एमपी विधानसभा चुनाव: ज्योतिरादित्य सिंधिया के आने से मिला बीजेपी को ये चुनावी लाभ…

MP Assembly Elections BJP Jyotiraditya Scindia Digvijay Shivraj

मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव में केन्द्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के बीजेपी में शामिल होने के बाद पार्टी को सियासी पिच पर कई बड़े लाभ मिले हैं। 2020 में सिंधिया के शामिल होने से बीजेपी को फिर सरकार बनाने का मौका मिला तो अब 2023 में भी सिंधिया के रहते बीजेपी को ग्वालियर चंबल ही नहीं दूसरे अंचल की भी कई सीटों पर लाभ मिला, उसके प्रत्याशी प्रचंड मतों से जीते। अब 2024 में बीजेपी एमपी की सभी 29 सीटों को अपने कब्जे में करना चाहती है। पिछले 2019 के चुनाव में बीजेपी ने 28 सीट जीती थी, उसके हाथ छिंदवाड़ा में कमलनाथ के बेट नकुलनाथ की जीत छिनने में नाकाम रहे थे। इस बार बीजेपी ज्योतिरादित्य सिंधिया को साथ लेकर सभी 29 सीटों को लेकर खास रणनीति बना रही है।

मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव 2023 में बीजेपी ने 163 सीट जीती हैं जबकि कांग्रेस को महज 66 सीट पर ही संतोष करना पड़ा। ग्वालियर-चंबल संभाग की बात करें तो 34 सीटों में से 16 सीटें जीतने में कांग्रेस इस बार सफल रही। 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को यहां 34 में से 26 सीट पर जीत ​हासिल हुई थी। इस बार कांग्रेस को ग्वालियर चंबल संभाग में कांग्रेस को 10 सीटों का नुक़सान उठाना पड़ा। बीजेपी को यहां 11 सीटों का फ़ायदा हुआ है। दरअसल सिंधिया भी जहां बीजेपी के स्टार प्रचारकों में शामिल थे। वहीं वे कांग्रेसियों के निशाने पर। खासकर दिग्विजय सिंह ने सिंधिया के खिलाफ जमकर बयानबाजी की। ज्योतिरादित्य सिंधिया जहां भाजपा प्रत्याशियों का प्रचार कर रहे थे वहीं कांग्रेसी उन्हें अपने निशाने पर ले रहे थे। कांग्रेस दरअसल पहली बार बिना सिंधिया के चुनाव मैदान में उतरी थी। ऐसे में कांग्रेस के पास ग्वालियर – चम्बल ही नहीं इंदौर और मालवा क्षेत्र मिलाकर प्रदेश की करीब 100 से अधिक विधानसभा सीट पर कांग्रेस के पास बीजेपी को सीधे तौर पर प्रभावित करने वाला कोई चेहरा नहीं था। दिग्विजय सिंह ने पिछले 3 साल और ख़ासकर चुनाव से पहले केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के ख़िलाफ जमकर बयानबाजी की। जिनका सिंधिया ने जवाब नहीं दिया लेकिन वे कांग्रेस खासकर दिग्विजय सिंह के समर्थकों और उनके करीबियों को निशाने पर लेते रहे। उन्हें चुनाव में हराने की रणनीति पर तेजी से काम करते रहे। बता दें दिग्विजय सिंह ही नहीं उनके कई करीबी नेताओं ने चाहे भाई लक्ष्मण सिंह हो या केपी सिंह कक्काजू सभी ने सिंधिया पर कई बार सियासी हमले किये। पूर्व नेता प्रतिपक्ष डॉ.गोविंद सिंह भी सिंधिया पर निशाना साधने से नहीं चूकते हैं। ग्वालियर चंबल अंचल ही नहीं प्रदेश के कई विधानसभा क्षेत्रों में उन्होंने जमकर प्रचार किया और पसींना बहाया। वैसे कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में शामिल होने के बाद से ही कांग्रेस के कई वरिष्ठ नेता लगातार सिंधिया पर सियासी हमले कर रहे थे। चुनाव का ऐलान होने के साथ ही ये हमले और तेज हो गए। सिंधिया को निशाने पर लेने वालों में पूर्व सीएम दिग्विजय सिंह का नाम सबसे उपर था।

सिंधिया ने किया प्रचार..मिली दिग्विजय समर्थकों को हार

सिंधिया की रणनीति ने काम किया और इस चुनाव में दिग्विजय सिंह के भाई लक्ष्मण सिंह सहित कई करीबी समर्थक कांग्रेस प्रत्याशियों को हार का सामना करना पड़ा। जिनमें लहार से डॉ.गोविंद सिंह,
केपी सिंह, गोपाल सिंह, जीतू पटवारी, सज्जन सिंह वर्मा को करारी हार का सामना करना पड़ा। इस जंग में केवल दिग्विजय सिंह के बेटे जयवर्धन सिंह ही अपनी इज्जत बचा पाए। पिछोर से कांग्रेस के अरविंद लोधी को भी हार का सामना करना पड़ा, यहां शिवराज सिंह चौहान ने प्रचार के दौरान पिछोर को जिला बनाने का एलान किया था। जिसके चलते कांग्रेस मतदाताओं को प्रभावित नहीं कर सकी। दिग्विजय सिंह के समर्थक शिवपुरी से केपी सिंह को बीजेपी के देवेंद्र जैन ने करीब 43 हजार वोटों से हराया। वहीं चन्देरी से सिंधिया के ख़िलाफ़ बयान देने वाले गोपाल सिंह को भी क्षेत्र के मतदाताओं ने सबक़ सिखाया। उन्हें भाजपा प्रत्याशी जगन्नाथ सिंह ने 21 हज़ार से अधिक वोट से हराया। दिग्विजय सिंह के छोटे भाई लक्ष्मण सिंह इस बार भी चाचौड़ा से कांग्रेस के टिकट पर मैदान में थे। लेकिन उन्हें भी बीजेपी की युवा प्रत्याशी प्रियंका मीणा पेंची ने करीब 60 हज़ार से अधिक वोटों से हरा दिया। इंदौर की राऊ विधानसभा सीट से चुनाव मैदान में उतरने वाले पूर्व मंत्री और दिग्विजय सिंह समर्थक जीतू पटवारी को बीजेपी के मधु वर्मा से 35 हज़ार से अधिक वोट से हार का सामना करना पड़ा। बता दें जीतू पटवारी ने भी सिंधिया के ख़िलाफ कई बार आपत्तिजनक बयान दिए थे। उधर पांच बार के विधायक पूर्व मंत्री सज्जन सिंह वर्मा को भी भाजपा के राजेश सोनकर ने 25 हज़ार मतों से हरा दिया।

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