल शाम के हाथों में विद्रोही गुट की कमान थी वहीं हाफिद अल असद के बेटे बशर अल असद सत्ता में थे। जिनकी सत्ता का तख्ता पलट दिया गया।
(प्रकाश कुमार पांडेय)